इस बार जनकपुरी में उल्टी बयार बहेगी

उन्हें इस बात का मलाल है कि अपने बेटे और बेटी को उन्होंने आईआईटी के प्रवेश द्वार तक तो पहुंचा दिया लेकिन स्थानीय संस्कृति, संगीत और साहित्य से उन्हें रत्ती भर भी न जोड़ सके।

Update: 2023-09-10 08:27 GMT

अनिल शुक्ला 

जब किसी बड़ी सांस्कृतिक परिघटना की कमांड रचनात्मक नेतृत्व के हाथ आ जाती है तो उस परिघटना का न सर्फ स्वरुप बदल जाता है बाकि चरित्र बी बदल जाता है। इस बार के जनक महोत्सव की तक़दीर बदलने वाली है, ऐसा प्रतीत होता है।

आगरा की सबसे बड़ी सांस्कृतिक परिघटना रामबरात और उससे जुड़ा 3 दिन का जनकपुरी महोत्सव होता है। न सिर्फ आगरा और बृज अंचल बल्कि पूर्वी राजस्थान और उत्तरी मध्य प्रदेश और हरियाणा में बसने वाले लोगों के एक बड़े भाग का सांस्कृतिक उत्सव है यह समारोह। 5-6 किमी की एक छोटी सी सड़क पर एक रात में टिड्डियों की तरह न जाने कैसे 15- 18 लाख लोग बाराती के रूप में जुट जाते हैं। रामबरात धार्मिक कम, सांस्कृतिक उत्सव ज़्यादा है इसीलिये चाहे रामकथा और इससे जुड़े स्वरुप हों या बराती, विभिन्न जातियों सहित हिन्दू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, सिख, ईसाई और दूसरे धर्मों के लोग इसमें हिस्सेदारी निभाते हैं।

इस बार 'जनकपुरी महोत्सव' संजय प्लेस में सजने वाला है। संजय प्लेस वस्तुतः आगरा का सबसे बड़ा 'कॉमर्शियल हब' है। ज़ाहिर है ऐसे में किसी महोत्सव की आयोजन समिति में ट्रेड और कॉमर्स की दुनिया से जुड़े लोगों की बहुतायत ही होगी। इस समिति के ज़्यादातर लोगों का इरादा लेकिन इस महोत्सव को अब तक के तमाम जनकपुरी महोत्सवों से बिलकुल अलग हटकर संयोजित करने का है। वे इसे न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से भव्य और जीवंत बनाना चाहते हैं बल्कि इसके मंच को आम नागरिकों के लिए खोलने की तयारी कर रहे हैं जो कि आज तक कभी नहीं हुआ।

वैसे तो कहीं की भी जनकपुरी में उस क्षेत्र के धनाढ्य लोगों का ही दबदबा होता है और प्रत्येक प्रकार की 'इवेंट्स' से लेकर मंच के कोने-कोने में उन्हीं की उपस्थिति दिखाई देती है। आम शहरी बहुत दूर से खड़ा रहकर इस महोत्सव के मंच पर फ़िल्मी स्टार और संस्कृति के नाम पर बाज़ारू दुकानें सजाये लोगों को उछाल कूद करता देख-देख कर चमत्कृत होता है। इस बार लेकिन ऐसा नहीं होगा यह प्रतीत होता है।

बीते शनिवार को मेरी मुलाक़ात जनकपुरी महोत्सव आयोजन समिति के महासचिव हीरेन अग्रवाल से हुई। उनके साथ समिति के उपाध्यक्ष रावत अनिल भी थे। हीरेन अग्रवाल का संजय प्लेस में फर्नीचर का एक बड़ा शोरूम है। हम लोग पहली बार मिल रहे थे लेकिन मुझे यह सुनकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि सुबह-सवेरे से लेकर रात तक ब्रांडेड और सेल्फ मेड सोफा सेट, डबल बेड और इससे जुडी सामग्रियों का विक्रेता मेरी सांस्कृतिक गतिविधियों और क्रियाकलापों से बख़ूबी परिचित है। मैं ही नहीं, मुझ सरीके आगरा के ऐसे दर्जनों लोगों के 'सीवी' उन्हें मुंह-ज़बानी याद थे। हीरेन और उनके साथी इस बार के जनकपुरी महोत्सव को फ़िल्मी रहट-पहट से अलग हटाकर स्थानीय और लोक संस्कृति की एक बेजोड़ घटना के रूप में विकसित करने में दिलचस्पी रखते हैं जो इधर-उधर भटके युवाओं को आकर्षित कर सकें। मुझसे लम्बी बातचीत का उनका मक़सद यही था। वह चाहते थे कि इस समूचे कार्यक्रम की डिज़ायन तैयार करने में मैं उनकी मदद करूँ।

