चातुर्मास: आज आषाढ़ मास की एकादशी है इसे चातुर्मास, हरिशयनी, देवशयनी, पदमा एवं शयन एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है तथा नदियों में गंगा को जो स्थान प्राप्त है वही स्थान व्रतों में एकादशी को प्राप्त है।
कहा जाता है कि जिसकी कोई कामना किसी भी कारण वश पूरी न हो रही हो वह एकादशी का व्रत सच्चे मन से करें तो उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती।
मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन चार महीने के लिए भगवान विष्णु शयन अवस्था में चले जाते हैं। इसे चातुर्मास भी कहते हैं। चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, एकादशी की रात अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। एकादशी की रात जागरण करके हरी नाम संकीर्तन करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है।
भूलकर भी ना करें ये कार्य:-
# जुआ खेलने वाले का घर-परिवार कभी बस नहीं सकता। वैसे तो इसे कभी खेलना नहीं चाहिए लेकिन एकादशी तिथि पर स्वयं पर नियंत्रण रखें और यह खेल न खेलें।
# पान नहीं खाना चाहिए इससे रजोगुण में बढ़ौतरी होती है। किसी को भेंट भी न करें।
# किसी की बुराई न करें बल्कि उसके सद्गुणों की ओर ध्यान दें।
# चोरी करने से इस लोक में ही नहीं परलोक में भी दुख भोगना पड़ता है। इस बुरी आदत से एकादशी वाले दिन ही नहीं बल्कि सदा दूर रहें।
# हिंसा से दूर रहें, मन में बुरे भाव आते हैं।
# संभोग न करें। ब्रह्मचार्य का पालन करें।
# क्रोध न करें, संयम से काम लें।
# दातुन, मंजन, टूथ पेस्ट का प्रयोग न करें।
# निंदा, चुगली करने से बचें।