अजमेर। जिस कदर हमारे विकासशील देश में भ्रष्टाचार की जड़ें फलीफूली हैं यह बात किसी से छुपी नहीं है। ठीक उसी के अनुरूप हमारे अनेक युवाओं को परीक्षाओं में नकल करने का चस्का ही लग चुका है।.नकल का गोरख धन्धा प्रति वर्ष लाखों के वारे न्यारे कर.रहा है। नकल कराने के बाकायदा काँट्रेक्ट हो जाते हैं। यह बात भी सही है, कि, अनेक ऐसे धन्धैबाज पकडे़ भी जा रहे हैं परन्तु इनकी संख्या घट नहीं रही। परीक्षार्थी भी झट से पास हो जाने को आतुर है। चाहे पैसा कितना भी देना पड़ जाए। परीक्षार्थी को, इसमें इन्टरनैट के जरिये नकल की सब सुविधा मुहैया करा दी जाती है। बस धन्धा चल निकला है।
अक्सर देखा गया है, कि, दुनिया में भला करने वाले को कभी, भी वाहवाही नहीं मिलती। उल्टा उसे बुराई ही मिलती है। लेकिन हमारी पुलिस है, की मानती नहीं है। आजकल यहाँ पुलिसिया भर्ती परीक्षा के तहत कई नकल कराने वालों की 'धर पकड़' के फेर में फँसी इस फौज के बड़े ओहदेदारों ने जनाब परीक्षाओं में नकल पर काबू पाने की गरज से केन्द्रों वाले सभी - ईलाकों पर इन्टरनैट ही 'बन्द' करा दिये हैं। न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी। ऊपर से जन- सुविधा के तहत अखबारों में इसी पाबन्दी की सूचना जरुर शाया करादी गई। वाह जनाब क्या तोड़ निकाला है!!
.इसी के चलते अब, वे लोग दो दिनों से ज्यादा परेशान हुए जा रहे हैं, जिन्हें हर दिन फेसबुक, वाट्सैप और यू ट्यूब जैसे प्लेटफार्म पर अपनी नाजुक ऊँगलिया नचाने को नहीं मिल रहीं। वे पुलिस को बुराभला कहते जमकर कोस भी रहे हैं। और इधर इन्हीं जैसे वो लोग भी जरुरत से ज्यादा दुखी दिखे, जो इस नकल अभियान के मास्टर माईन्ड बनकर अब तक लाखों रुपयों के वारे न्यारे कर चुके हैं। पेपर आऊट या प्रश्नों के उत्तर कुछ भी तो नहीं लग पा रहा है, किसी के हाथ !!
अब, चूँकि, मामला पुलिस का है, सो दुखी तो होना ही है...... !! वैसे देखा जाए तो नगर के जागरुक जनों को पुलिस के आला अफसरों को धन्यवाद देना चाहिये कि, चलो 365 दिनों में दो दिन ही सही, उनके होनहारों को, इन्टरनैट पर अपनी ऊँगलियाँ नचाने से छुट्टी तो मिली !! कुछ कामकाज घरका ही निपटाया गया। मगर जनाब यह तो हम हैं जो सोच रहे हैं, उनका क्या जो राह चलते मुँह पर कपड़ा लपेटे इन्टर नैट पर चैटिंग करते सड़कों पर सरेआम नजर आते रहे हैं। पुलिस को तो इस भलाई वाली कार्यवाही पर इन्हीं - नौजवानों से गालियाँ ही नहीं मिल रही, बल्कि जमकर कोसा भी जा रहा है !! तो जनाब मिल ही गई न भला के बदले बुराई । पर हम तो तहे दिल से शुक्रिया ही अदा करेंगे इस बार पुलिस का।🌸
......सब्र का बाँध टूटने पर, और लोग भी अब कोस ही रहे हैं यहाँ, पुलिस को। समाचारों में सुबह 8 से सायं 5 बजे तक बंद का समय दिये जाने के बावजूद रात 9:30 बजे तक भी ..... यह खबर लिखे जाने तक अपने अपने मोबाईल पर ' इन्टरनैट' ही ढूँढते रह गई शहर की जनता। कहती रही,भला परेशानी की भी कोई तो हद होती है ? इन्टरनैट सेवाओं के जरिये चलने वाले, उन्नत सभी तरह से लाखों के व्यापार - कारोबार भी रात तक ठप्प रह गये सो अलग।
आज फिर इसी दौर से गुजरना किसी बदनसीबी से कम कहाँ होगा । अब आप ही बतलाईये, यों 10-10घन्टे से अधिक के - बहुचर्चित हुए 'आपातकाल' से आम जन को क्या मिला, यही 'दुख', तकलीफ और परेशानी सहित सिवाय छटपटाहट के!! सो अब लानत-मलानत या बुराई तो होनी ही,है, पुलिस के साथ साथ,नेताओं की भी।
शमेन्द्र जड़वाल.
वरिष्ठ पत्रकार, अजमेर