395 रोजाना मिलते थे, इसलिए PRD जवान ने सुसाइड कर लिया, जबकि नेता कह रहे है विकास की बहार चल रही है
हाथरस में पीआरडी जवान रविंद्र सिंह ने 2 अगस्त को घर में फांसी लगाकर जान दे दी। रविंद्र के पास से एक सुसाइड नोट मिला। उसमें उन्होंने लिखा, "मुझे रोज के 395 रुपए मिलते हैं। इसी में पूरा घर चलता है। घर में पत्नी, मां और दो बेटे हैं। मैं अपने बच्चों की फीस समय पर नहीं भर पा रहा हूं, इसलिए मजबूर होकर आत्महत्या कर रहा हूं।"
रविंद्र का यह खत झकझोर देने वाला है। लेकिन हकीकत यही है कि बढ़ती महंगाई के बीच इतने पैसों में घर चला पाना संभव नहीं दिखता। कम सैलरी की समस्या सिर्फ पीआरडी जवानों की ही नहीं है। शिक्षा मित्र, अनुदेशक, पंचायत सहायक सदस्य, एंबुलेंस कर्मचारी और मदरसा के शिक्षकों की भी सैलरी इतनी कम है कि वह इतने पैसे में सम्मानजनक जिंदगी नहीं जी पाते। मदरसा अध्यापकों को तो 6 साल से महीने के महज 3 हजार रुपए मिल रहे हैं।
सैलरी के लिए इनका संघर्ष लंबे वक्त से जारी है। सरकार आश्वासन देती है लेकिन वह मुकम्मल नहीं हो पाते। आइए इन सबके बारे में जानते हैं। सबसे पहले पीआरडी जवान रविंद्र सिंह की कहानी…
सैलरी इतनी कम कि बेटे की फीस नहीं जमा कर पाता
40 साल के रविंद्र सिंह हाथरस जिले के न्यू तमन्ना गढ़ी में रहते थे। 10 साल पहले उनकी शादी पूनम से हुई थी। दो बेटे हैं। बड़ा बेटा 8 साल का व दूसरा 4 साल का है। पिछले कुछ वक्त से दोनों बेटे, मां और पत्नी रविंद्र के बड़े भाई के पास गुजरात में रह रही थी।
हाथरस में वह अकेले ही रहते थे। 2 अगस्त को रविंद्र ड्यूटी पर नहीं गए। घर पर रहकर सुसाइड नोट लिखा और फांसी लगा ली। 3 तारीख को एक चीख पर मोहल्ले के सभी इकट्ठा हो गए। रविंद्र के घर से कोई नहीं निकला। पड़ोसियों ने खिड़की से अंदर देखा तो रविंद्र की लाश फंदे पर लटकती मिली।
सूचना मिलते ही मौके पर पुलिस पहुंची। रविंद्र के मामा श्यामवीर सिंह पहुंचे। कमरा तलाशा तो एक सुसाइड नोट मिला। रविंद्र ने उसमें लिखा है,"मुझे 395 रुपए रोजाना मिलते हैं, मेरे दो लड़के और पत्नी हैं। मां भी साथ रहती हैं। जिनका खर्च मैं चलाता हूं। मुझे महीने के 24-25 तारीख को सैलरी मिल जाती है। मैं अपने बच्चों की फीस समय पर नहीं भर पा रहा हूं। मजबूर होकर मैं आत्महत्या कर रहा हूं।"
पिछले साल 20 रुपए बढ़ी थी सैलरी
यूपी में कुल करीब 35 हजार प्रांतीय रक्षक दल यानी पीआरडी जवान हैं। पहले इन्हें साल भर में 50-60 दिन की ही ड्यूटी मिलती थी। 2020 में इसमें 25 हजार जवानों को सालभर ड्यूटी देने की बात कही गई। इसमें 11 हजार जवानों को थाने व शहरी ट्रैफिक व्यवस्था संभालने के लिए 14 हजार जवान लगाए गए।
इसके बावजूद बड़ी संख्या में जवानों को रोज ड्यूटी नहीं मिली। पिछले साल यूपी सरकार ने इन लोगों की सैलरी में 20 रुपए बढ़ा दिए। अब इन्हें एक दिन की ड्यूटी का 395 रुपए मिलता है। इन जवानों की मांग है कि इन्हें नियमित ड्यूटी दी जाए और रोज की सैलरी और बढ़ाई जाए।
मदरसा शिक्षकों को 78 महीने से सैलरी नहीं मिली
