माँ के जनाजे में शामिल न होने देने पर मुख़्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी ने की ये दर्द भरी बात!

पापा दादी की उस आवाज का जबाब नहीं दे पाए जिसमें वो होश में आने पर पुंछती थी कि मुख़्तार नहीं आये. इसका जबाब हम में किसी के पास नही था. यह कहते कहते उनका गला रुंध गया.

Update: 2019-01-10 03:07 GMT

अभी पिछले दिनों पूर्वांचल के डॉन कहे जाने वाले विधायक मुख्तार अंसारी की माँ का इंतकाल हो गया. ख़ास बात यह भी थी कि उसी दिन उनके मरहूम पिताजी स्वतंत्रा संग्राम सेनानी और नगर पालिका मुहम्‍मदाबाद के पूर्व चेयरमैन सुभानउल्‍लाह अंसारी की पूण्यतिथि भी थी. परिवार उस दिन गरीबों को भोजन और कंबल बाटनें की तैयारी में लगा हुआ था. लेकिन रात को उनकी माँ की तबियत खराब हुई और भोर की पहली पो फटते फटते उनका इंतकाल हो गया. जनाजे में उनके विधायक पुत्र को शामिल होने के लिए सरकार की अनुमति नहीं मिली. इस पर उनके बेटे ने बातचीत में कुछ ख़ास बातें बतायी. 


विधायक के बेटे अब्बास अंसारी ने कहा कि यह एक ऐसा विषय नहीं है जिस पर कुछ बात की जाय लेकिन यह चिंता का विषय जरुर है. लेकिन यह मानवाधिकार हनन का मामला जरुर है. हमारे देश जुडीशियल सिस्टम अर्थात न्याय प्रक्रिया भी यह कहती है कि न्यायिक हिरासत में यदि कोई व्यक्ति है तो उसके माता पिता या उसका कोई नजदीकी बीमार भी है तो उसे पैरोल मिलने का अधिकार है. जबके मेरी तो दादी का इंतकाल हो गया था. और ऐसे समय उनके अंतिम दर्शन और उनको मिटटी देने के लिए नहीं आने देना अपने आप में ही एक सवाल बन जाता है. 


अब्बास ने कहा कि आज देश में जिस तरह मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है उससे अब आने वाले समय में देश में क्या हालात उत्पन्न होंगे समय ही बतायेगा. उन्होंने कहा कि न्यायिक व्यवस्था के तहत अगर किसी व्यक्ति की माँ बाप का देहान्त या उनकी मिटटी में शरीक अथवा अंतिम संस्कार में शामिल होने में भी सरकार सौतेला व्यवहार करेगी. तो यह निश्चित ही उसके अधिकारों का हनन होगा. 


अब्बास ने कहा कि सरकार सत्ता पक्ष के कुछ लोंगों को तो उनके ही स्वास्थ्य और उनकी समस्या को लेकर लंबी लंबी पैरोल स्वीकृत करती है. फिर वो बाहर आकर मटर गस्ती करते घूमते सबने देखें है जबकि मैंने तो अपने पापा के लिए उनकी माँ के देहांत के बाद उनकी मिटटी में शरीक होने के लिए दो दिन या एक दिन की छुट्टी मांगी थी जिसे अस्वीकृत करा दिया गया. अब यह तो देश में न्याय की बात नहीं तानाशाही रवैया दिख रहा है. सिर्फ पैरोल इस बात पर नहीं मिली कि आने वाले समय में देश के सर्वोच्च कुर्सी पर बैठे व्यक्ति जनपद में आ रहे है लिहाजा जिले सभी सीमा शील है. ऐसे में पापा दादी की उस आवाज का जबाब नहीं दे पाए जिसमें वो होश में आने पर पुंछती थी कि मुख़्तार नहीं आये. इसका जबाब हम में किसी के पास नही था. यह कहते कहते उनका गला रुंध गया. 

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