इंदौर के नगरीय प्रशासन चुनाव में वोट प्रतिशत कम होने का एक कारण निमाडीजन की नाराजगी भी
इंदौर में नगरीय प्रशासन के चुनाव में मतदान का प्रतिशत सत्तर से पिछ्त्तर फीसदी तक हासिल करने के लिए तमाम दावे- वादे और जतन किए गये लेकिन इस मामले में सत्तारुढ राजनीतिक दल और इंदौर प्रशासन को मुंह की खानी पड़ी।
शहर का महापौर और पार्षद चुनने वाले इस चुनाव में वोट का प्रतिशत बढ़ाने के काफी प्रायस किए गये थे लेकिन इन सबके के बावजूद शहर में 60 फीसदी से कम ही मतदान हो पाया।
आपको ये जानकर बडी हैरानी होगी कि इस चुनाव में मतदान कम होने के पीछे इंदौर शहर में बसी निमाड़ अंचल की आबादी का नाराज होना भी एक बड़ा कारण है।
काबिलेगौर हो कि इंदौर शहर में निमाड़ अंचल के खरगोन, खंडवा, बड़वानी, बुरहानपुर और धार जिले से पलायन करके आने वाले सभी जाति और धर्म के लोग यहां बसते है। इन जिलों से सरोकार रखने वाले करीब 6 लाख निमाड़ी शहर में निवासरत है। हालाकि ये लोग ज्यादातर तंग बस्तियों के साथ ही शहर की पाश व बड़ी-बड़ी कालोनियों में निवासरत है।
काबिलेगौर हो कि शासन- प्रशासन की मंशा के अनुरुप इस चुनाव में भारी मतदान हो इसके लिए " निमाड़ महासंघ " ने निमाड़ अंचल के लोगों के बीच जाकर ज्यादा से ज्यादा मतदान हो इसके लिए समझाईश दी और मतदान करने के लिए प्रेरित किया।
निमाड़ महासंघ के प्रमुख संजय रोकड़े और उनके सहयोगियों ने जब शहर की निमाड़ बाहुल्य बस्तियों व कालोनियों में लोगों के बीच जाकर संपर्क कर "मतदान जरुर" अभियान के तहत वोट जरुर दे, और वोट की महत्ता को समझाया तो तमाम निमाड़ी बाशिंदों में मुख्यधारा के राजनीतिक दलों खासकर सत्तारूढ़ दल के प्रति खासी नाराजगी देखी गयी।
इस शहर के इन्द्रपूरी,खंडवा रोड की सभी कालोनियों, मुसाखेडी, मयूर नगर, शांति नगर, चंदन नगर, द्वारकापुरी, अहिरखेडी, वेलोसिटी टाकीज के पीछे की कालोनियों, तीन इमली काकड बस्ती, भावना नगर, राहुल गांधी नगर, कुशवाह नगर, बाणगंगा इलाके के अलावा दूसरी तमाम कालोनियों में बसे लोगों के बीच में से एक सुर में यही बात उभर कर सामने आयी कि इस शहर के बड़े राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने हमारी भारी उपेक्षा की।
यहां के नेताओं ने खासकर सत्तारूढ़ दल ने इतनी बड़ी आबादी को दुध में से मक्खी की तरह निकल कर फैक दिया है। जबकि आबादी के लिहाज से हमें भी प्रतिनिधत्व का अवसर देना चहिये था।
सत्तारूढ़ दल से सरोकार रखने वाले निमाड़ी नेताओं ने भी अपनी पीढा जाहिर करते हुए कहा कि आखिर उतनी बड़ी आबादी को हर बार नजर अंदाज क्यूं किया जाता है।
शहर के नेताओं के गुमान भरे रवैये को लेकर भी निमाड़ की जनता ने साफ साफ कहा यहां के नेताओं का घमंड का आलम ये था कि सीधे मुंह बात भी नही करते है।
बहरहाल, जब जब "निमाड़ महासंघ" ने अंचल के लोगों को शहर में राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने की बात भाजपा- कांग्रेस के नेताओं के सामने रखी तो न केवल क्षेत्रियतावाद का हवाला देकर नकार दिया बल्कि ये कह कर भी अपमानित किया गया कि मुट्ठी भर लोगों को शहर में राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात ही नही करना चाहिये। जिस तरह से दोनों प्रमुख दलों ने निमाड़ की आबादी की अवहेलना की उसी तरह से निमाडियों ने भाजपा के हवाई दावों की पोल खोल दी।
बता दे कि भाजपा ने जो बूथ मैनेजमेन्ट बनाया है उन बूथों के ज्यादतर कर्ताधर्ता निमाड़ी है। निमाडियों ने भाजपा की व्यूह रचना को धराशायी कर दिया।
असल में नीमाडियों के प्रति सत्तारूढ़ दल की अवेहलना भी मतदान का कम होने का एक अहम कारण बना है। आगे से शासन- प्रशासन और सत्तारूढ़ दल को कोई भी फैसला आबादी के लिहाज से लेना चाहिये वरना आगे भी मुंह की खानी पड़ेगी। कहना नही कि चुनाव परिणाम भी अपेक्षा के अनुरुप ना होकर काफी उलट पुलट नजर आयें।