विजय दशमी: कैसे किया भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का अंत?

Update: 2022-10-05 04:56 GMT

शारदीय नवरात्रि की दशमी तिथि को दशहरा यानी विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार, बुराई पर अच्छाई, अन्याय पर न्याय और असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। दशहरा का मतलब है दस बुराईयों को हराने का संकल्प करने का दिन। आज ही के दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन भी किया जाता है।

भगवान राम की लंकापति रावण पर विजय

नवरात्रि के साथ ही दशहरा मनाने की सबसे चर्चित और प्रमुख कथा, भगवान राम की, निशाचरों के राजा रावण पर विजय प्राप्ति की है। रामायण की कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान श्रीराम ने माता सीता के अपहरण के बाद निशाचरों के विनाश का संकल्प लिया। उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ एक विशाल वानर सेना को साथ लिया और महाबलशाली लंकापति रावण को मौत के घाट उतार दिया।

रावण का वध करने के कुछ दिन पहले भगवान श्रीराम ने आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा की और फिर उनसे आशीर्वाद मिलने के बाद, दशमी तिथि को रावण का अंत कर दिया। रावण पर श्रीराम की इस विजय को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि तब से हर साल भगवान श्रीराम की जीत और असुरों के विनाश की खुशी में दशहरा मनाया जाता है। दशहरे के दिन लोग आपस में राम जोहार करते हैं और गले मिलते हैं।

महिषासुर का वध

दशहरा के बारे में दूसरी कथा यह है कि दशमी को ही मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था। कथा के अनुसार, अपार बलशाली राक्षस महिषासुर से देवलोक के देवता और पृथ्वीवासी मनुष्य, त्रस्त हो चुके थे। कहा जाता है कि घोर तप करने के बाद, महिषासुर ने भगवान से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया और फिर लोगों को तबाह करने लगा।

इसके बाद देवों की दयनीय मांग पर भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी और भगवान शिव ने मिलकर, देवी रूप में एक शक्ति को प्रकट किया, जिसे मां दुर्गा के नाम से जाना गया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच पूरे दस दिन तक युद्ध चला, और दसवें दिन, यानी कि दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया।

जिसके बाद देवताओं ने इस खुशी के उपलक्ष्य में मां दुर्गा को वचन दिया और उस दिन को, उसके बाद से विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा और लोग मां को तब से ही शक्ति के रूप में पूजने लगे।

चाहें महिषासुर का विनाश हो या फिर रावण का अंत, विजयादशमी का यह महापर्व हम सब को यही सीख देता है कि, बुराई चाहें कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, लेकिन अच्छाई के ऊपर कभी हावी नहीं हो सकती। अंत में जीत केवल अच्छाई की ही होती है।

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