माजिद अली खां
राजनीतिक संपादक
गुजरात विधानसभा चुनाव में सियासी घमासान शुरू हो गया है। देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला होने की उम्मीदें लग रही हैं लेकिन साथ ही आम आदमी पार्टी और शंकर सिंह वाघेला भी एक नई पार्टी के उम्मीदवारों केे साथ चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर चुकेे हैं। गुजरात पर एक लंबे समय से भाजपा का ही कब्जा रहा है और कांग्रेस भाजपा से सत्ता छीनने का हर चुनाव में प्रयास करती रही है।
कांग्रेस हर बार भाजपा से गुजरात छीनने में नाकाम रही क्योंकि गुजरात में बहुत समय से कांग्रेस का संगठन बहुत ज्यादा मजबूत नहीं हो पाया। इसका कारण क्या रहा इसकेे बारे में अलग अलग बातें सामने आती रही। लेकिन गुजरात में कांग्रेस संगठन केे कमजोर होने का एक प्रमुख कारण जो बताया जाता है वह है कांग्रेस केे एक बहुत बड़े नेता का गुजरात से होना और गुजरात में कांग्रेस को आगे न बढऩे देना। जब भी इस बात पर चर्चा की जाती है कि आखिर गुजरात में कांग्रेस भाजपा के सामने घुटने क्यों टेक देती है तो हर बार कांग्रेस केेउन्हीं बड़े नेता का नाम सामने आता है जो कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी के लंबे समय से राजनीतिक सलाहकार बने हुए हैं श्री अहमद पटेल साहब। जिन्हें प्यार से मोदी जी भी अहमद मियां कहते हैं। अहमद मियां कांगे्रस में किसी को भी हीरो और किसी को भी जीरो बनाने का दम रखते रहे हैं लेकिन पूरे गुजरात में उन्होंने कांग्रेस को हीरो नहीं बनने दिया इसकी क्या वजह हो सकती है वही जाने।
जब से अहमद मियां सोनिया गांधी के सलाहकार हैं तब से ही गुजरात में कांग्रेस आईसीयू में भर्ती रही है। जब गुजरात के लोकप्रिय कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस में ही ज्यादा तवज्जोह नहीं मिलती तो जनता भी उन पर ज्यादा तवज्जोह नहीं देती और कांग्रेस हर बार गुजरात में हर विधानसभा चुनाव में छटपटा कर रह जाती है। इस बार भी कांग्रेस बड़े जोश के साथ कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी केे नेतृत्व में चुनाव तो लड़ रही है और उसे तीन जातीय युवा नेताओं हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठोकार का समर्थन भी मिल गया है लेकिन संगठन की कमजोरी कांग्रेस को गुजरात चुनाव में भाजपा पर हावी होने से रोक रही है।
इस बार कांग्रेस के लिए बहुत संभावनाएं हैं क्योंकि उसे इन तीन युवा नेताओं केे साथ आने का फायदा मिल सकता है। अगर अबकि बार भी कांग्रेस गुजरात को भाजपा से नहीं छीन पाई तो आने वाले समय में यह सपना ही रह जाएगा कि कांग्रेस भी कभी गुजरात में हकूमत कर सकती है। दूसरी ओर यदि भाजपा की बात की जाए तो इस बार भाजपा गुजरात में उस जोश में नहीं है जैसे वह पिछले चुनाव में हुआ करती थी। इसकी वजह भी यही है कि बड़े बड़े वादे करकेेनरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता भी प्रचंड बहुमत के साथ कांग्रेस से छीन ली तथा कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया। केंद्र में सत्ता केे लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो वादे किए उनमें सबसे बड़ा वादा था कालेधन की वापसी और साथ में हिंदुत्व का तड़का। इन दोनों की बदौलत देश की जनता ने भाजपा के नेतृत्व पर विश्वास जताया तथा केंद्र में प्रचंड बहुमत भाजपा को दिलवाया।
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था संबंधी उठाए गए दो कदमों नोटबंदी तथा जीएसटी से लोगों को आर्थिक रूप से बड़ा झटका लगा और मोदी सरकार जनता की आलोचना का शिकार हो गई। हिंदुत्व वाले वादे भी मोदी सरकार पूरे नहीं कर सकी जिससे भाजपा का परांपरागत हिंदुत्ववादी वोट भी उस जोश केे साथ भाजपा के साथ नजर नहीं आ रहा है। कहा ये जा रहा है किभाजपा गुजरात में विकास केेमुद्दे पर चुनाव लड़ रही है लेकिन केंद्र सरकार की विकास संबंधी विफलता ने विकास संबंधी बातों को एक जुमलेबाजी करार दे दिया है।
हो सकता है आने वाले समय में भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर ही वापस आने पर मजबूर हो जाए। यदि भाजपा ऐसा करती है तो शंका है कि उसे पहले की तरह लोगों का समर्थन मिल जाए। इस पूरे चुनाव में भाजपा को खुद मोदी ही हरवाते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस ने अगर फिर सांगठनिक कमजोरी दिखाई तो वह फिर निराश ही रहेगी और यदि भाजपा ने हिंदुत्व का साथ छोड़ा तो उसे भी अबकि बार शायद निराश होना पड़ेगा।