गाजियाबाद। इस नश्वर संसार में साथ जिएंगे-साथ मरेंगे, की बातें तो सभी करते हैं, लेकिन उसे निभाने वाले बिरले ही मिलते हैं। उन्हीं बिरले लोगों में बदले सिंह नागर-मुकेश नागर दम्पत्ति का नाम भी शुमार किया जाएगा। जी हां, ट्रांस हिंडन के मशहूर भाजपा नेता, समाजसेवी और जीडीए सुपरवाइजर बदले सिंह नागर नहीं रहे। गत 6 मई को उन्होंने अंतिम सांस ली।
बताया जाता है कि अपनी समाजसेवी पत्नी मुकेश नागर की मौत के सदमे को वह बर्दाश्त नहीं कर सके और कुछ ही घण्टे बाद हृदय गति रुक जाने से उनकी मौत हो गई। अभी हाल ही में उन्होंने कोरोना बीमारी को मात दी थी। वह अपने जानने वालों के बीच संकटमोचक नाम से प्रसिद्ध थे। वह बहुत ही सरल व सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे। उनका व्यक्तित्व चित्ताकर्षक था, जिनका आशीर्वाद हमें सदैव ही मिलता रहता है।
वह एक ऐसे विकास पुरुष थे जिन्हें जीडीए की विभिन्न कॉलोनियों के चप्पे-चप्पे का ज्ञान था, क्योंकि सुपरवाइजर के तौर पर उन्होंने इसे विकसित होते हुए देखा और नई बसावट में आने वाले सभी लोगों का सहयोग किया। उनके निधन से स्थानीय राजनैतिक हलके, सामाजिक जगत, कारोबारी जगत व गुर्जर समाज के साथ साथ गांव-मुहल्ले के सभी वर्गों में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके आवास पर शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का तांता लगा हुआ है।
बता दें कि स्व. नागर वैशाली सेक्टर पांच स्थित कल्पना सोसायटी के स्थायी निवासी थे। वहीं के जीडीए मार्केट में देशबंधु डेयरी व किराना स्टोर के नाम से उनका मशहूर कारोबार है। आसपास में भी उनकी कई दुकानें व आवासीय फ्लैट्स मौजूद हैं, जहां मातम पसरा हुआ है। उनका दूध का पुश्तैनी और खानपान होटल का भी कारोबार है।
स्व. नागर गौतमबुद्ध नगर के दादरी तहसील अंतर्गत कचैड़ा ग्राम के मूल निवासी थे। अपने गांव से उनका गहरा लगाव था। उनका अंतिम संस्कार भी उनके गांव में ही किया गया। उनका जन्म 8 दिसम्बर 1959 को कचैड़ा गांव में भूले सिंह नागर और अशरफी देवी की कोख से हुआ था। वहीं, उनकी धर्मपत्नी स्व. मुकेश नागर का जन्म 30 जून 1970 को बागपत जिला के भगोट गांव में हुआ था। उनका पाणिग्रहण संस्कार 29 जून 1989 को हुआ था। वो अपने पीछे चार पुत्र क्रमशः विशेष नागर, वीरेश नागर, देशबंधु नागर और स्वदेश नागर का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं।
बताया जाता है कि स्व. बदले सिंह नागर जब 10 वर्ष के थे, तभी से राजनीति में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। हालांकि, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में वे बतौर सुपरवाइजर कार्यरत रहे।अभी उनकी नौकरी कुछ साल बची हुई थी। वर्ष 1994 में अपने गांव में बिजली पास कराने में मुख्य लोगों में भी वो शामिल थे। गांव के पूर्व प्रधान व आर्य समाज के राष्ट्रीय महामंत्री लख्मी चन्द्र आर्य के साथ मिलकर गांव के विकास हेतु काफी कार्य किये। जैसे गांव में पहले कोई मुख्य सड़क नहीं थी। गांव के लोगों में कोई अपनी जमीन सड़क में नहीं देना चाहता था। फिर उन्होंने जमीन को अधिगृहित कराकर सन 1988 के आस पास सड़क बनवाई। वो जिस काम में हाथ बंटाते थे, उसको पूरा कराकर ही दम लेते थे।
वहीं, सन 2001 में उन्होंने वैशाली सेक्टर 5 में देशबंधु डेयरी की स्थापना अपनी धर्मपत्नी के स्वरोजगार के लिए की थी। जिसकी सलाह उनके साले ने दी थी। यहां उन्होंने काफी तरक्की की और अपना कारोबारी साम्राज्य स्थापित किया। वो कड़ी मेहनत व भरोसेमंद दोस्ती के कायल इंसान थे। बताया जाता है कि गत 2 अप्रैल को उनको बुखार आया। उसी दिन हुए एंटीजिन टेस्ट में उनकी रिपोर्ट नेगटिव आई थी। लेकिन 7 अप्रैल को दोनों पति-पत्नी की तबियत ज्यादा ख़राब होने एक निजी अस्पताल में उन्हें एडमिट कराया गया। उसके बाद 10 अप्रैल को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। 7 अप्रैल से ही अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। फिर 3 मई को स्व. नागर की सभी रिपोर्ट नार्मल आई। वहीं, उसी दिन उनको पता चला कि मेरे भाई का दामाद खत्म हुआ है। उसको लेकर उनके मस्तिष्क में तनाव उभरा और उसी दिन उनकी तबियत फिर ख़राब हो गई, फिर कोई सुधार नहीं हुआ और उन्होंने कुछ घण्टे के अंतराल पर ही बारी बारी से अंतिम सांस ली।
वैशाली व आसपास के इलाके में उन्होंने सियासी दलों की भरपूर सेवा की। उनकी धर्मपत्नी मुकेश नागर वर्ष 2017 में वार्ड नम्बर 89 से निगम पार्षद का चुनाव भी लड़ी थी और अच्छा खासा जनसमर्थन उन्हें हासिल करते हुए दूसरे स्थान पर रही थीं। वो अपने पीछे चार संतान छोड़ गए हैं जिनके नाम विशेष नागर, वीरेश नागर, देशबंधु नागर और स्वदेश नागर है। सभी लड़के सर्व सम्भावी राजनीति की नीतियों में गहरी आस्था रखते हैं और राष्ट्रवादी-समतावादी विचारों के प्रबल समर्थक हैं।
स्व. नागर की प्रशासनिक पकड़, मानवीय सहयोग भावना, किसी अपरिचित के प्रति भी उनका सहज लगाव और एक समान भाव से आतिथ्य सत्कार की उनकी भावना उनकी ऐसी खास विशेषता थी, जो समाज में उन्हें सबसे अलग ठहराती थी। राजनीति पर भी उनकी गहरी पकड़ थी, हालांकि वो आधुनिक संस्कार वाले मतलबी नेता नहीं थे, बल्कि अपने समर्थकों के प्रति उनमें आला दर्जे की प्रतिबद्धता थी। महज एक कॉल पर अपने लोगों के पास पहुंच जाना और यथासम्भव उसकी हर तरह से मदद करना उनका ऐसा स्वभाव रहा, जिसका सभी लोग कायल रहते थे। इस दम्पत्ति में एक दूसरे के प्रति समर्पण, लोकसेवा भाव इतना कूट कूट कर भरा हुआ था कि उसकी भरपाई अब सम्भव नहीं है।