"क्षणिकवाद" न ही कोई मिलन है शाश्वत्
न ही कोई विदा,
क्षणिक संसार की हैं, सब
क्षणिक परिस्थितियाँ।
क्षणिक विदा की सुगबुगाहट में
टिमटिमाती हैं, स्मृति में
हर रंग की बत्तियां
सुनो कुछ कह रहीं हैं
विचार शब्दादि के परे,
सुन पा रहे हैं जिसे
केवल हमारे हृदय।
इस क्षणिक विदा पर
भेंट कर रहा हूं, तुम्हें
'उस' अज्ञेय का अपरिमित आशीष
जो ख़ुश्बुओं सा मंडराता रहेगा
तुम्हारे आस-पास।
बौद्ध दर्शन में सब से महत्वपूर्ण दर्शन क्षणिकवाद का है। इसके अनुसार, इस ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है। यह शरीर और ब्रह्मांड उसी तरह है जैसे कि घोड़े, पहिए और पालकी के संगठित रूप को रथ कहते हैं और इन्हें अलग करने से रथ का अस्तित्व नहीं माना जा सकता।
अजय कुमार मौर्य, पी-एचडी शोधार्थी,
तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग,
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी