राष्ट्रपति ने कैलाश सत्यार्थी को एक करोड़ रूपये के "संतोकबा ह्यूमैनेटेरियन अवार्ड" से सम्मानित किया
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज नोबेल शांति परस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी को मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक करोड़ रूपये के “संतोकबा ह्यूमैनेटेरियन अवार्ड” से सम्मानित किया।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज नोबेल शांति परस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी को मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक करोड़ रूपये के "संतोकबा ह्यूमैनेटेरियन अवार्ड" से सम्मानित किया। सूरत के संजीव कुमार आडीटोरियम में आयोजित इस सम्मान समारोह में महामहिम के अलावा गुजरात के राज्यपाल ओपी कोहली और मुख्य मंत्री विजय रुपाणी भी उपस्थिति थे। इस अवसर पर इसरो के पूर्व अध्य क्ष पद्मश्री किरण कुमार को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सत्यार्थी ने यह पुरस्कार बच्चों को समर्पित करते हुए इससे मिले एक करोड़ रूपये को सुरक्षित बचपन फंड को सौप दिया। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन द्वारा स्थापित इस "सुरक्षित बचपन फंड" का इस्तेमाल यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के शिकार बच्ची की कानूनी सहायता और पुनर्वास पर खर्च किया जाता है।
इस अवसर पर कैलाश सत्याचर्थी ने कहा, ''बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार, समाज, धार्मिक संगठन और व्याीपारिक जगत सब को मिलकर काम करना होगा। उनके शोषण के खिलाफ जब तक हमलोग एकजुट नहीं होंगे तब तक यह महामारी नहीं रुकने वाली है। बच्चों का यौन शोषण एक महामारी है और इससे पूरा समाज प्रदूषित हो रहा है। बाल यौन शोषण और दुर्व्याकपार के खिलाफ पिछले साल हमने जो देशव्याोपी "भारत यात्रा'' निकाली उसके बहुत ही सकारात्मछक परिणाम सामने आने लगे हैं।"
देश का यह प्रतिष्ठित पुरस्कार हर साल श्री रामकृष्ण फाउंडेशन की और से समाज के विभिन्न क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली विभूतियों को दिया जाता है। इस फाउंडेशन के संस्थापक और अध्ययक्ष मशहूर हीरा कारोबारी गोविंद ढोलकिया हैं। यह पुरस्कालर उनकी मां की स्मृ ति में 2007 से दिया जा रहा है। इस पुरस्कार से सम्मानित प्रमुख लोगों में रतन टाटा, दलाई लामा, सुधा मूर्ति, डा. एस स्वासमीनाथन, सैम पित्रोदा और वर्गीज कुरियन के नाम शामिल हैं।
कैलाश सत्यार्थी भारत में जन्में ऐसे पहले भारतीय हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मध्य प्रदेश के प्राचीन नगर विदिशा में 1954 में जन्में सत्यार्थी ने 1978 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद कुछ वर्ष तक इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ाया भी। लेकिन बच्चों पर हो रहे अन्याय की समाप्ति को अपने जीवन का मिशन बनाने वाले इस नौजवान इंजीनियर ने अपनी सुविधा और सम्मान पाने वाले पेशे को ठुकराकर मानव दासता के कलंक को मिटाने के अभियान की शुरुआत की। इसी दौरान उन्होंने 1980 में "बचपन बचाओ आंदोलन" की नींव रखी। जिसने कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में अब तक 86 हजार से अधिक बच्चों को बाल दासता से मुक्त करा कर उन्हें बेहतर जिंदगी देने का प्रयास किया है। इस दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए।
सत्यार्थी को नोबेल के अलावा भी विश्व के कई और महत्वपूर्ण पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। जिनमें अमेरिकी संसद में दिया गया 'डिफेंडर फॉर डेमोक्रेसी सम्मान', इटली की ससंद में दिया गया 'हृयूमन राइट सिनेट मेडल', अमेरिका का सर्वोच्च गैर-सरकारी नागरिक सम्मान 'केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट अवार्ड', जर्मनी का 'फैड्रिक ईवर्ट सम्मान', स्पेन का 'लॉ हास्पेटिलेट अवार्ड', नीदरलैंड का 'गोल्डेन फ्लैग अवार्ड', अमेरिका का 'ट्रम्पीटर अवार्ड' जैसे अनेक सम्मान शामिल हैं। उन्हें हॉवर्ड विश्वविद्यालय द्वारा प्रसिद्ध "हार्वर्ड ह्यूमेनिटेरियन अवार्ड" से भी नवाजा जा चुका है। कैलाश सत्यार्थी विश्व के पहले गैर-सरकारी व्यक्ति हैं जिन्होंने सन 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को संबोधित किया था। उन्हें अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली आदि देशों की संसद को संबोधित करने का भी अवसर मिला है। वे बाल मजदूरी और शिक्षा पर संयुक्त राष्ट्र संघ की कई महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य रहे हैं। सत्यार्थी के प्रयास से ही सन 1999 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने कनवेंशन-182 पारित किया था। कनवेंशन-182 पूरी दुनिया में खतरनाक बाल मजदूरी, बाल दासता, वेश्यावृत्ति और युद्ध व आपराधिक कामों में 18 साल तक के बच्चों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की बात करता है। श्री कैलाश सत्यार्थी को भारत में बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों का पहला पुनर्वास केंद्र स्थापित करने का भी श्रेय जाता है।