यूपी में आधुनिक मदरसो में गणित-विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाने वाले 21,546 शिक्षकों को पिछले 78 महीने से सैलरी नहीं मिली है। हर व्यक्ति का सरकार पर करीब 10-10 लाख रुपए बकाया है। इन्हें हर महीने 15 हजार रुपए मिलने चाहिए लेकिन सिर्फ 3 हजार रुपए ही मिलते हैं।
अपनी मांग को लेकर यह समय-समय पर लखनऊ के इको गार्डेन में प्रदर्शन करते हैं। अमेठी के मदरसा टीचर अभिषेक पांडेय कहते हैं, हम अपनी सांसद स्मृति ईरानी से 7 बार मिल चुके हैं। पिछली बार मिले थे तो उन्होंने कहा कि ये योजना बंद हो गई है, आप लोग अब दूसरा कुछ देखिए।
इतना कहने के बाद अभिषेक कहते हैं, "आखिर हम कहां जाएंगे? प्रदेश में 21 हजार से ज्यादा शिक्षक हैं, इनकी सैलरी के लिए हर साल 165 करोड़ रुपए चाहिए लेकिन केंद्र सरकार महज 10 करोड़ रुपए देती है।"
यूपी में कुल 19,213 मदरसे हैं। इसमें 7,356 मदरसे सीधे सरकार से फंडेड है। यहां 21,546 शिक्षक बच्चों को गणित, अंग्रेजी, विज्ञान व कम्प्यूटर पढ़ाते हैं। ये सभी शिक्षक 1993 में शुरू हुई स्कीम के तहत भर्ती किए गए। 2008 में इस स्कीम का नाम बदलकर स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वालिटी एजुकेशन इन मदरसा कर दिया गया।
स्कीम का मकसद था कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को न सिर्फ धार्मिक बल्कि आधुनिक शिक्षा दी जाए। शुरुआत में योजना अच्छी चली लेकिन 2013 से केंद्र सरकार भुगतान में देरी करने लगी। 2021 तक अध्यापकों का कुल बकाया 777 करोड़ तक पहुंच गया।
शिक्षा मित्र: पहले 40 हजार सैलरी थी अब 10 हजार हो गई
26 मई 1999 को संविदा के आधार पर शिक्षा मित्रों की नियुक्ति हुई। स्थायी नौकरी की उनकी मांग जून 2013 में पूरी कर दी गई। 1 लाख 72 हजार शिक्षा मित्र सहायक अध्यापक बना दिए गए। सरकार के इस फैसले को चुनौती दी गई। 2017 में सभी का समायोजन रद्द कर दिया गया और दोबारा शिक्षा मित्र बना दिया गया। पहले जहां 40 हजार से ज्यादा सैलरी मिलती थी वह अब 10 हजार हो गई।
2017 के बाद शिक्षा मित्र अलग-अलग मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दिनों मिर्जापुर के कौशल सिंह ने आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा था, "मोदी-योगी की दोहरी नीति के चलते आत्महत्या कर रहा हूं। क्योंकि 10 हजार में अपने परिवार का पालन-पोषण नहीं कर पा रहा हूं।"
शिक्षा मित्रों के नेताओं की माने तो पिछले 6 साल में 1 हजार से ज्यादा शिक्षा मित्रों ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर चुके हैं।
शिक्षा मित्र चाहते हैं कि उन्हें कम से कम 20 हजार रुपए तो सैलरी मिलनी चाहिए। हम भी उतनी ही मेहनत करते हैं जितना हमारे स्कूल में सहायक अध्यापक करते हैं।
सैलरी 17 हजार, मिलते हैं 9 हजार
2013 में अपर प्राइमरी स्कूलों में 41,307 अनुदेशकों की भर्ती हुई। ये अनुदेशक शारीरिक शिक्षा, कला, कम्प्यूटर और कृषि विज्ञान पढ़ाने के लिए रखे गए। शुरुआती सैलरी 7 हजार तय की गई थी। इसमें 60% पैसा केंद्र सरकार और 40% पैसा राज्य सरकार देती थी। 2016 में अखिलेश सरकार ने अनुदेशक अध्यापकों की सैलरी में 1470 रुपए की बढ़ोत्तरी कर दी। 2017 में आई बीजेपी सरकार ने इसे गलत बताते हुए शिक्षकों से रिकवरी कर ली।
