क्या आपको पता है कि जन्माष्मी पर आखिर खीरी का प्रसाद क्यों होता जरुरी, नही पता तो जान लीजिए
जन्माष्टमी को लेकर कई चीजें खास हो जाती है। इस दिन भगवान बाल गोपाल को 56 भोग का प्रसाद लगाया जाता है। तो वहीं खीरा यानि जउआ लगाने की भी परंपरा है पर इसके पीछे क्या कारण है क्या आपको पता है। इस बार जन्माष्टमी 19 अगस्त को मनाई जा रही है। हम प्रतिवर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर खीरे को पूजन के दौरान उपयोग करते व काटते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इसे क्यों काटा जाता है। यदि नहीं तो आइए हम आपको बताते हैं। इसका क्या महत्व है।
संतो के अनुसार जितने भी लताओं वाले फल और सब्जियां होती हैं उन्हें पकने पर तोड़ना पड़ता है। लेकिन खीरा ही एक मात्र ऐसी सब्जि है जो पकने पर स्वयं अपनी लता छोड़ देती है। इस कारण भी इसका महत्व बढ़ जाता है। मान्यता है कि खीरे के उपयोगसे भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न होते हैं। खीरा चढ़ाने से नंदलाल भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं। जन्माष्टमी की पूजा में डंठल और पत्ती लगे खीरे का उपयोग किया जाता है।
बच्चे के पैदा होने पर गर्भनाल से बच्चे को अलग किया जाता है इसी रूप में जौआ जिसे अपरिपक्प फल कहा जाता है। इसे काटा जाता है। पंडित रामगोविन्द शास्त्री के अनुसार श्री महामृत्युंजय मंत्र में भी "उर्वारुक मिव मंदनाम्" जिक है। इसमें उर्वारूक का अर्थ खीर होताहै। यहां इसका अर्थ पीड़ा से अलग होने का तात्पर्य रखा गया है। जिस प्रकार बच्चा गर्भनाल से अलग किया जाता है। उसी प्रकार प्रतीक रूप में इसका उपयोग जाता है। ठीक उसी प्रकार से जौआ (खीरे का सबसे छोटा रूप, जिसमें फूल व पत्ती लगी होती है) खीरे को डंठल से काटकर अलग किया जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने का प्रतीक माना जाता है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।