कोरोना मतलब, हेडलाइन मैनेजमेंट और पीएम केयर्स!
आप समझ सकते हैं कि कोरोना से लड़ने की बजाय हेडलाइन मैनजमेंट चल रहा है। बाकी कुछ बचा हो तो वह पीएम केयर्स में जा रहा है।
संजय कुमार सिंह
अमर उजाला में आज पहले पन्ने पर एक खबर है, "भारतीय मरीजों में 17 से ज्यादा देशों के वायरस"। उपशाीर्षक है, "चीन से निकला वायरस हर देश में ले चुका है अपना अलग रूप"। अखबार ने यह नहीं लिखा है कि ये सब भारत समय पर जांच शुरू कर दिए जाने के दावे के बावजूद हैं। दूसरे शब्दों में इसपर यह भी कहा जा सकता है कि, "चौकीदार चोर है" के आरोप को देश की जनता ने नकार दिया फिर भी ये सारे वायरस भारत में घुस गए हैं।
यह दिलचस्प है कि वायरस अलग देशों में अपनी अलग 'पहचान' बना रहा है। अगर ऐसा है तो उसकी हैसियत और फितरत भी अलग होनी चाहिए। और यह सब है तो भारत की तुलना दूसरे देशों से करने का कोई मतलब नहीं है। पर आप देखिए कि हमारे अखबार क्या कर रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन अलग दावा कर रहे हैं और कई अखबारों में यह पहले पन्ने पर है 1) अब संक्रमण मुक्त हो रहे हैं हॉट स्पॉट (नवोदय टाइम्स) 2) सुधर रहे हैं हालात, गैर - हॉट स्पॉट में तब्दील हो रहे हैं हॉट स्पॉट जिले (दैनिक जागरण) और 3) सरकार की नीति टेस्ट करने, आइसोलेट करने और उपचार करने की जारी रहेगी - हिन्दुस्तान टाइम्स।
कहने की जरूरत नहीं है केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ऐसा तब कह रहे हैं जब हम अभी टेस्ट किट की ही जांच कर रहे हैं और रोज एक लाख लोगों की जांच हो तो हम पूरे देश की जांच कई साल में कर पाएंगे। अभी हम 10 लाख की आबादी में कुछ सौ जांच कर पा रहे हैं। और अगर यह रणनीति है तो इसके लिए पंचवर्षीय योजना भी बननी चाहिए। आप समझ सकते हैं कि कोरोना से लड़ने की बजाय हेडलाइन मैनजमेंट चल रहा है। बाकी कुछ बचा हो तो वह पीएम केयर्स में जा रहा है।