कर्नाटक : जो जीता वही सिकंदर

Update: 2023-05-01 02:47 GMT


शकील अख्तर

सवाल कांग्रेस से है! वह ऐसा चुनाव हर जगह क्यों नहीं लड़ती है? और यह सवाल हमारा नहीं जनता का है! जनता का इसलिए कि कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। और देश भर में है।

कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने सारे महारथी उतार दिए हैं। नतीजे दिखने लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी गालियां गिनाने लगे हैं। व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप में कांग्रेस को खींचने की कोशिश है। कांग्रेस जब भी इस पिच पर जाती है नुकसान उठाती है। वह भूल जाती है कि व्यक्तिगत आरोपों का जवाब देना भी मोदी को फायदा पहुंचाता है।

कर्नाटक में परिस्थितियां उसके अनुकूल बनी हुई हैं। लेकिन मोदी वह खिलाड़ी हैं जो कांग्रेस की एक गलती से भी मैच पलट देने की क्षमता रखते हैं। अभी गुजरात चुनाव में हलांकि कांग्रेस आधे अधुरे मन से चुनाव लड़ रही थी मगर नए बने कांग्रेस अध्यक्ष खरगे को वहां अच्छा समर्थन मिल रहा था। लेकिन उनकी एक टिप्पणी जिसमें उन्होंने रावण कहा के बाद मोदी ने गुजरात की सारी एंटी इनकम्बेन्सी को खत्म करके वहां कांग्रेस को अब तक की सबसे कम सीटों 17 पर समेट दिया था। याद रहे गुजरात में भाजपा 27 साल से है। मगर पिछली बार कांग्रेस ने वहां कड़ी टक्कर दी थी और 77 सीटों पर विजय हासिल की थी लेकिन पिछले साल एक तो चुनाव को बेमन से लड़ने और दूसरे अनावश्यक बोलने से वह अपने आज तक के सबसे खराब प्रदर्शन पर पहुंच गई।

इसी तरह 2019 के चुनाव में मोदी ने चौकीदार चोर है को भुनाया और उससे पहले 2014 में आज जो उसके बड़े हिमायती बने बैठे हैं उन गुलामनबी आजाद के कहां राजा भोज कहां गंगू तेली के मुहावरे को अपनी जाति के खिलाफ बताते हुए उसका फायदा उठाया।

कांग्रेस की समस्या यह है कि वह इस बात को समझ ही नहीं रही कि उसके प्लस पांइट क्या हैं और मोदी जी के क्या! इन्दिरा गांधी इस बात को जानती थीं। और कभी विपक्ष की पिच पर नहीं जाती थीं। वे अपने हर भाषण में विपक्ष खासतौर से भाजपा को दक्षिणपंथी, प्रतिक्रियावादी, पूंजीवाद समर्थक कहती थीं। कालाबाजारी, जमाखोरी पर लगातार हमले करते रहती थीं। उनके समय हर दुकानदार को सामान की कीमत, उसकी उपलब्धता बड़े से बोर्ड पर लिखकर मय तारीख के रोज दुकान के बाहर लगाना होती थी। और बोर्ड भी बड़ा। सामने। ताकि दिखे। वे अपने गरीब पूंजीपति विरोधी रवैये से कभी नहीं हटती थीं। विपक्ष को विकल्प ही नहीं देती थीं। राजनीति करना है तो गरीब और अमीर पर करो। और कोई अजेंडा चलने ही नहीं देती थीं। बैंकों का राष्ट्रीयकरण, राजाओं के प्रिविपर्स खत्म करके उन्होंने जो गरीब समर्थक छवि बनाई थी उसे वे हमेशा कायम रखती थीं।

भाजपा, उस समय जनसंघ खूब उन पर व्यक्तिगत प्रहार करती थी। एक से एक गंदी बातें उनके लिए कही गईं। विधवा अशुभ होती है से लेकर महिला का नेतृत्व पुरुष के लिए शर्म की बात जैसी जाने कितनी बातें कही जाती थीं। उनकी नाक पर ईंट मारी गई। फिर नाक की चोट को लेकर मजाक बनाया गया। मगर इन्दिरा गांधी कभी इस जाल में नहीं फंसी। उन पर जब भी व्यक्तिगत प्रहार होते थे वे कहती थीं "मैं कहती हूं गरीबी हटाओ यह कहते हैं इन्दिरा हटाओ।"

दक्षिणपंथ मुद्दों से बचता है। वह व्यक्तिगत बहस मुबाहिसा चाहता है। अभी देखा होगा जब राहुल कमजोर लगते थे तो रोज यह बहस होती थी कि मोदी नहीं तो कौन? इस बहाने राहुल का चरित्रहनन किया जाता था। लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के बाद जब इन्हें अहसास हो गया कि राहुल बड़ी ताकत बन गए हैं तो इन्होंने राहुल पर हमला छोड़कर खुद को मुद्दा बना लिया।

कांग्रेस इसमें फंसती है। पहले कर्नाटक में खरगे ने एक शब्द सांप का बेवजह प्रयोग किया। कांग्रेस की समस्या यह है कि यहां कोई सेन्ट्रल थिंक टेंक ही नहीं है। किसी को मालूम ही नहीं कि क्या कहना है और उससे ज्यादा क्या नहीं कहना।

