संजय कुमार सिंह
मेरे एक परिचित की विदेश में पढ़ने वाली बेटी लॉक डाउन शुरू होने से कुछ ही दिन पहले आई थी और हवाई अड्डे पर क्वारंटीन होने के लिए नहीं कहने के बावजूद खुद ही क्वारंटीन थी। आरडब्ल्यूए वालों को पता चला तो उसे जांच कराने और क्वारंटीन कराने के लिए दबाव बनाने लगे। मेरे परिचित अपनी बेटी को किसी होटल में क्वारंटीन करने से लेकर अपने फार्म हाउस तक में रखने की व्यवस्था करने को तैयार थे पर उस समय ऐसे सरकारी विकल्प नहीं थे और सरकारी टेस्ट का मतलब था सरकारी स्तर पर ही क्वारंटीन भी होना।
ऐसे में उन्होंने एक निजी पर सरकार से स्वीकृत टेस्ट लैब से बात की और टेस्ट लैब वालों ने अगले दिन सैम्पल लेने का समय दिया। पर आरडब्ल्यूए वाले चाहते थे कि लड़की अपने घर पर भी नहीं रहे क्योंकि वह विदेश से आई थी। उसे क्वारंटाइन होने के लिए कहा नहीं गया था कोई लक्षण नहीं थे के बावजूद। और रात में लड़की को लेने जो एम्बुलेंस (सरकारी व्यवस्था) आई उसमें कोई महिला नहीं थी। अंततः एम्बुलेंस खाली गई और अगले दिन नमूना देने तथा जांच के बाद पता चला उसे कोरोना नहीं था।
मेरे परिचत उसके बाद से बिल्कुल सदमे में रहे और यही कहते रहे कि उस दिन आरडब्ल्यूए वालों के चलते उनकी बेटी पता नहीं किस मुश्किल में फंसती। वो मुझे क्वारंटीन सेंटर की कहानियां बताते रहे। व्हाट्सऐप्प फॉर्वार्ड करते रहे। इनमें से कइयों की चर्चा अखबारों में नहीं हुई। और हेडलाइन मैनजमेंट के चलते आम लोगों के साथ-साथ आरडब्लूए वालों को भी पता नहीं है कि क्वारंटीन सेंटर का सरकारी इंतजाम ज्यादातर अमानवीय है। उनके लायक तो नहीं ही है जो पैसे देकर होटल में क्वारंटीन हो सकता है। सरकार ने यह व्यवस्था अब तक नहीं की है। बंगाल से ऐसी खबर दिखी थी पर और कहीं की नहीं मिली।
जो भी हो, कल सोशल मीडिया पर एक खबर थी कि अहमदाबाद में सरकारी स्तर पर क्वारंटीन और इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल किेए गए एक व्यक्ति की लाश सड़क के बस स्टॉप पर मिली। मैंने अखबार में पुष्टि होने तक इंतजार किया और हेडलाइन मैनेजमेंट के इस जमाने में इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को बॉटम लीड बनाया है तो आप इसका महत्व समझ सकते हैं। पूरी खबर लंबी है। कमेंट बॉक्स में उसका भी लिंक है। पढ़िए और देखिए कि हम कोरोना से कैसे लड़ रहे हैं। चूंकि यह गुजरात का मामला है और गुजरात मॉडल अब देश में लागू हो चुका है इसलिए विशेष रुप से सतर्क रहने की जरूरत है। बाकी आत्मनिर्भर बनिए लॉकडाउन में रहिए। करना कुछ नहीं हैं। डरना तो बिल्कुल नहीं है।