केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने किसान आंदोलन पर आठ विंदुओं में कही बड़ी बात
केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने किसान आंदोलन को लेकर आठ विंदुओं में अपनी बात कही है, उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों के विरोध में जो आंदोलन हो रहा है उसे समस्त नागरिकों, विशेषतः किसानों, के आंदोलन की संज्ञा दी जा रही है। कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
1. कृषि कानूनों पर सभी किसान एकमत नहीं हैं। अधिकतर किसानों ने इन युगान्तरिक कानूनों का समर्थन किया है। आढ़तियों और मंडियों से जुड़े लोगों ने इस पर विरोध जताया है। सरकार ने बार बार कहा है कि पुरानी प्रणाली यथावत रहेगी। इन कानूनों से किसान के पास अन्य विकल्प भी उपलब्ध होंगे। MSP पर खरीद जारी रहेगी। कृषि मंत्री स्वयं कृषक पृष्टभूमि से आते हैं। उन्होंने सभी किसान नेताओं का निरंतर स्वागत किया कि कानून के प्रत्येक बिंदु पर उसके गुण/अवगुण पर चर्चा हो जिससे एक और अच्छा कानून निकल कर आ सके। किसानों की कई मांगों को माना भी गया जिससे उन्हें कानून के हितों के संदर्भ में आश्वासन मिल सके। परन्तु किसान नेताओं ने सकारात्मक प्रयासों को अंततः हर बार यह कह के नकार दिया कि कानून जब तक पूर्ण रूप से वापस नहीं होंगे तब तक आन्दोलन चलता रहेगा। क्या लोकतंत्र में चर्चा इस प्रकार होती है? उन लोगों की मंशा क्या है जो चाहते हैं कि आंदोलन चलता ही रहे?
2. किसी भी सकारात्मक जनांदोलन को देखिए। सबके नेतृत्व एक होंगे, सभी एकमत होंगे। यहाँ तो किसान नेता ही इतने सारे हैं कि सहमति बनाना असंभव है।
3. यह स्पष्ट है कि समस्त किसानों के प्रतिनिधि वे लोग नहीं जो सड़कों पर बैठे हैं। फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं अधिकारों का आपकी सरकार ने सम्मान किया। पुरजोर प्रयास रहे कि जो किसान भाई भ्रमित हैं, उन्हें समझाया जाए, जानकारी दी जाए। संवैधानिक प्रणाली से चलते हुए सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान किया गया। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के बावजूद अन्नदाता की मंशाओं पर सरकार और बाकी जनता ने विश्वास किया। परन्तु अब स्तिथि स्पष्ट हो चुकी है। किसी भी सकारात्मक जनांदोलन का मार्ग हिंसक नहीं हो सकता।
4. यह किसान नेता स्वयं मान चुके हैं कि आंदोलन में ऐसे तत्व घुसपैठ कर चुके हैं जो इस स्तिथि का अनुचित लाभ उठाना चाहते हैं। कल जो लज्जास्पद घटना हुई, उसका स्वागत सीमा पार हो रहा है। क्या हमारे अन्नदाता भारत माँ के दुश्मनों को ऐसा अवसर देते? क्या ऐसी हिंसा से हमारे किसान अपयश के पात्र नहीं बने? इसका जिम्मेदार कौन है? ऐसी अनियंत्रित हिंसा आंदोलन के कौन से ध्येय को पूरा कर रही है? 2014 से ही कुछ राजनैतिक दल इस हद तक गिर चुके हैं कि सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश में देशविरोधी गतिविधियाँ कर रहे हैं। कहीं इस आंदोलन का दुरुपयोग वे तो नहीं कर रहे?
5. एक ऐसा आंदोलन जिसका स्पष्ट नेतृत्व नहीं, बातचीत की मंशा नहीं, शामिल लोगों पर नियंत्रण नहीं, एक मत नहीं, यहाँ तक कि किसान वर्ग के एकमात्र हितैषी होने की वैधता नहीं, उसके परिणाम तो ऐसे होने ही थे। अब यह आंदोलन में हिस्सा लेने वाले और उन नेताओं के ऊपर निर्भर करता है कि वे कब समझते हैं कि उनका यह हठ अब कौन सी सीमा लांघेगा।
6. कुछ साल पहले किसानों ने एक आंदोलन किया था। जो लोग आज उनके हितों की दुहाई दे रहे हैं वे उस समय सरकार में थे और उनके आदेश पर चली गोलियों से सैकड़ों किसान भाई मारे गए थे। थोड़ा आपको उन पुलिस वालों का सोचना पड़ेगा जिन्होंने अदम्य सहिष्णुता का परिचय देते हुए विषम परिस्थितियों में भी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। आपके विरोध के अधिकार की रक्षा करते हुए अपने प्राणों पर आए संकट को भी झेल गए। संविधान में प्रबल आस्था किसकी मानी जायेगी?
7. एक लोकतंत्र में कानून संसद में बनते हैं। लोगों का संवैधानिक अधिकार है कि यदि सरकार अपने दायित्व में विफल हो रही हो तो उसे संसद से बाहर फेकें और गलत कानूनों को पलट दे। परन्तु प्रमुख राजमार्गों को जाम कर के, हिंसा के माध्यम से अनुचित दबाव बनाना एक भयंकर मिसाल है जिससे हमारे संवैधानिक मूल्यों पर संकट आन पड़ता है। देश अब आज़ाद है। कोई विदेशी शासक नहीं हैं संसद में। जनादेश से चुनी हुई सरकार के प्रयासों पर इस प्रकार आघात करना उस जनादेश का ही अपमान है।
8. गणतंत्र दिवस, लाल किला और उसपर फहराता तिरंगा प्रतीक हैं कि समस्त विविधताओं के साथ हमारा देश सर्वोपरि है। जिस प्रकार इस गौरवान्वित दिवस पर इन प्रतीकों का हिंसक व अशोभनीय अतिक्रमण हुआ उससे पूरे देश का सर नीचा हो गया है। मैं दावे से कह सकता हूँ कि हमारे अन्नदाता किसान भाई ऐसे घिनौने दुस्साहस के पीछे नहीं हो सकते। जो ताकतें इस दुर्घटनाक्रम के पीछे हैं उनका पता लगाना चाहिए और देश के विरुद्ध इस घटिया अपराध को अंजाम देने के लिए दण्ड देना चाहिए। जब तब उन्हें मिसाल नहीं बनाया जाएगा, ऐसे षड्यंत्र चलते रहेंगे। निर्दोष अन्नदाता और अन्य लोगों के कंधे पर बंदूक रख कर चलती रहेंगी।
विरोध और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सर्वथा स्वागत है। परन्तु जब यह अन्य लोगों के अधिकारों, कानून व्यवस्था एवं संवैधानिक मूल्यों के विध्वंस से प्रेरित हो तो निश्चित रूप से रोका जाना चाहिए।