पूरा प्रशासनिक अमला बीजेपी के इशारे पर एक संपादक को नहीं बोलने दे रहा, डीएम साहिबा खड़ी खड़ी मुस्करा रही है
अभिषेक श्रीवास्तव
ये तस्वीरें कल (गुरुवार 17 अगस्त, 2017 को) धौलादेवी में पंचेश्वर बांध के लिए की गई कथित 'जन-सुनवाई' की हैं। जब नैनीताल समाचार के संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता राजीव लोचन शाह ने अपना पक्ष रखना चाहा, तो सत्तारूढ़ भाजपा के इशारों पर प्रशासन ने उन्हें बोलने से एकदम रोक दिया। यह अकेली तस्वीर इन कथित 'जन-सुनवाइयों' की पोल खोलने के लिए काफी है।
साह जी से माइक छीन रहे लोगों में काले कोट में एसडीएम हैं जो इस कार्यक्रम का संचालन भी कर रहे थे। उनके अलावा पुलिस के नुमाइंदे हैं और इसके तुरंत बाद जो भीड़ इन पर झपटी वो भाजपा के पूर्व-प्रशिक्षित कार्यकर्ता थे। इन सबने मिलकर साह जी को नहीं बोलने दिया। संचालन कर रहे इस एसडीएम का तर्क था कि बाहर से आकर लोग नहीं बोलेंगे।
संचालन कर रहे इस एसडीएम को ईआईए नोटिफिकेशन (जिसके तहत यह जन-सुनवाई हो रही थी) की शायद abc भी नहीं मालूम थी। इस पर्यावरणीय जन-सुनवाई में प्रशासन किसी को भी बोलने से नहीं रोक सकता लेकिन खुद संचालक एसडीएम यह काम कर रहे थे। इससे साफ पता चलता है कि प्रशासन कितना संवेदनशील और जवाबदेह था।
कुछ देर बाद जब कथित 'जन-सुनवाई' फिर शुरू हुई तो पैनल में मौजूद और ज़िले की डीएम मोहतरमा ने बताया, "अगर अमेरिका से आकर भी कोई इस जन-सुनवाई में बोलना चाहेगा तो हम टेक्निकली उसे रोक नहीं सकते।"
उनके इस प्रशासन ने उनके ही सामने उत्तराखंड के सरोकारों से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार के साथ अभद्र व्यवहार करते हुए उन्हें बोलने का मौका ना देकर सभागार से बाहर कर दिया। प्रशासन ने कानून की खुद धज्जियां उड़ा दीं और डीएम मोहतरमा मुस्कुराती रहीं।
इस तरह जन-सुनवाई में सिर्फ उनकी सुनी गई जिनकी सत्तारूढ़ भाजपा के ठेकेदारों को मंजूर थी।
इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि इन कथित 'जनसुनवाइयों' की पोल सबके सामने खुल सके और इस एसडीएम के इस्तीफे की भी मांग होनी चाहिए जिसने ईआईए नोटिफिकेशन की प्रक्रियाओं का सारेआम मखौल उड़ाते हुए साह जी के साथ इस तरह की अभद्रता की।
पंचेश्वर बांध की जन सुनवाई में हुए छल, बल और धोखे पर जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) की ओर से आज जो प्रेस विज्ञप्ति आई है, उसे नीचे पढ़ा जा सकता है।
पंचेश्वर बांध की जनसुनवाइयां छल-बल व राजनैतिक दवाब में पूरी की गईं
प्रभावित जनता के साथ धोखा रही!
