बुजुर्गों ने कहा था घर में थाली, बर्तन बजाना गृह क्लेश का कारण है, तो क्या एमपी में बीजेपी की भी बजेगी थाली!
एक बार फिर घरों में थाली बजाए जाने की तैयारी शुरू हो रही है। थाली बजाना हो या बर्तन, पूर्वज कह गए हैं घरों में खाली बर्तन या थाली कतई नहीं बजाना चाहिए। इससे गृह-क्लेश तो होता ही है, साथ में लक्ष्मी भी रूठती है। इसीलिए परिवार में बच्चों को भी बुजुर्ग बर्तन बजाने के साथ ही बर्तन गिरने पर भी नाराज होते हैं। यह सब दरिद्रता के लक्षण माने जाते हैं। सदियों से यह लोकोक्तियां प्रचलित रही हैं। अब यह नहीं मालूम है कि वाकई इससे कुछ होता होगा, पर हिंदू धर्म में बुजुर्गों के विचारों को परिवार में सदैव आदर के साथ माना जाता है। अब बुजुर्ग ही थाली बजाने की बात करने लगें और हर परिवार में बर्तन बज जाएं तो यह दरिद्रता के लक्षण होते हैं। यदि आपके घर में पिछले कुछ महीनों में ऐसा लग रहा हो तो फिर अगली बार न बजाएं। इंदौर के एक महंत ने भी इस मामले में माना है कि घर में बर्तन बजाना शुभ नहीं है। यह सब कार्य घरों के बाहर हो सकते हैं। राजस्थान में थाली बजाई जाती हैं, परंतु वह कभी भी घर में नहीं बजाई जाती है। एक बार फिर पांच अगस्त को बर्तन-भांडे बजाने का आह्वान हो रहा है। आप तो खंजरी बजाइए, मंजरे बजाइए, शंख बजाइए, ताली बजाइए... बुजुर्गों की बात को ध्यान में रखते हुए थाली मत बजाइए।
भाजपाइयों में ही सोशल मीडिया पर घमासान...
इन दिनों भाजपा के अंदर इस कदर उथल-पुथल मची हुई है कि तमाम बड़े दिग्गज नेता भी सोशल साइड पर संगठन और सत्ता पर जमकर उंगली उठा रहे हैं। एक बड़े नेता ने तो यहां तक लिख दिया कि दुकानदार और व्यापारियों को जहर दे दो। कभी सोशल मीडिया पर भाजपा के बड़े नेताओं की पोस्ट आने पर कोई टिप्पणियां नहीं होती थीं, परंतु अब जमकर खिल्ली उड़ रही है। दो दिन पूर्व संगठन मंत्री को भी बैठक में कहना पड़ा कि सोशल मीडिया पर टिप्पणियां न करें, इससे सरकार और संगठन की छवि खराब हो रही है। आश्चर्य की बात यह है कि पदों पर बैठे लोग संगठन की धमकी देते हैं तो पदों से बाहर हो चुके कार्यकर्ता अनुशासनहीन माने जा रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस से भाजपा में आया रायता इस कदर फैल गया है कि पार्टी कार्यकर्ता ही अब इस रायते को पूरी तरह फैलाकर ही चैन से बैठेंगे।
दादा दयालु पीछे से तीर चला रहे है...
इन दिनों आर.के. स्टूडियो हर कदम फूंक-फूंककर रख रहा है। शहर पर नजर भी है और नब्ज पर हाथ भी है। चूंकि अगर कोई मैदान पकड़ा तो बैठे-बिठाए सरकार अपनी है, नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। कलेक्टर से तमाम संबंध खराब होने के बाद भी खुद मोर्चा नहीं खोला जा रहा है। मिल क्षेत्र की दुकानों का मामला हो या फिर अन्य मामले, स्वयं सामने न आकर कठपुतलियों को काम पर लगाया जाता है। नई कठपुतली में नएृ-नवेले अध्यक्ष गौरव रणदिवे इन दिनों उनके संकटमोचक के रूप में तैयार किए गए हैं। बड़ा मामला हो तो अच्छी-खासी चाभी भरकर संजू भिया को लगाया जाता है। उनके पीछे नल-नील अपने खड़े कर दिए जाते हैं। दो दिन पहले जिलाधीश कार्यालय में हुई नौटंकी के सूत्रधार कौन हैं, यह सबको मालूम है, पर क्या करना है, काम भी हो रहा है और अंगड़ाई भी ली जा रही है... तो चलने दो। महाभारत में भी पीछे से तीर चलाने का ज्ञान जरूरत पड़ने पर दिया गया है।
पेलवान के मुंह में घी-शक्कर...
दो दिन पहले हुए सांवेर के एक कार्यक्रम में तुलसी पेलवान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बताते हुए कहा कि वे एक और कार्यक्रम में शामिल होने आएंगे। इसके बाद देर रात सिंधिया समर्थक कई नेताओं ने पेलवान को बधाई देते हुए कहा कि आप के मुंह में घी-शक्कर, भगवान आपकी सुने।