छठपूजा हमारे हिंदू धर्म के पवित्र पूजाओं में से है। यह भगवान सूर्य देव और छठी माता के पूजन से संबंधित है। दीपावली से ठीक छह दिन बाद यह चार दिवसीय पर्व है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्टी को यह पर्व मनाया जाता है। आमतौर पर यह पर्व उत्तर भारत में खासकर बिहार,झारखंड और उत्तर प्रदेश में यह काफी लोकप्रिय है।महिलाएं अपने परिवार और पुत्रों की सलामती,सुखसमृद्धि के लिए यह पर्व मनाती हैं। छठ पर्व का इतिहास क्या है?आइए जानते हैं।
भगवान सूर्य को पुराणों में आरोग्य देवता माना गया है।ऐसा माना जाता है कि उनमें आरोग्य देने की असीम क्षमता है। उनकी पूजा से कई प्रकार के शारिरिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। ब्रह्म वैवर्त पुराणों में देवी देवोसेना का जिक्र मिलता है। देवोसेना ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और भगवान सूर्यदेव की बहन है। कहते हैं कि भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रचते समय अपने आप को दो भागों में बाँट लिया था-दाँये भाग में पुरुष और बाँये भाग में प्रकृति को रखा था।
सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया था। इनके छठे अंश का ही नाम देवोसेना था,जिसे षष्ठी, छठी आदि नामों से जानते हैं। सृष्टि के साथ देवी का यह रुप जुड़ा हुआ है। छठा दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। शिशु जन्म के छह दिन बाद छठी की पूजा होती है। पुराणों में इन्हें ही कात्यायनी नाम से संबोधित किया जाता है।नवरात्रों में छठे दिन षष्ठी पूजा की जाती है।
छठपर्व की पौराणिक कथाएं
पौराणिक कथाओं में भगवान रामचंद्र जी जब लंका जीतकर अयोध्या वापस आए थे तब उन्होंने माता सीता के साथ छठपर्व मनाया था। द्वापरयुग में भी सूर्य पुत्र कर्ण ने भी सूर्योपासना किया था। द्रौपदी ने भी पांडवों के कुशलता के लिए सूर्योपासना की थी। एक जो सबसे महत्वपूर्ण कथा है वह है--राजा प्रियंवद की।
राजा प्रियंवद निःसंतान थे। पुत्र की इच्छा लेकर वह महर्षि कश्यप के पास गए और पुत्र की कामना की। महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने को कहा। यज्ञ आहुति के निमित्त जो खीर प्रसाद बन रहा था वही रानी मालिनी को खाने को दिया गया। रानी ने एक पुत्र को जन्म तो दिया लेकिन वह मृत था।
शोकातुर राजा शमशान में पुत्र के अग्नि संस्कार के बाद खुद को भी मार डालने के लिए तैयार थे,लेकिन उसी समय भगवान ब्रह्मदेव की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई और राजा प्रियंवद से कहा--
,,मैं सृष्टि की मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ।मेरा नाम षष्ठी है।तुम मेरी आराधना करो।और इसका प्रचार प्रसार भी करो। राजा प्रियंवद का मृत पुत्र जीवित हो गया। उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। उसके बाद राजा प्रियंवद ने पूरे विधिविधान से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत करते थे।
छठ पूजा की शुरुआत नहायखाय से शुरू हो जाती है।इसदिन घर को साफसुथरा कर शुद्धता से शाकाहारी भोजन बनता है जो व्रती एकाहार करती है। खरना--दूसरादिन खरना का होता है।इस दिन व्रती खीर, फल आदि का प्रसाद एक समय ग्रहण करती है।आसपास के लोगों और सगेसंबधियों को प्रसाद बाँटा भी जाता है।
सबसे मुख्य भाग है सुबह और शाम के सूर्य अर्ध्य देने का। बहते हुए जल में कमर तक खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर महिलाएं अपने पुत्र और परिवार के लिए सुखसमृद्धि, आरोग्य और लंबी आयु की कामना करती हैं।
सीमा प्रियदर्शिनी सहाय