एक जमाना था जब मां अपने बच्चों से कहती थी चंदा है तू मेरा तारा है तू लेकिन अब वही प्यार मॉडर्न जमाने में कुत्तों पर दिखाई दे रहा है। शैंपू से नहाए जाते हैं कुत्ते, अच्छे से डॉक्टर को दिखाए जाते हैं कुत्ते, फैशन शो में शिरकत करते हैं कुत्ते और स्टेटस सिंबल भी हो चुके हैं कुत्ते बाजार में ₹2000 से लेकर ₹500000 तक का कुत्ता मौजूद है।
अब महंगा कुत्ता घुमाना हैसियत का प्रमाण पत्र हो गया है लेकिन इस बीच इंसानियत का प्रमाण पत्र बहुत दूर चला गया। किसी गरीब के आंसू पोछने के बजाय 200 रुपये का पैकेट कुत्ते के लिए लाना लोग नहीं भूलते हैं। किसी यतीम के सर पर हाथ रखने के बजाय कुत्ते के सुनहरे बालों में हाथ फिराना लोग शान समझते हैं। यकीनी तौर पर समाज की तरक्की नहीं यह गिरावट है।
हम उस जमाने की ओर जा रहे हैं जब इंसानियत से प्यार छोड़कर हैवानियत को गले लगाने की नौबत आ गई है। बड़ी बात तो यह है कि अब औलाद से ज्यादा प्यार कुत्तों से किया जाता है। बच्चा के दोस्त कौन है यह पता नहीं, बेटा किसके साथ कहाँ गया है, इसकी भी कोई फिक्र नहीं लेकिन कुत्ते की देखरेख करना बहुत जरूरी हो गया है। अब तक बच्चों पर यही इल्ज़ाम लगता है कि वे कंप्यूटर लैपटॉप और मोबाइल में लगे रहते हैं लेकिन जनाब अच्छा ही है घर में सुरक्षित तो हैं।
पार्क में पहुंचते ही कोई भी कुत्ता हमला कर दे और हमारे कलेजे का टुकड़ा लहूलुहान हो जाए इससे बेहतर है कि पार्क ना जाए। लेकिन लिफ्ट में क्या किया जाए। इसलिए हमारा मशवरा है कि इंसान से प्यार कीजिए और जानवर को जानवर ही रहने दीजिए।