समाज की सबसे उपेक्षित जाति चांडालों को भी धर्म दीक्षा देकर तथागत एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत की. इस तरह का प्रसंग तथागत के जीवन में अनायास ही आ गया. यह प्रसंग उस समय का है, जब भगवान् बुद्ध श्रावस्ती के जेतवनाराम में विश्राम कर रहे थे. इसी दौरान उनका परम शिष्य आनंद नगर भ्रमण करते- करते दूर निकल गये. अधिक देर हो जाने एवं गर्मी व् थकावट के कारण उन्हें प्यास लग आई. उन्होंने इधर-उधर देखा. उन्हें एक स्त्री घड़े में पानी भरते दिखाई दी. वे उसके समीप गये और पानी पिलाने का आग्रह किया. उस स्त्री ने मना किया और कहा कि हम लोगों के हाथ का लोग पानी नही पीते. हम नीची जाति की हैं. आनंद ने कहा कि मुझे तुम्हारी जाति से क्या लेना-देना, तुम तो मुझे पानी पिला दो. मुझे बहुत जोर की प्यास लगी है. बहुत आग्रह करने के बाद उसने अपने घड़े से पानी पिला दिया. पानी पिलाने के दौरान वह आनंद के विचार सुन कर बहुत प्रभवित हुई और मन ही मन उन्हें अपना जीवन साथी बनाने का निश्चय कर लिया. घर लौटने के बाद वह जमीन पर लेट गयी और रोने लगी. उसकी माता ने जब उसका कारण पूछा, तो उसने जो बताया, उसे सुन कर वह सन्न रह गयी और कहा कि तुम्हारा विवाह उस व्यक्ति से संभव नही है. यह सुन कर वह बहुत दुखी हुई. उसने खाना-पीना भी त्याग दिया. उसने अपनी माँ को जादू-टोने से उसे बस में करने की सलाह दी. अपनी पुत्री के प्रेम में आकर उसने कहा कि देखती हूँ. उसकी माँ ने आनंद को अपने घर भोजन पर बुलाया और अपनी लड़की के विवाह का प्रस्ताव रखा. आनंद ने कहा कि मैं तो ब्रह्मचारी हूँ, आपकी पुत्री से विवाह नहीं कर सकता हूँ. उसने अपने पुत्री को आनंद का उत्तर बताया. फिर लड़की के आग्रह पर उसने हर तरह से आनंद को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया. किन्तु वह सफल नही हुई. फिर उसकी माँ ने जादू-टोने के प्रभाव से आग जला दी और धमकी दी यदि तुम मेरी बेटी से विवाह करने के लिए हाँ नहीं करते हो, तुन्हें जला दूंगी. लेकिन आनंद ने फिर अपनी असमर्थता जाहिर की. वापस लौट कर आनंद ने अपनी सारी व्यथा तथागत को कह सुनाया.
दूसरे दिन वह लड़की आनंद को खोजते हुए जेतवन पहुँची, जहाँ तथागत विहार कर रहे थे. एक बार जब आनंद ने उस लड़की ने मना किया, और वह नहीं मानी, तो तब आनंद फिर तथागत के पास गये और सब कह सुनाया. तब तथागत ने उस लड़की को बुला भेजा. जब वह लड़की आई, तब तथागत ने उससे पूछा कि तू आनंद का पीछा क्यों कर रही है ? लड़की ने कहा – मैं उससे विवाह करना चाहती हूँ. तथागत ने फिर कहा कि वह भिक्षु है. उसके सर पर बाल नहीं है. यदि तुम भी उसकी तरह मुंडन करा लो, तो मैं इस बारे में देखता हूँ कि क्या कर सकता हूँ. लेकिन इसके लिए तुम्हे अपनी माँ की अनुमति लेनी होगी. माँ के विरोध के बावजूद भी उसने मुंडन करवा लिया. और तथागत के पास पहुँची. उन्होंने उस लड़की से पूछा कि तू आनंद के किस अंग से प्यार करती है? लड़की ने कहा कि मैं उनके नाक. मुंह. कान, आँख और उनकी चाल से प्यार करती हूँ. तथागत ने कहा कि क्या तुम जानती हो कि आँखे आंसुओं का अड्डा है. नाक सीढ का घर है. मुंह में हेमशा थूक भरा रहता है. कानों में मैल ही मैल होता है और शरीर मल-मूत्र का खजाना मात्र है. इन बातों का लड़की के ऊपर गजब का प्रभाव पड़ा और उसने आनंद से शादी करने का विचार त्याग दिया. वह तथागत के शरणागत हो गयी. इसके बाद उस चंडालिन को तथागत ने दीक्षा प्रदान की. इस तरह से सबसे निकृष्टतम समझी जाने वाली जाति को भी दीक्षा देने का सिलसिला शुरू हुआ. इस तरह से तथागत ने समाज में उस परिपाटी की शुरुआत की, कि यहाँ सभी बराबर हैं, और सभी पूजा-अर्चना एवं दीक्षा लेने का अधिकार है.
प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गाँधीवादी-समाजवादी चिंतक, पत्रकार व् इंटरनेशनल को-ऑर्डिनेटर – महात्मा गाँधी पीस एंड रिसर्च सेंटर घाना, दक्षिण अफ्रीका