सावन में क्यों की जाती है शिव जी की पूजा ?
हिन्दु धर्म में सावन के महीने का विशेष महत्व है। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने सावन के महीने में माता पार्वती की
सावन का पावन महीना 25 जुलाई से शुरू हो रहा है। सावन का महीना 25 जुलाई से 22 अगस्त तक रहेगा। सावन का महीना भगवान शंकर को समर्पित होता है। सावन के माह में भगवान शंकर की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
हिन्दु धर्म में सावन के महीने का विशेष महत्व है। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने सावन के महीने में माता पार्वती की तपस्या से खुश होकर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। अतः ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं तथा सावन के महीने में व्रत रखने वाली लड़कियों को भगवान शिव के आशीर्वाद से मनपसंद जीवनसाथी मिलता है। श्रावण मास में सोमवार के व्रत रखने के साथ – साथ पूरे महीने सात्विक भोजन एवं सात्विक धर्म का पालन करने की परंपरा है।
माना जाता है कि देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, तो उस समय सावन मास चल रहा था और समुद्र मंथन के बाद जो विष निकला, उससे पूरी सृष्टि खत्म हो सकती थी। अतः सृष्टि की रक्षा हेतु भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में समाहित कर लिया था। इसके बाद भगवान शिव का वर्ण नीला हो जाने के कारण उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाने लगा। विष के असर को कम करने के लिए देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया था। इसलिए सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाया जाता है।
माना जाता है कि सावन के महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं अतः सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी भगवान शिव पर होती है। इसलिए भगवान शिव की उपासना सावन के प्रधान देवता के रूप में की जाती है।
माना जाता है कि सावन माह में ही शिवजी धरती पर अवतरित हुए थे। तथा अपनी ससुराल भी इसी मास में पहुंचे थे जहाँ उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया। यही वजह है कि सावन माह में भगवान शिव को अर्घ्य और जलाभिषेक किया जाता है।
मान्यता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपने ससुराल जाते हैं। अतः वे पृथ्वीवासियों के पास होते हैं और वे उनकी कृपा पा सकते हैं। इसलिए सावन माह में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है।