खरगे बहुत अनुभवी हो सकते हैं। मगर राजनीति में अनुभव बहुत सारे गुणों में से केवल एक है। सबसे बड़ी चीज तो राजनीतिक बुद्धि होती है। पोलिटिकल सेंस। क्या कहना है। और फिर वही बात कि क्या नहीं कहना। जैसे अच्छा वकील कभी अपनी ड्राफ्टिंग में एक भी शब्द अनावश्यक नहीं लिखता। आर्ग्यूमेंट में एक भी शब्द ज्यादा नहीं बोलता वैसे ही आज की राजनीति में जरूरत है।

भाजपा के पास जानकारी है। विश्लेषण है। नतीजों का अनुमान है। इनके पास क्या है? केजुअल एप्रोच! वहां एक छोटे नेता ने कहा सोनिया गांधी के खिलाफ यहां सारे नेता अपनी वफादारी साबित करने में लग गए। अरे सोनिया के बारे में तो 2004 से पहले यह सब कह चुके हैं। अब कुछ नया नहीं है। क्यों इस ट्रेप में फंसते हो। यहां तो महात्मा गांधी तक को गालियां दी जा रही हैं। और समझने की बात यह है कि बिना सोचे समझे नहीं। सोच कर। इससे उन्हें फायदा होता है।

कविता, शेरो शायरी, मुहावरे मुश्किल विधा है। जरा सा भी इधर उधर होने में नुकसान कर जाते हैं। मुहावरे, कहावतें एक क्षेत्र के दूसरे क्षेत्र में नहीं चलते। खरगे अध्यक्ष बनने के बाद अपने कर्नाटक की एक कहावत मोहरर्म, बकरी को बहुत सुनाते थे। मगर यहां उत्तर भारत में कोई समझ ही नहीं पाता था। उल्टा कुछ नेगेटिव अर्थ जरूर ले लेते थे।

अब कांग्रेसी किस का क्या समर्थक वर्ग है यह समझे बिना तर्क देने लगते हैं कि मोदी ने तो यह यह कहा। मगर इतनी सी बात उनकी समझ में नहीं आती कि क्या इससे मोदी का एक वोट भी कम हुआ!

मोदी के साथ मीडिया है। बहुत स्ट्रांग व्हट्सएप टीम है। वे अगर दिन को रात भी कहेंगे तो साबित कर दिया जाएगा। कांग्रेस के पास एक सोती हुई टीम और उसमें से कुछ उनकी तरफ झुकाव रखते हुए लोग हैं। राहुल के बयान को किस तरह तोड़ मरोड़कर आलू से सोना बनाने की कहनी प्रचारित की गई। क्या आपको मालूम है कि आज भी कांग्रेस में कई लोग इसे सही मानते हैं कि राहुल ने ऐसा कहा था। जिन लोगों पर जिम्मेदारी थी उन्होंने उस समय कुछ नहीं किया। झूठा वीडियो चलता रहा। आज भी चल रहा है।

इसलिए कांग्रेस को सोच समझ कर बोलना चाहिए। कर्नाटक में जब सब कुछ साजगार है तो चालीस परसेन्ट की सरकार, राहुल की पांच गारंटी, बेरोजगारी, महंगाई, अमुल का मुद्दा, भ्रष्टाचार के अलावा और कुछ बोलना क्यों?

राजनीति में एक हवा होती है। जो पहचानी जाती है। कर्नाटक में साफ दिख रही है। इसी तरह एक सीख होती है कि ज्यादा अक्ल नहीं लगाना। बाल बेट पर आ रही है। सीधे सीधे ग्राउन्ड शाट खेलते जाओ। नो रिस्क। जहां दो रन बनते हों वहां एक लो। चौका छक्का भूल जाओ। रन अपने आप आ रहे हैं। किसी अतिरिक्त प्रयास की जरूरत नहीं!

कर्नाटक की जीत एक बहुत बड़ी ताकत देगी। जिसे कहते है टर्निंग पाइंट। विपक्षी एकता एकदम से मजबूत होगी। राहुल की छवि निखरेगी। इसके बाद तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनाव में भाजपा से सीधा आमने सामने का मुकाबला है। तस्वीर तीनों जगह साफ है। अक्ल से साथ लड़ लिए, गुटबाजी पर काबू कर लिया तो पिछला 2018 का रिजल्ट दोहराया जा सकता है। और उसके बाद 2024 का लोकसभा चुनाव।

केजुअल एप्रोच कहीं नहीं चलेगी। बीजेपी का प्रबंध माइक्रो ( जमीनी, हर पैमाने पर) स्तर पर होगा। वहां मुकाबला नहीं कर सकते। केवल मुद्दों के चयन के आधार पर ही लड़ सकते हैं। वे धर्म पर जाएंगे। विपक्ष को जनता के मुद्दों पर केन्द्रीत रहना है। जातिगत जनगणना के सवाल को देखना है कि कितना धर्म की राजनीति के मुकाबले कारगर होता है।

मौका अच्छा है। बस उसका उपयोग करना आना चाहिए।


Full View


Tags:    

Similar News