फिल्म शोले में जय और वीरू को जब ठाकुर बताते हैं कि पचास- पचास कोस दूर तक फैली दहशत वाले मशहूर डाकू गब्बर सिंह को पकड़ने के लिए ही उन्होंने उन दोनों को रामगढ़ बुलाया है तो वीरू चौंक कर कहता है - "ठाकुर साहब, गब्बर सिंह कोई बकरी का बच्चा है, जो दौड़े और पकड़ लिया।"
दुनिया भर में दहशत का पर्याय बन चुके कोरोना की दवा ढूंढ़ लेने का दावा करने वाले रामदेव से भी ठीक उसी अंदाज में पूछना चाहिए कि बाबा जी, कोरोना वायरस क्या कोई बकरी का बच्चा है, जो आपने दौड़ कर इतनी जल्दी पकड़ भी लिया !!!
जहां तक दुनिया को इस वायरस की जानकारी मिल पाई है, उसके मुताबिक तो कोरोना बेहद संक्रामक वायरस और एक ऐसी अबूझ पहेली भी है, जिसको पकड़ना तो दूर, उसके सामने पड़ने से भी फिलहाल दुनिया का हर वैज्ञानिक और डॉक्टर अभी कतरा ही रहा है। क्योंकि इसका कोई इलाज दुनिया में अभी तक किसी के पास नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर पूरी दुनिया इस एक क्षुद्र वायरस से इतना ज्यादा डर क्यों गई है? जबकि इसकी चपेट में आकर तो सौ में से तीन लोग भी नहीं मर रहे .... दरअसल, जंगल में आग से भी तेज फ़ैल रहे इस वायरस के इस कदर तेज फैलने के कारण ही पूरी दुनिया की सात अरब आबादी तक इस वायरस के पहुंच जाने का खतरा सर पर मंडरा रहा है। जाहिर है, ऐसा अगर वाकई हो गया तो सौ में से तीन का प्रतिशत भी तब बेहद विकराल और भयावह नजर आने लगेगा क्योंकि तब कुल सात अरब में से 21 करोड़ लोग इसके चलते मारे जाएंगे। यानी यह वायरस जहां, जिस देश में भी फैलेगा, वहां भारी तबाही मचाकर ही मानेगा। इसी खौफनाक मंजर के डर से ही तो आज पूरी दुनिया ठप सी हो गई है।
लिहाजा पूरी दुनिया के डॉक्टर, वैज्ञानिक, सरकारें, संस्थाएं सभी मिलकर दिन - रात रिसर्च करके इस वायरस से बचने या इसको खत्म करने की मुहिम में लगे हुए हैं। लेकिन दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो रिसर्च में फॉलो किए जाने वाले नियम- कानून से खुद को ऊपर मानकर, न खाता न बही, जो हम कहें, वही सही के सूत्र वाक्य पर चलकर दुनिया में फैले इस डर और आपदा को अपने लिए बढ़िया कमाई का अवसर मानकर दवा या इलाज के नाम पर कुछ भी लांच किए दे रहे हैं।
अब रामदेव और उनकी दवा को ही ले लीजिए। मीडिया से जहां तक जानकारी मिली है, उसके मुताबिक रामदेव की कोरॉनिल में अश्वगंधा, तुलसी और गिलोय हैं। सबको पता है कि यह तीनों जड़ी- बूटी सदियों से भारत के लोगों में लोकप्रिय हैं। इन तीनों का मिश्रण भी आयुर्वेद की न जाने कितनी कफ सिरप या इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाओं में पहले से ही मौजूद हैं। आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली हर कम्पनी इन तीनों के मिश्रण वाले इंग्रीडिएंट्स के साथ पहले से ही न जाने कितनी दवाएं बेच भी रही हैं।
जबकि रामदेव ने दावा किया है कि अश्वगंधा, तुलसी और गिलोय के मिश्रण वाले इसी फार्मूले से कोरोना ठीक हो जा रहा है। अगर यह सच है तो इसका मतलब तो यह भी हुआ कि सिर्फ रामदेव ही क्यों, देश के हर पंसारी, वैद्य, हकीम, ओझा, बाबा, तय तांत्रिक आदि को अश्वगंधा, तुलसी और गिलोय की पुड़िया खिलाकर कोरोना ठीक करने/ झाड़ने/ फूंकने आदि की छूट मिलनी चाहिए। साथ ही , हर छोटी बड़ी कम्पनी को भी कोरोना की दवाक़े रूप में इसी मिश्रण को अपने ब्रांड से लॉन्च करने की इजाजत सरकार को बिना किसी जांच-पड़ताल के दे देनी चाहिए।
जरा सोच कर देखिए कि रामदेव को मंजूरी देने के बाद इसी मिश्रण के नाम पर भारत में हर कोई कोरोना की ही दवा कैसे गली-गली में अपने अपने ब्रांड नाम से बेच रहा होगा। जबकि कोरोना इससे ठीक होगा या नहीं, यह अभी भी संदेह का विषय है और तब तक रहेगा, जब तक वैज्ञानिक तौर पर यह मिश्रण कोरोना के मरीजों को ठीक करने के प्रमाण नहीं दे देता।
उल्लेखनीय है कि सिर्फ हमारे देश का आयुष मंत्रालय ही नहीं, देश और दुनिया भर की तमाम आयुर्वेदिक संस्थाएं या कंपनियां अपने अपने स्तर पर कोरोना के आने के बाद से ही इसका इलाज ढूढ़ने के लिए लगातार आयुर्वेद में बताई गईं एक- एक औषधि, जड़ी- बूटी आदि का परीक्षण बाकायदा वैज्ञानिक और अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर करना शुरू कर चुकी हैं।
जिससे संबंधित कई ट्रायल की रिपोर्ट भी इंटरनेट के माध्यम से पढ़ने को मिल जाएंगी। लेकिन अभी तक रामदेव को छोड़कर आयुर्वेद की दुनिया की किसी भी बड़ी से बड़ी संस्था ने कोई ऐसा दावा नहीं पेश किया कि उनके पास कोरोना के इलाज का कोई आयुर्वेदिक फार्मूला है। पता नहीं रामदेव ने कब, कहां और कौन सा चिराग घिस कर इतनी जल्दी यह जान भी लिया कि भारतवासी जिस तुलसी, अश्वगंधा और गिलोय को किसी न किसी रूप में लगभग रोज ही खा रहे हैं, वही कोरोना का शर्तिया इलाज है।
बहरहाल, इलाज आयुर्वेद में मिले, होम्योपैथी में मिले, ज्योतिष, तंत्र- मंत्र या एलोपैथी में मिले... बस इतना जानना देश की जनता के लिए बेहद जरूरी और उनका हक भी है कि यह दवा सभी वैज्ञानिक पैमानों पर खरी है कि नहीं। उसी से यह पक्के तौर पर जाना भी जा सकेगा कि कोरोना के वायरस से रोगी को बचा पाने में यह दवा कितनी कारगर साबित हुई है।
रामदेव की तरह नहीं कि दवा को बाजार में गाजे- बाजे के साथ ले आए तो दुनिया भर के डॉक्टर- वैज्ञानिक हैरान हुए ही, साथ ही खुद केंद्र सरकार, आयुष मंत्रालय, उत्तराखंड ड्रग लाइसेंस अथॉरिटी आदि भी सकते में आ गईं....रामदेव को कम से कम केंद्र सरकार, आयुष मंत्रालय और ड्रग लाइसेंस अथॉरिटी से विधिवत मंजूरी लेकर ही कोरोना की शर्तिया दवा बाजार में पेश करनी चाहिए....