भारत सहित समूचे विश्व मे मचेगा हाहाकार
दिन प्रतिदिन घाटा बढ़ता ही जायेगा । घाटे को कम करने के लिए 2014 में बातचीत अवश्य हुई थी, लेकिन कोई सार्थक परिणाम सामने नही आये ।
आत्मनिर्भर बनना बुरी बात नही है । लेकिन आज के वक्त बिना आपसी लेंन-देन के कोई देश किसी भी हालत में तरक्की कर ही नही सकता है । मोदीजी ने आत्मनिर्भर होने का नारा दिया है जो किसी भी रूप में व्यवहारिक नही है । अगर भारत या अन्य सभी देश आत्मनिर्भर बन गए तो पूरे विश्व मे हाहाकार मच जाएगा । आर्थिक व्यवस्था चकनाचूर हो जाएगी और कई देशों में बेरोजगारी का आंकड़ा तेजी से छलांग लगा सकता है ।
पूरे विश्व के देश एक दूसरे मुल्क से वस्तुओं का आदान प्रदान कर आपसी आवश्यकताओं की पूर्ति करते है । मोदीजी ने यह नही सोचा कि सभी मुल्क आत्मनिर्भर होगये पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था का पहिया थमकर रह जायेगा । बचकाना बयान के अलावा कुछ नही है । प्रधनमंत्री को बचकाने बयान की जगह परिपक्व बयान देना चाहिए । ऐसे वाहियात बयानों की वजह से भारत की अन्य मुल्को में जबरदस्त थू थू होती है ।
बकौल मोदी के सभी देश पेट्रोल और डीजल के मामले में आत्मनिर्भर होगये तो खाड़ी देशों में उत्पादित पेट्रोलियम पदार्थों का क्या होगा ? क्या इनको नाली में नही बनाना पड़ेगा ? भारत कई देशों से वस्तुओं का आयात करता है तो कुछ का निर्यात भी होता है । कई बुनियादी वस्तुएं दवाओं का कच्चा माल, वाहनों के कल पुर्जे, कई प्रकार की तकनीकी मिलना बंद हो जाये तो भारत की सारी अर्थ व्यवस्था स्वाहा होकर रह जाएगी ।
भारत मे अशोक लीलैंड तथा टाटा आदि वाहन बनाने में आत्मनिर्भर है । वरना 90 फीसदी से ज्यादा वाहनों के पुर्जे और तकनीक जापान, कोरिया, जर्मनी, यूएस आदि से आयात होती है । देश मे सबसे ज्यादा बिकने वाली मारुति भी जापानी कम्पनी सुजूकी की बैसाखियों के सहारे खड़ी है । दूसरे नम्बर की कार कंपनी हुंडई दिखावे के तौर पर भारत में बन रही है । लेकिन इसके सारे कल-पुर्जे व तकनीक कोरिया की है ।
आत्मनिर्भरता की बात कहने व सुनने में बहुत अच्छी लगती है । लेकिन जिस दिन सभी देशों ने यहां से अपने तंबू उखाड़ लिए तो लोगो को फिर से बैलगाड़ी पर चलना पड़ेगा । विदेशी कम्पनियों ने भारतीय टेक्नोक्रेटों को नौकरी से निकाल दिया तो भारत मे तूफान खड़ा हो जाएगा । इसी तरह सभी देश आत्मनिर्भर होगये तो भारत अपने उत्पादित माल की खपत करेगा कहाँ ?
साल, दो साल में चाइना माल के बहिष्कार का बुखार भारतीयों को चढ़ता है जो कुछ दिनों बाद दूध के उफान की तरह शांत भी हो जाता है । मेरा दावा है मोदी तो क्या सौ मोदी भी कुर्सी पर आसीन हो जाये तब भी देश मे चाइना से आयात पर रोक लग ही नही सकती । चाइना के कारण भारत की सांस चल रही है, वरना कब तक आईसीयू में भर्ती हो जाना पड़ता ।
अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक आइटम, दवा, औषधि के काम आने वाला रा मेटेरियल, फर्नीचर, खिलोने, सजावटी सामान, टेक्सटाइल, पर्दे, टीवी, बल्ब, ग्लूको मीटर, पानी की मोटर, कांच की वस्तुएँ, हार्डवेयर, पुर्जे, कार एसेसरीज, मेडिकल इक्विपमेंट, सभी प्रकार की किट, मांजा, पतंग, राखी, रंग, गुलाल, देवताओं की तस्वीरें, बल्बों की लड़ी, पटाखे के लिए भारत अब चीन पर निर्भर रहने लगा है ।
मोबाइल सहित कई ऐसी वस्तुएँ है जिन्हें चीन भारत को देना बंद करदे तो उनकी कीमत पांच से दस गुना बढ़ सकती है । जहां तक मोबाइल की सवाल है, भारतीय कम्पनी इंटेल, ओनिडा, एचसीएल, लावा, माइक्रोमैक्स तथा कार्बन जैसी कम्पनी कभी का दम तोड़ चुकी है । पूरे मोबाइल मार्किट पर चाइना का कब्जा है । कोरियाई कम्पनी सेमसुंग, जापानी कंपनी सोनी और यूएस बेस एप्पल भी अपने फोन चाइना में बनवा रही है ।
बात चीन की हो रही है । इस सदी की शुरुआत में महज भारत और चीन के बीच 3 अरब डॉलर का कारोबार हो रहा जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का होगया । कारोबार 2018 में 51.8 से बढ़कर 96 अरब डॉलर का होगया । यही रफ्तार रही तो 2020 के अंत मे 120 डॉलर का आंकड़ा पार कर जाएगा ।
चीन और भारत के बीच बहुत ज्यादा व्यपारिक असंतुलन है । चीन से भारत करीब निर्यात के मुकाबले 5 गुना ज्यादा माल का आयात करता है । सरकारी सूझबूझ के अभाव में 2018 में भारत को चीन से व्यापार करने में 57.86 अरब डॉलर का शुद्ध घाटा हुआ । दिन प्रतिदिन घाटा बढ़ता ही जायेगा । घाटे को कम करने के लिए 2014 में बातचीत अवश्य हुई थी, लेकिन कोई सार्थक परिणाम सामने नही आये ।
प्रधानमंत्री की विश्व मे अच्छे प्रशासक रूप में गिनती होती है । ओछी पब्लिसिटी हासिल करने के लिए ऐसे वाहियात और बचकाने बयानों से बचना चाहिए । अगर मोदी वास्तव में देश का भला करना चाहते है चाइना प्रोडक्ट पर रोक से नही आयात पर प्रातिबन्ध लगाकर देश का अरबों डॉलर का फायदा कर सकते है । इसके अलावा चाइना के घटिया माल से स्थानीय व्यपारियो को होने वाली क्षति पर भी अंकुश लग सकेगा ।