IPC में कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जिसके अनुसार मुकदमा होने के बाद गिरफ्तारी आवश्यक हो

Update: 2017-07-09 08:34 GMT

IPC में कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जिसके अनुसार मुकदमा होने के बाद गिरफ्तारी आवश्यक हो। गिरफ्तारी का उद्देश्य अपराधी द्वारा कोई और अपराध न किया जाय उससे रोकना ,गवाहो को धमकी न दे ,साक्ष्य को नष्ट न करे या फरार न हो इसके लिए है। दिक्कत यह है कि अनुसन्धान करने वाली एजेंसी से लेकर न्यायपालिका में बैठे लोग भी कानून के प्रावधानों को अच्छी तरह नहीं समझ पाते है।

एडवोकेट मदन तिवारी ने कहा कि मेरे सामने 3 साल पहले एक मामला आया था, कुर्की निकल गई थी, पुलिस अभियुक्त के घर पहुची हुई थी, मैंने न्यायलय को कुर्की रोकने के लिए रिक्वेस्ट किया ,आधार था कि अभियुक्त की अग्रिम जमानत याचिका उच्च न्यायलय में लंबित है इसलिए अभियुक्त को फरार नहीं ट्रीट किया जा सकता है.

he has already surrendered before law by way of ABP,not necessary to surrender or appear before police .
घण्टे भर की बहस और रूलिंग ,कानून के प्रावधान दाखिल करने के बाद न्यायलय ने रोक लगाई तथा सरकारी वकील को तुरन्त मोबाइल से इसकी सुचना पुलिस को देने के लिए कहाँ ।
गंभीर बहस के दौरान कोर्ट ने चुटकी भी ली और हंसी भी हुई। कोर्ट ने कहा अगर कुर्की हो गया होगा तब ?
मैंने भी हंसते हुए कहा आपके आदेश तक पुलिस कुछ न करे यह व्यवस्था कर दिए है।
यह गया के न्यायालय के इतिहास में पहली बार हुआ था। अफवाह भी फैल चुकी थी, बहुत हाई लाइट और वीवीआईपी लोगो का मामला था। उच्च न्यायलय में जज के खिलाफ शिकायत भी हुई।

मदन तिवारी बोले खैर फ़िलहाल गिरफ्तारी पर बात करता हूँ। अनुसन्धान एजेंसी और न्यायलय दोनों की आदत हो गई गिरफ्तारी करने की। आश्चर्य होता है जब न पुलिस बता पाती है प्रावधान न न्यायालय कि आखिर गिरफ्तारी ऊपर बताये परिस्थितियों के अतिरिक्त क्यों जरुरी है और कहाँ है  प्रावधान की गिरफ्तारी अनिवार्य ( mandatory ) है।

Tags:    

Similar News