बहुत से मुस्लिम हमसे नास्तिकता की हद तक निरपेक्षता की उम्मीद करते हैं जबकि ख़ुद धर्म के मामले में कट्टर बन जाते हैं
जब मुस्लिम ख़ुद धर्म के मामले में कट्टर बन जाते
मैंने पहले भी लिखा था कि बहुत से मुस्लिम हमसे नास्तिकता की हद तक निरपेक्षता की उम्मीद करते हैं जबकि ख़ुद धर्म के मामले में कट्टर बन जाते हैं। खासकर सोशल मीडिया पर छोटे कस्बों के, अल्प शिक्षित मुस्लिम लड़के सोशल मीडिया पर उजड्डता, नफरत और टकराव का जरिया मानते हैं। यह सच है कि जो अल्पसंख्यक वर्ग लगातार नफरत झेलता है वह आक्रामक हो जाता है लेकिन भारत में मुस्लिम समाज के लिए यह जटिल समय है।
एक फेसबुक यूट्यूब न्यूज चैनल है--पल पल न्यूज। खुशबू अख्तर औऱ उनके भाई चलाते हैं, मेहनत से। प्रायः मुस्लिम मुद्दों पर खबर करते हैं और इसमें कुछ गलत भी नहीं है। दुर्भाग्य है कि उनकी रिपोर्ट अच्छी होती है लेकिन प्रस्तुति कमजोर, इस तरह की कि सोशल मीडिया पर बेरोकटोक माहौल पा कर नफरत, साम्प्रदायिकता भरी नफरत फैलाते हैं।
पिछले दिनों, इस चैनल पर रिपोर्ट थी कि किस तरह उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़काने वाले एक हिन्दू नेता ने अपनी मुँह बोली बहन से शादी की। फिर उसे इतना मारा कि सिर फाड़ दिया। अब उसके खिलाफ कार्यवही के लिए दूसरी नारंगी नफरती रागिनी तिवारी आवाज़ उठा रही है।
रिपोर्ट अच्छी थी लेकिन स्क्रिप्ट कमजोर ही नहीं छिछोरी। यही बात टिप्पणी में लिख दी और मुस्लिम लड़के मुझे सांप्रदायिक कहने लगे, गाली धमकी। इस बात का उल्लेख इस लिए कर रहा हूँ कि उनकी इसी हरकत से एक तो आये रोज मुकदमों में फंस रहे हैं, दूसरा वे नफरती माहौल तैयार कर रहे हैं।
हो सकता है कि आपको खुशी होती हो कि आपके इतने फॉलोवर है लेकिन यदि आप कम अक्ल, गालीबाज, बेशऊर और लुच्चों को साथ जोड़ें है तो आप भी इन्ही जैसे हो जिनका हम विरोध करते हैं। यह एक महीने में तीसरी बार हुआ सो अनुभव साझा किया।
मेरे लिए संप्रदायिक्त के विरोध का अर्थ किसी वर्ग की गलतियों पर महज इस लिए पर्दे डालना नहीं है कि वह अल्पसंख्यक है।