पितृपक्ष में श्राद्ध करते समय किन बातों का रखना चाहिए ध्यान जानिए धर्मशास्त्र के अनुसार
शास्त्रों में श्राद्ध से जुड़े कई नियमों के बारे में बताया गया है जो कि पितृपक्ष के दौरान किए जाते हैं. वहीं कुछ ऐसे भी कार्य होते हैं जिन्हें पितृ पक्ष में करना वर्जित माना जाता है. पितृपक्ष में पितरों का तर्पण व श्राद्धकर्म करने से जुड़े कई नियम होते हैं. जैसे कि इस दौरान पितरों को संतुष्ट करने के लिए जल या दूध हथेली में रखकर अंगूठे से दिया जाता है. पितृपक्ष में पितरों तक भोजन पहुंचाने के लिए कौवे, कुत्ते और गाय को भोजन कराया जाता है. इसी तरह पितृपक्ष से अन्य कई परंपराएं जुड़ी हुई हैं.
श्राद्ध कर्म के संदर्भ में जानें कुछ महत्वपूर्ण बातें - श्राद्ध कर्म करने और ब्राह्मण भोजन का समय मध्याह्न का है. यह समय मुख्य रूप से 'श्राद्ध' के लिए प्रशस्त है. - धर्मग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी तिथि पर श्राद्ध करते हैं. - ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है. वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है. - पूर्णिमा तिथि के दिन देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है. इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारम्भ भी माना जाता है.
पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण 'वर्षभर' तक प्रसन्न और तृप्त रहते हैं. - धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को पिंडदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है. - श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे. इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं. यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है.
- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए. दस दिन के अन्दर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए. - श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्य दायक तो है ही, राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है. पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिया जाए तो वह अक्षय और तृप्ति कारक होता है. पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है. -
श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं. - ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यञ्जनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें ! - जो पितृ, शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध 'मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी' को भी करना चाहिए. इससे वे प्रसन्न होते हैं. - श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए. पिण्डदान पर कुदृष्टि पड़ने से वह पितरों तक नहीं पहुंचता है. -
पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है. - तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें. - इसके बाद हाथ में जल, अक्षत (चावल), चन्दन, फूल और तिल लेकर संकल्प करें. - श्वान और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं, किन्तु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं. इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं. -
पूर्ण तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मण को तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान देकर आशीर्वाद पाएं. - इसके बाद परिजनों, मित्रों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं. - पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए. पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है. पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिण्डों (एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए . एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है. - पितृ पक्ष सोलह दिन की समयावधि होती है, जिसमें पुत्र या सगोत्र अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर श्रद्धांजलि देते हैं