योग और आयुर्वेद की महत्ता कोरोना काल में पूरे विश्व ने जानी लेकिन एलोपैथ अभी तक.....
महर्षि पतंजलि ने अनेकों योगासनों का अपनी पुस्तक में संकलन किया है । योग मानसिक ,शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है और इन तीनों का समन्वय ही मनुष्य शरीर को स्वस्थ तन और मन प्रदान करता है और दीर्घायु देता है ।
योग और आयुर्वेद की महत्ता इस कोरोना काल में पूरे विश्व ने जानी जहाँ एलोपैथी अभी तक इस बीमारी के लिए कोई निश्चित दवा नहीं बना सकी है,अलग अलग दवाओं के प्रयोग ही हो रहे हैं , योग और आयुर्वेद हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने मेंअत्यंत ही कारगर साबित हो रहे हैं। और अभी तक इस बीमारी का सबसे कारगर इलाज भी यही है ।
महर्षि पतंजलि ने अनेकों योगासनों का अपनी पुस्तक में संकलन किया है । योग मानसिक ,शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है और इन तीनों का समन्वय ही मनुष्य शरीर को स्वस्थ तन और मन प्रदान करता है और दीर्घायु देता है ।योगासन शरीर के प्रत्येक अंग पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसके अतिरिक्त योग मानसिक स्वास्थ्य ,शांति और याददाश्त बढ़ाता है। योग मनुष्य को संपूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करता है।
एलोपैथी के भारत में आने से पहले भी भारतीय स्वस्थ्य और दीर्घायु होते थे किंतु ब्रिटिश राज के भारत में आने के बाद उन्होंने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अवैज्ञानिक,रहस्यमई और केवल एक धार्मिक विश्वास माना एवं आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को नष्ट करने के प्रयास किये गए थे, आयुर्वेद उन ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में जीवित रहा जो आधुनिक सभ्यता से दूर थे। आज भी यह कुत्सित प्रयास निरंतर जारी है ,परिणामस्वरूप भारत में ही आयुर्वेद को दादी नानी के नुस्ख़े तक ही सीमित मान लिया गया ।जिसके कारण आयुर्वेद में शोध आदि कार्य बहुत ही सीमित हो गए ।
अब जबकि अमेरिका और यूरोपीय देशों ने वैज्ञानिक प्रयोगों के बाद इन सब को प्रमाणित कर दिया और वहाँ जिन चीज़ों का व्यापक रूप से प्रयोग होने लगा तब हम इनकी उपयोगिता समझ रहे हैं। हमारे घरों में सदियों में उपयोग होती आ रही जड़ी बूटियाँ, मसाले, नीम,तुलसी जैसी वस्तुएँ जो निरोग रहने में कारगर थी और उनको सिर्फ़ दादी नानी का नुस्ख़ा मान लिया गया था वही वस्तुएँ अब दूसरे देशों में विस्तृत रूप से प्रयोग होने के बाद फिर से हमारे देश में प्रासंगिक हो गई हैं। हमारी समस्या यह है कि अपने ज्ञान को मानने के लिए हमें पहले पश्चिम की स्वीकार्यता चाहिए,
अभी कुछ दिन पहले ही मद्रास हाई कोर्ट ने भी कहा कि बहुत सी चीज़ें जिन्हें खोजने का दावा किया जा रहा है हमारी संस्कृति में पहले से ही विद्यमान् है। आयुर्वेद की विशेषता है कि वह आयु का विज्ञान है, इसमें ख़ान पान और रहन सहन के नियम से बहुत से रोगों से बचाया जाता है,मरीज़ की प्रकृति को पहचानकर उसका उपचार किया जाता है।दवाओं सेअधिक खानपान में परहेज़ सुपाच्य भोजन आदि से शरीर की शक्ति हो सहेजकर रोग का उपचार करने का प्रावधान रहता है। आयुर्वेद में रोग को जड़ से ख़त्म करने का प्रयास होता है बहुत से रोग जो एलोपैथिक दवाओं से ख़त्म नहीं किए जा सकते उनका इलाज आयुर्वेद में मिलता है। धनवंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है ऐसा कहा जाता है कि धनवंतरी समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए थे ।उनसे यह ज्ञान देवताओं में देवताओं से ऋषियों मैं और उनसे मनुष्य में आया।
महर्षि चरक के द्वारा प्रतिपादित चरकसंहिता आयुर्वेद का अद्वितीय ग्रंथ है उनका काल लगभग 22, सौ वर्ष पूर्व माना जाता है तथा ऐसा कहा जाता है कि वह कुषाण काल में राजवैद्य थे।चरकसंहिता में बताया गया है कि मनुष्य के प्रयास और व्यवस्थित जीवनचर्या से आयु को बढ़ाया जा सकता है, प्रकृति और ऋतुओं के अनुसार जीवन चर्या को ढालने पर हमें पूर्णतया निरोगी जीवन मिल सकता है।
महर्षि चरक को मनुष्य की आंतरिक शरीर रचना का भी पूर्ण ज्ञान था ।उन्होंने वात,पित्त , कफ आदि त्रिदोषों का और किस प्रकार अलग अलग मनुष्यों में इन दोषों के कारण रोगों की प्रवृत्ति भी भिन्न होती है इसका भी पूर्ण वर्णन किया है। महर्षि च्वन का योगदान भी आयुर्वेद में अति महत्वपूर्ण है उनके द्वारा बनाया गया चवनप्राश आज भी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में कारगर है।
महर्षि सुश्रुत को तो शल्य चिकित्सा का जनक पूरे विश्व ने स्वीकार किया है। सुश्रुत संहिता में शल्यक्रिया और आंतरिक शरीर ज्ञान का विस्तृत विवरण है तथा शल्य चिकित्सा ,उस समय प्रयोग होने वाले औजारों का भी पूर्ण उल्लेख मिलता है। विश्व की सबसे पहली प्लास्टिक सर्जरी का उल्लेख भी सुश्रुत संहिता में मिलता है। अब वह समय हैं कि हमारी हज़ारों वर्षों से संकलित इस योग और आयुर्वेद की धरोहर को हम और दुनिया समझ रही है ,इसके महत्व को समझ रहे हैं और इसका उपयोग भी कर रहे हैं।वस्तुतः योग और आयुर्वेद ही विश्व को निरोग रहने का मूल मंत्र है।
निशी गुप्ता 'निर्भीक'