पुलिस जानती है बराला जैसे लुच्चों को औकात में लाना - पूर्व डीजी, हरियाणा पुलिस
हरियाणा पुलिस के पूर्व डीजी वीएन राय से जानिए कि कैसे हरियाणा में भाजपा नेता के बेटे विकास बराला के बचाव में केंद्र और राज्य सरकार पुलिसिया जांच में कितनी अड़चनें डाल रही हैं जिसके कारण पुलिस उनकी भोंपू बन गयी है.
वीएन राय पूर्व डीजी, हरियाणा पुलिस, लॉ एंड आॅर्डर
सुनने में कानों को अच्छा लगता है जब सरकार का सर्वेसर्वा कहे कि क़ानून अपना काम करेगा. मुख्यमंत्री खट्टर ने भी यही कहा. बस यहाँ पेंच सत्ता समीकरण में फंस जाता है- कानून को काम करने दोगे, तभी तो! बहुचर्चित वर्णिका प्रसंग में चंडीगढ़ पुलिस शुरुआत में अपना काम करने में कम नहीं थी, बस अचानक सबने पाया कि कानून को अपना काम करने नहीं दिया जा रहा.
यानी, एक ओर हैं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला जो अपने कलंकित बेटे विकास बराला को सामाजिक मर्यादा का आदर्श सिद्ध करने पर तुले हुए हैं.तमाम संघी और भाजपाई,बेशर्म पार्टी अनुशासन का लबादा ओढ़े उनके समर्थन में कमर कसे देखे जा सकते है.जबकि,दूसरी ओर,प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शील भंग और अपहरण प्रयास के इस संगीन मामले में पार्टी की 'नैतिक' भंगिमा के अनुरूप आगे बढ़कर कानूनी मर्यादा की आड़ ले ली है.
चंडीगढ़ पुलिस तो सीधे मोदी सरकार के केन्द्रीय गृह मंत्रालय के नीचे काम करती है. एसएसपी चंडीगढ़ ईश सिंघल की मानें तो राजनाथ सिंह की पुलिस किन्हीं तकनीकी पहलुओं की अनिश्चित काल तक जांच करने के बाद ही तय कर पायेगी कि दोनों आरोपियों पर कानून की क्या धाराएँ लगाईं जा सकती हैं. जाहिर है सिंघल कानून-व्यवस्था की वह पारदर्शी भाषा तो नहीं ही बोल पा रहे जो पीड़ित व्यक्ति को आश्वस्त कर सके.
मैं स्वयं वर्षों हरियाणा पुलिस अकादमी डायरेक्टर रहने के बाद, राष्ट्रीय पुलिस अकादमी का भी डायरेक्टर रहा हूँ. समझ में नहीं आता इन नौजवान आईपीएस अफसरों को ऐसे राजनीतिक मुहावरे बोलना कौन सिखा देता है? वरना,क्या पुलिस को एफआईआर दजे करते समय सही धाराएं लगानी नहीं आतीं? क्या पूरा अनुसन्धान ख़त्म होने पर ही आपराधिक धाराएं लगाने का नया 'तकनीकी' रिवाज चल पड़ा है?
अस्सी-नब्बे के दशक में मैं भी कुरुक्षेत्र, रोहतक और करनाल जिलों का एसपी रहा हूँ, और वहां के नागरिक शायद आज भी बता देंगे कि बराला जैसी लुच्चागिरी के लिए कानून-व्यवस्था की भाषा कैसी होनी चाहिये. मई, 1992 में रोहतक शहर में सैकड़ों लोग गवाह रहे जब इसी तरह एक लड़की के अपहरण के बाद ऐसे ही राजनीतिक पहुँच वाले चार लुच्चे गिरफ्तार होने की कशमकश में लम्बे समय तक अस्पताल में रहे.
चंडीगढ़ में उस रात कोई कशमकश नहीं हुई और विकास बराला और उसका साथी थाने से ही जमानत कराकर घर चले गए. क्या चंडीगढ़ पुलिस बतायेगी कि शील भंग के ऐसे जघन्य मामलों में उसने इससे पहले कितने अपराधियों की थाने में जमानत ली है? आधी रात में सड़क पर अनजान लड़की की कार जबरदस्ती रोककर उसके दरवाजे को बलात खोलने की कोशिश नशे में धुत आरोपियों के किस इरादे की सूचक है?
बलात रोकने और अपहरण की कोशिश की धाराएँ ही इस संगीन अपराध को परिभाषित कर सकती हैं. दोनों ही एफआईआर से नदारद हैं? चंडीगढ़ पुलिस के लिए रातों-रात अलग अपराध-दंड संहिता गढ़ पाना तो संभव नहीं था, जाहिर है 'संस्कारी' खट्टर सरकार का दबाव उन पर भारी पड़ा.
फिलहाल पार्टी के चेले-चपाटों की ट्रोल फ़ौज द्वारा वर्णिका और उनके पिता के विरुद्ध चरित्र हनन अभियान और सरकारी महिला आयोगों और भाजपायी महिला नेताओं की असह्य चुप्पी के बीच, असली 'संस्कारी' सवाल उठाया है प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष रामबीर भट्टी ने. आधी रात को लड़की सड़क पर क्या कर रही थी, उसके मां-बाप को उसका अता-पता था? आखिरकार,संघी-भाजपायी परंपरा में दोष पीड़ित लड़की का ही तो बनेगा.
वर्णिका ने एक टीवी कार्यक्रम में इस 'संस्कारी' सवाल का दो टूक जवाब दिया, उस रात उनसे तो किसी को खतरा नहीं हुआ था, फिर यह सवाल उनसे क्यों? वर्णिका का प्रति प्रश्न था- मेरे पिता को तो पता था कि मैं कहाँ हूँ, क्या आरोपियों के पिता भी जानते थे कि आधी रात को उनके लड़के कहाँ थे और क्या कर रहे थे?
इसमें तनिक भी शक नहीं कि आज के जमाने की वर्णिकायें, रामबीर जैसे तमाम 'संस्कारियों' को करारा जवाब देने में समर्थ हैं.बड़ा सवाल है, आज की 'कानून अपना काम करेगा' वाली सरकारें, तकनीकी भाषा बोलने वाली पुलिस और शक्तिशाली सुभाष बराला जैसे अभिभावक वर्णिका के निम्न सवाल का जवाब देने योग्य कब हो पायेंगे?
वर्णिका कहती हैं, 'मैं चकित हूं कि जिस शहर में हर रेडलाइट पर कैमरा लगा है और हर 200 मीटर पर पुलिस वाले हैं वहां इन लड़कों ने कैसे सोच लिया कि ये मेरी कार में घुस सकते हैं या मुझे अपनी कार में खींच सकते हैं. सिर्फ इसलिए कि वे एक ताकतवर परिवार से हैं. ऐसा लगता है कि मैं एक आम आदमी की बेटी न होने की वजह से खुशकिस्मत हूं नहीं तो इन वीआईपी लोगों के खिलाफ खड़ा होने की उनके पास क्या ताकत होती है. मैं इसलिए भी खुशकिस्मत हूं क्योंकि मैं रेप के बाद किसी नाले में मरी नहीं पड़ी हूं. अगर ये चंडीगढ़ में हो सकता है तो कहीं भी हो सकता है."