जानिए बंगाली लव कैफे के पीछे की सक्सेस स्टोरी ₹200000 हर महीने वही है कमाई

67 वर्षीया दीपा ने हाल ही में गुरुग्राम में एक घर के बने खाने का बिजनेस (Homemade Food Business) शुरू किया है। जिसका नाम उन्होंने ‘बंगाली लव कैफ़े’ रखा है। जहाँ वह बंगाली व्यंजन बनाती और बेचती हैं।

Update: 2023-04-17 15:47 GMT

67 वर्षीया दीपा ने हाल ही में गुरुग्राम में एक घर के बने खाने का बिजनेस (Homemade Food Business) शुरू किया है। जिसका नाम उन्होंने 'बंगाली लव कैफ़े' रखा है। जहाँ वह बंगाली व्यंजन बनाती और बेचती हैं।गुरुग्राम की दीपा गुहा के घर की रसोई में जब खाना पकता है तो उसकी खुश्बू पड़ोसियों के घर तक जाती है। रसोई में पकने वाले बंगाली व्यंजनों की सुगंध से, घर के आसपास गुज़रने वाले लोगों के मुंह में भी पानी आ जाता है। पहले दीपा केवल सीमित अवसरों के लिए खाना बनाती थी। लेकिन दीपा की बेटी, साक्षी ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया और जनवरी 2020 में दीपा ने 'बंगाली लव कैफे' की शुरुआत की।

33 वर्षीया साक्षी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ काम कर रही थी। लेकिन, मार्च 2019 में उनकी नौकरी चली गई। द बेटर इंडिया से बात करते हुए साक्षी कहती हैं कि अचानक नौकरी चले जाने से वह काफी परेशान हो गईं। वह कहती हैं, "घर के खर्च, माता-पिता और तीन बहनों की पूरी ज़िम्मेदारी मुझ पर थी। समस्या का समाधान निकालने के लिए, मैंने अपनी मां के साथ एक टिफिन सर्विस शुरू करने का विचार किया।"

साक्षी की नौकरी चली जाने से, धीरे-धीरे बचत भी ख़त्म हो गई थी। फिर साक्षी ने अपनी माँ से परिवार की मदद करने के लिए, अपने खाना पकाने के कौशल का उपयोग करने का अनुरोध किया। मेन्यू में सब्जी, दाल, रोटी और चावल शामिल थे। साथ ही, मांसाहारी ग्राहकों के लिए मछली, चिकन या अंडा का विकल्प भी था। वह कहती हैं, "हमें कुछ ऑर्डर मिलने लगे और धीरे-धीरे कुछ ग्राहकों ने वापस ऑर्डर देने के लिए आना भी शुरू कर दिया। समय के साथ, हमें ऐसे कई ग्राहक मिले, जिन्हें टिफिन सर्विस की ज़रूरत थी।"

लोग उनके द्वारा पकाए गए खाने को पसंद कर रहे थे। अब दीपा और साक्षी ने क्लाउड किचन शुरू करने की ओर कदम बढ़ाया। उनके लिए यह अच्छा अवसर था। ग्राहकों की संख्या में अच्छी-खासी वृद्धि होने लगी।इन व्यंजनों में, रोल्स जैसे कि, लुची चिकन करी, लुची चिकन कोशा, कुछ स्नैक्स जैसे कि लुची-ओ-आलू चोरचोरी, कोलकाता की झाल मूड़ी और कई स्वादिष्ट कॉंबो मिल जैसे कि दोई माछ कॉम्बो और आलू शेद्दो के साथ झरना घी भात आदी भी शामिल थे।

जैसे-जैसे व्यवसाय आगे बढ़ा और लॉकडाउन में ढील मिलने लगी, इस मां-बेटी की जोड़ी ने एक आउटलेट खोलने के लिए एक जगह किराए पर ली।

दीपा कहती हैं कि यह 'भारतीय खिचड़ी' से काफी मिलता-जुलती है। त्योहारों के महीनों में, विशेष रूप से दुर्गा पूजा में यह ज़रूर खाई जाती है।

वह कहती हैं कि उनके सभी व्यंजन कोलकाता की मूल सामग्री से बनाए जाते हैं, जिससे उनके व्यंजनों का स्वाद बढ़ जाता है।

साक्षी कहती हैं कि सफलता के बावजूद, पिछले कुछ वर्षों में उनके इस सफ़र में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वह कहती हैं, "मेरे पास कोई वित्तीय सहायता नहीं थी। मेरे पास इतने पैसे भी नहीं थे कि काम करने के लिए कोई कामगार रख सकूं। वह कहती हैं कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान, कच्चा माल जुटाने से जुड़ी कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा था।

अब अपने अनुभव से, साक्षी के पास कुछ सुझाव हैं जो व्यवसाय करने के इच्छुक लोगों के लिए मददगार हो सकते हैं।

भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए, साक्षी कहती हैं कि वह एक ट्रेडिंग कंपनी की स्थापना करना चाहती हैं। जहां वह शहरभर में बंगाली किराने का सामान बेच सकें। वह कहती हैं, "मैं महिलाओं के लिए और अधिक रोजगार के अवसर बढ़ाना चाहती हूं। मेरी मां हमेशा अपने लिए एक कैफे चाहती थीं, मुझे खुशी है कि उनकी यह इच्छा पूरी हुई।"

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