शिक्षा तंत्र में व्याप्त भेड़चाल की समाप्ति नीयत के बिना असंभव -डा रक्षपाल सिंह चौहान
भारी अफसोस का विषय यह रहा है कि इस दौरान अनेक निजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों को मान्यता की शर्तों को बलाए ताक रखकर अंधाधुंध मान्यताएँ दिये गये.
अलीगढ। नई शिक्षा नीति-1986/92 के लागू होने के बाद बीसवीं सदी के समाप्त होते-होते शिक्षातंत्र ऐसी भेड़ चाल का शिकार हो गया जिसका ख़ात्मा आसान नहीं है। इसका अहम कारण उचित निगरानी और नियन्त्रण की व्यवस्थाओं का अभाव रहा है। जिसका नतीजा भेड़चाल पर अब तक रोक नहीं लग पाना रहा है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि इक्कीसवीं सदी के इन 19 वर्षों में लगभग 10-10 वर्ष कांग्रेस एवं भाजपा की केन्द्र में सरकारें रह चुकी हैं, लेकिन भारी अफसोस का विषय यह रहा है कि इस दौरान अनेक निजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों को मान्यता की शर्तों को बलाए ताक रखकर अंधाधुंध मान्यताएँ दिये जाने ,उनमें क्वालिफाइड शिक्षकों एवं अन्य स्टाफ की आधी अधूरी ही नियुक्तियां होने व उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित वेतन का चौथाई भी वेतन न मिलने , इनमें प्रवेशित अधिकांश छात्रों का यदा कदा ही शिक्षण संस्थानों में आने तथा पढ़ाई की मात्र रस्म अदायगी ही करने, अनेक शिक्षण संस्थानों में तो तथाकथित छात्रों के प्रवेश व उनके परीक्षा फार्म भरे जाने एवं परीक्षाएं कराने की जुगाड़ बिठाने का ही काम होने जैसी अनियमितताएं तथा विकृतियां भेड़चाल की तरह पनपीं,लेकिन दोनों दलों की सरकारों ने किसी भी किस्म की सार्थक कार्रवाई किये जाने में कोई रुचि ही नहीं दिखाई और यदि शिक्षा नीति 1986/92 को लागू करने वाली मशीनरी अर्थात मानव संसाधन विकास मंत्रालय, प्रदेश सरकारों, शिक्षण संस्थानों के शीर्षस्थ अधिकारियों, शिक्षक वर्ग ने अपनी -अपनी जिम्मेदारी निभाई होती तो इस अंधी भेड़ चाल और मनमानियों पर अंकुश जरूर लगता।
यह कहना है डा बी आर अम्बेडकर विवि शिक्षक संघ आगरा के पूर्व अध्यक्ष डा रक्षपाल सिंह चौहान का। उन्होंने कहा है कि नई शिक्षा नीति-20 एक आदर्श शिक्षा नीति है और इसकी सफलता इसको लागू कराने वाली पूरी मशीनरी की स्वार्थ रहित नीयत व उत्तरदायित्त्वपूर्ण कार्यशैली पर ही निर्भर करेगी। लेकिन देश के वर्तमान शिक्षातंत्र की मशीनरी की बदहाली को देखकर मुझे इस बात की प्रबल आशंका है कि बीते 5 वर्ष में तैयार हुई यह नयी शिक्षा नीति-20 के अमल का हश्र भी कहीं शिक्षा नीति -86/92 जैसा न हो जाए।