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में 311 मीटर ऊंचे पंचेश्वर बांध की 9, 11 व 17 अगस्त को चम्पावत, पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा जिलों में हुई जनसुनवाइयां छल-बल व राजनैतिक दवाब में पूरी की गई हैं। सत्ताधारी दल के लोगों ने पूरी तरह से मंचों पर कब्जा रखा। जनसुनवाई की स्वतंत्र प्रक्रिया को हर जगह बाधित किया। प्रशासन भी पूरी तरह दवाब में रहा।
हम तीनों जिलों के जिलाधिकारियों, श्री रविशंकर जी, पिथौरागढ़ 24-7-2017 को; श्री इकबाल अहमद जी, चम्पावत को 25-7-2017 व श्रीमती आशीष जी, अल्मोड़ा को 3-7-2017 को मिले थे। हमने सभी जिलाधिकारियों को 14-09-2006 की अधिसूचना के बारे में विस्तार से बताया, कानूनी व व्यवहारिक समस्याओं के बारे में भी बताया। हमने निवेदन किया था कि वे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सदस्य सचिव को भी इन परिस्थितियों से अवगत कराएंगे। अधिसूचना के अनुसार राज्य प्रदूषण बोर्ड का सचिव, जिलाधीश की सिफारिश पर जनसुनवाई की तारीख व समय स्थान बदल सकता है। किन्तु तीनों ही जिलाधीशों ने जमीनी सच्चाई को पूरी तरह से नकार कर मात्र जनसुनवाइयों की कागजी प्रक्रिया पूरी की। 9-8-217 को चम्पावत, 11-8-2017 को पिथौरागढ़ व 17.8.2017 को अल्मोड़ा में हुई जनसुनवाइयों में यह बहुत साफ तरह से आया है।
हम सभी जिलों के अनेक गांवों में होकर आए हैं। हमने पाया कि जनसुनवाई की जानकारी बस एक हवा की तरह उन्हें मिली है। कहीं पटवारी ने ग्राम प्रधान को फोन करके बताया है तो कहीं लोगो को अखबार से खबर मिली है। किसी भी प्रभावित ग्राम प्रधान को अधिकारिक रूप से एक महीना पहले ना तो जनसुनवाई की कोई जानकारी दी गई, ना ही जनसुनवाई की सूचना का पत्र गया। चम्पावत जिले में प्रभावित ग्राम प्रधानों से 30 जुलाई के बाद जिला ब्लॉक कार्यालय में एक ही पत्र पर हस्ताक्षर लिए गए हैं।
अल्मोड़ा, चम्पावत व पिथौरागढ़ जिलों में स्थिति एक जैसी ही रही। बांध प्रभावित क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं की स्थिति निम्न स्तर पर है। ऐसे में प्रभावित क्षेत्र के लोगों से आप ये कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि अंग्रेजी में लिखी गई पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टो पर कम शिक्षित या अनपढ़ लोग, जिनके पास अख़बार भी नहीं पहुंचता, उस पर अपनी राय देंगे?
तेज बारिश का समय था, प्रशासन ने स्कूलों की छुट्टी का निर्देश दे रखा था। जनसुनवाई स्थल गांव से बहुत ही दूर रखे गए। प्रभावितों को कई किलोमीटर की लम्बी चढ़ाई चढ़कर सड़क पर पहुंचना हुआ, फिर जीप आदि में पैसा खर्च करके वे जनसुनवाई स्थल तक कुछ ही गांवों के कुछ ही लोग पहुंच पाए।
चम्पावत व पिथौरागढ़ की जनसुनवाई के मंच पर ये नहीं मालूम पड़ा कि जनसुनवाई का पैनल कौन सा है? मंचों पर स्थानीय विधायक, ब्लाक प्रमुख तथा सांसद प्रतिनिधि मौजूद थे। जनसुनवाई में प्रभावितों ने पुनर्वास के बहुत सतही प्रश्न उठाए। मंचासीन लोगों ने बार-बार पुनर्वास से जुड़ी बातों को दोहराया व आश्वासन दिया जिसका जनसुनवाई से कोई मतलब नहीं था। एक प्रकार से यह लोगों पर एक दवाब लाने की कोशिश थी। पुनर्वास के संदर्भ में भरोसे का भ्रम पैदा करने की कोशिश थी। जनसुनवाई बन्द हॉल में हुई। मंच से यह भी कह गया कि जो सवाल करना चाहता है वो बाहर जाए। बाहर टीवी लगाकर लोगों को बस देखने सुनने का मौका दिया गया किन्तु अन्दर की सारी कार्यवाही कैमरे पर नहीं थी।
पीएसी, स्थानीय व अन्य तरह की पुलिस के महिला व पुरुष जवान काफी संख्या में तीनों ही जनसुनवाइयों में थे। ऐसा लग रहा था कि किसी बहुमूल्य वस्तु की नीलामी प्रक्रिया हो रही हो। जनसुनवाई के हॉल में भी पुलिस अधिकारी मौजूद रहे जो बोलने वालों को नियंत्रण में रख रहे थे।
सत्तापक्ष के विधायकों व उनके अन्य साथियों को बार-बार देर तक बिना किसी समय सीमा के बोलने दिया गया जबकि जनसंगठनों के लोगों को बात रखने पर रोका-टोका और धमकाया गया।
अल्मोड़ा की जनसुनवाई में वरिष्ठ समाजकर्मी राजीव लोचन शाह को उपजिलाधिकारी ने सत्तापक्ष के लोगों के साथ बलपूर्वक रोका व माइक तक छीन लिया जबकि जिलाधिकारी ने कहा था कि हम सबको सुनेंगे, चाहे वो अमेरिका से ही क्यों ना आया हो। जिलाधिकारी ही जनसुनवाई पैनल की अध्यक्ष थी, तो फिर जनसुनवाई क्या होती।