बड़ा खुलासा: कोरोना के धक्के से पूरी दुनिया में जितने लोग एक झटके में गरीब हो गए, उनमें से आधे से ज्यादा (7.5 करोड़) सिर्फ भारत में थे
कोई और देश होता तो इस खबर पर बहस होती, सवाल पूछे जाते, सफाई दी जाती। लेकिन बलिहारी है मेरे देश की। यहां यह खबर सन्नाटे में डूब गई।
पिछले हफ्ते एक चौंकाने वाली खबर आई: कोरोनावायरस के धक्के से पूरी दुनिया में जितने लोग एक झटके में गरीब हो गए उनमें से आधे से ज्यादा सिर्फ भारत में थे। हमारे यहां लगभग साढ़े सात करोड़ लोग पिछले साल गरीबी की गर्त में धकेले गए। कोई और देश होता तो यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनती, टीवी पर बहस होती, सवाल पूछे जाते, सफाई दी जाती। लेकिन बलिहारी है मेरे देश की। यहां यह खबर सन्नाटे में डूब गई। बस एक दो अखबारों ने इस खबर पर ध्यान दिया। एक टीवी चैनल ने इस पर चर्चा करने के लिए भी मुझे बुलाया लेकिन उसके दस मिनट पहले विषय बदलकर मुंबई के पूर्व पुलिस प्रमुख का सनसनीखेज पत्र पत्र करना पड़ा। मेरा भारत महान!
यह खबर एक अमेरिकी संस्था प्यू (Pew) रिसर्च सेंटर की विश्वव्यापी रिपोर्ट से निकली थी। यहां स्पष्ट करना जरूरी है यह रपट दुनिया भर के गरीबों के किसी नए सर्वेक्षण पर आधारित नहीं है। इस रपट में दुनिया के तमाम देशों में आय के बंटवारे के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि कोरोनावायरस का उस देश के अलग अलग वर्ग की आय पर क्या असर हुआ होगा। इस अनुमान का आधार है हर देश की जीडीपी यानी राष्ट्रीय आय पर पिछले साल हुई कमी या बढ़ोतरी का आंकड़ा। वर्ष 2020 दुनिया भर की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत खराब रहा। जहां हर साल राष्ट्रीय आय में कुछ ना कुछ वृद्धि होती है, वहां पिछले साल दुनिया के अधिकांश देशों की राष्ट्रीय आय घट गई। विश्व बैंक का अनुमान है पिछले वर्ष में हमारी राष्ट्रीय आय बढ़ने की बजाय लगभग 10% कम हो गई।
यह रपट राष्ट्रीय आय में हुई इस कमी का अलग-अलग वर्गों पर हुए असर का अनुमान लगाती है। रपट मान कर चलती है कि अगर पूरे देश की आय 10% कम हुई है तो हर परिवार, हर व्यक्ति की आय भी 10% कम हुई होगी। लेकिन दुनिया का अनुभव बताता है कि सबसे गरीब वर्ग को सामान्य से ज्यादा धक्का पहुंचता है, अमीरों को तो संकट में भी मुनाफा होता है। पिछले दिनों खबर आई कि पिछले साल गौतम अदाणी की आय और संपत्ति दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ी है। इसलिए कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि गरीबों की स्थिति इस रपट में बताए से भी ज्यादा बुरी है।
फिलहाल इस रपट को मानकर चलें। इस विश्लेषण के अनुसार पिछले साल पूरी दुनिया में लगभग 13 करोड़ मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग गिरकर गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गए। (यह रपट प्रतिदिन 2 डॉलर यानी ₹145 से कम पर गुजारा करने वाले को गरीब परिभाषित करती है) इसमें से लगभग 7.50 करोड़ सिर्फ भारत से थे। पूरी दुनिया की आबादी में भारत का हिस्सा लगभग 18% है। लेकिन पिछले साल गरीबी के गर्त में गिरने वालों में 57% भारत से थे। दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का ख्वाब देखने वाले और कोरोनावायरस से प्रभावी तरीके से निपटने का दावा करने वाले देश के लिए यह आंकड़ा बहुत बड़े सवाल खड़ा करता है।
इसी असर को दूसरे छोर से भी देखा जा सकता है। इस रपट के मुताबिक पिछले साल भारत के मध्यम और ऊपरी वर्ग की संख्या में बहुत भारी गिरावट आई है। लॉक डाउन से पहले हमारे देश लगभग 12.5 करोड़ लोग ऐसे परिवार में रहते थे जिसे संपन्न परिवार कहा जा सकता है, जिस परिवार की मासिक आय एक लाख रुपए से अधिक है। पिछले वर्ष में यह संख्या घटकर 8.5 करोड़ हो गई। यानी एक साल में ही मध्यम या उच्च वर्ग की जनसंख्या चार करोड़ घट गई। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है की वर्ष 2020 ने पिछले 20 वर्ष की आर्थिक वृद्धि के फायदे को एक ही झटके में खत्म कर दिया और देश को वापस उस बिंदु पर लाकर खड़ा कर दिया जहां वह इस शताब्दी के आरंभ में खड़ा था।
उम्मीद करनी चाहिए मीडिया में ना सही, अर्थशास्त्रियों में इस रिपोर्ट को लेकर गंभीर बहस होगी। बेशक अर्थशास्त्री इस रपट को अंतिम सत्य ना मान कर राष्ट्रीय आय के किसी जमीनी सर्वेक्षण का इंतजार करेंगे। अफसोस की बात है कि वर्ष 2011 के बाद से राष्ट्रीय सैंपल सर्वे की मासिक आय व्यय सर्वेक्षण की रपट सार्वजनिक नहीं हुई है। एक सर्वेक्षण हुआ, लेकिन उसकी रिपोर्ट तकलीफदेह थी इसलिए रपट को मोदी सरकार कूड़ेदान में डलवा दिया। जब कभी राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण पूरा सच देश के सामने लाएगा तो सच इस रपट से भी खौफनाहक निकलेगा।
पिछले साल जब पूरे देश ने प्रवासी मजदूरों के पलायन के दृश्य देखे थे तब यह सवाल उठा था कि भारत से ज्यादा गरीब अफ्रीका के देशों से भी ऐसी ह्रदय विदारक तस्वीरें देखने को क्यों नहीं मिली? प्यू रिसर्च सेंटर की नवीनतम रपट हमें दुबारा ऐसे ही कड़े सवाल पूछने पर मजबूर करती है: कोरोनावायरस का आर्थिक धक्का पूरी दुनिया में सबसे अधिक भारत पर ही क्यों पड़ा? क्या महामारी का प्रकोप भारत में बाकी दुनिया से ज्यादा था? याकि भारत में जिस तरह बिना तैयारी और बेरहमी से लॉकडाउन किया गया वह इस धक्के के लिए जिम्मेदार है? देश की हर छोटी बड़ी उपलब्धि के लिए श्रेय लेने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कड़े प्रश्न से पल्ला नहीं झाड़ सकते।
साभार भास्कर