मैं पिछले सत्रह साल से अपने शहर में लौटकर गंभीर लोक सांस्कृतिक पुनरुद्धार के लिए सक्रिय हूं। न सिर्फ लोक नाट्य 'भगत' बल्कि लोक प्रस्तुतिकलाओं के दूसरे स्वरूपों पर भी मैंने गहराई से काम किया है। देश के सभी लब्धप्रतिष्ठ समाचार पत्र और पत्रिकाओं में मैंने इन पर विस्तार से लिखा है। अच्छी खासी तादाद में लोग हैं जो मुझे और मेरे सांस्कृतिक क्रिया कलापों से परिचित हैं लेकिन आज तक किसी भी सरकारी और गैर सरकारी छोटे-बड़े आयोजनों की डिज़ाइन करते समय मुझे ढेले भर को नहीं पूछ गया। यहाँ मैं यह सब न तो अपनी पीठ ठोंकने के लिए लिख रहा हूँ और न किसी शिकायत के बतौर। लिखने का मेरा उद्देश्य यह बताना है कि इस शहर में ऐसे लोग भी हैं जो संस्कृति को भली भांति समझते हैं और उसके कार्य व्यापर से जुड़े लोगों के प्रति जिनका एक गंभीर 'ऑब्ज़र्वेशन' है।

हीरेन और उनके ज़्यादातर साथी चाहते हैं कि जनकपुरी आयोजन लोक संस्कृति के प्रदर्शनों से युवाओं को जोड़ सके। उन्हें इस बात का मलाल है कि अपने बेटे और बेटी को उन्होंने आईआईटी के प्रवेश द्वार तक तो पहुंचा दिया लेकिन स्थानीय संस्कृति, संगीत और साहित्य से उन्हें रत्ती भर भी न जोड़ सके। बच्चों का इन कलाओं और साहित्य के प्रति जुड़ाव 'आईआईटी में पहुँचने के बाद वहां सक्रिय 'स्पिक मेके' सरीखी संस्थाओं के जरिये ही हो सका।

हीरेन ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी पुरानी गलतियों का पश्चत्ताप करना चाहते हैं। वह अपने दूसरे मित्रों से भी ऐसा ही पश्चत्ताप करवाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि इस बार का जनकपुरी समारोह का मंच आगरा और समूचे ब्रज क्षेत्र की ऐसी लोक कलाओं से युवाओं को परिचित करा सकें जो लुप्तप्राय हो चली हैं। वह संजय प्लेस में छोटे-बड़े कई मंच बनाकर पूरे ब्रज क्षेत्र के चुनिंदा लोक कलाकारों को बुलाने की तैयारियां कर रहे हैं।

हीरेन कहते हैं कि वे लोग चाहते हैं कि महोत्सव का मुख्य मंच सिर्फ वीवीआईपी और धन्ना सेठों की एंट्री तक सीमित न रहे बल्कि वहां तक पहुंचकर आगरा का 'कॉमन मेन' भी श्रीराम-सीता के स्वरूपों पर पुष्प न्योछावर कर सकें। वह सीता जी के 'मेहँदी' समारोह में 'संजय प्लेस' में काम करने वाली सभी पढ़ी-लिखी महिलाओं से लेकर 'मेड' तक को आमंत्रित करने वाले हैं। आजकल के शादी समारोहों में 'लेडीज़ संगीत' के नाम पर जिस तरह फ़िल्मी गानों और 'कोरियोग्राफर' की भद्दी दखलंदाजी हुई है, उसकी जगह वे लोग किरावली तहसील से ग्रामीण महिलाओं के ऐसे संगीत समूह को आमंत्रित कर रहे हैं जो विवाह के अवसर पर गायी जाने वाली 'गालियां' गाने में सिद्धस्थ हैं।

वे लोग इस पूरे आयोजन का उपयोग सांस्कृतिक-धार्मिक क्रिया कलाप के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों और सामाजिक शिक्षा से जोड़कर भी करना चाहते हैं।  

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