2017 में यूपी सरकार ने अनुदेशक शिक्षकों की सैलरी 17 हजार किए जाने को लेकर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा। प्रोजेक्ट को मंजूर कर लिया गया। तय किया गया कि इसमें 60 फीसदी पैसा केंद्र सरकार और 40 फीसदी पैसा राज्य सरकार देगी। 19 मई को बीजेपी यूपी के ट्विटर पर भी शेयर किया गया कि अब अनुदेशकों को 17 हजार रुपए मिलेंगे। लेकिन 6 साल बीत जाने के बाद भी उन्हें आज तक 17 हजार रुपए नहीं मिले।
2013 से 2023 आ गया। अब 27,546 बचे हैं। 14 हजार अनुदेशक नौकरी में नहीं हैं। इसमें अधिकतर वो लोग हैं जिनके स्कूलों में 100 से कम बच्चे होने से निकाल दिया गया। आज भी अपनी पूरी सैलरी के लिए इनका संघर्ष जारी है। कोर्ट में केस है। लखनऊ खंडपीठ ने 4 जुलाई 2018 को अपने एक फैसले में कहा कि 17 हजार सैलरी पर इनका अधिकार है। इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने डबल बेंच में याचिका दायर की थी।
पंचायत सहायकों को हर दिन 200 रुपए
यूपी में कुल 58,194 ग्राम पंचायतें हैं। 2021 में तय किया गया है कि हर एक पंचायत में एक पंचायत सहायक रखा जाएगा। भर्ती हुई। 6 हजार रुपए सैलरी तय की गई। इसमें शर्त रखी गई कि वही अप्लाई कर सकते हैं जिनके घर में ग्राम प्रधान, बीडीसी, ग्राम पंचायत सदस्य, सचिव व जिला पंचायत सदस्य हैं वह अप्लाई नहीं कर सकते। बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने अप्लाई किया और आज 6 हजार रुपए महीने की वेतन पर नौकरी कर रहे हैं। इन लोगों की मांग है कि 200 रुपए रोज की सैलरी में परिवार चलाना मुश्किल है। इसे और बढ़ाया जाए।
एंबुलेंस कर्मचारियों ने सैलरी बढ़ाने की बात की तो नौकरी से निकाल दिया गया
यूपी में एंबुलेंस सेवा प्रदान करने का काम हैदराबाद की GVK EMRI कंपनी देखती है। कंपनी में भर्ती का पूरा काम वाइस प्रेसिडेंट TVSK रेड्डी देखते हैं। इसमें एंबुलेंस ड्राइवर को 12,700 रुपए और इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन को 13,700 रुपए सैलरी मिलती है। कर्मचारियों ने 2021 में सैलरी को लेकर प्रदर्शन किया। यूपी सरकार ने अल्टीमेटम दिया कि अगर आंदोलन खत्म नहीं करते तो इन्हें नौकरी से निकाल दिया जाए। कर्मचारी नहीं माने। कंपनी ने 9 हजार लोगों को नौकरी से बाहर कर दिया।
पिछले दो साल में नौकरी से निकाले गए कई लोगों ने आत्महत्या कर ली। जो निकाले गए हैं वह आज भी अपनी नियुक्ति को लेकर प्रदर्शन करते हैं। कंपनी का साफ कहना है कि सरकार अगर भर्ती करने को कहेगी तो भर्ती किया जाएगा।
ये तो थी कम सैलरी वाले कर्मचारियों की बात। यूपी के ही पड़ोसी राज्य दिल्ली में मजदूरों का मासिक वेतन 17,234 रुपए तय कर रखा है। इससे कम देने पर कंपनी के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। दिल्ली के मुकाबले यूपी सरकार ने कम वेतन रखा है, आप इस चार्ट में देख सकते हैं। इस नियम के बावजूद भी कई स्थानों पर सरकार ही कर्मचारियों को कम सैलरी देती है।
साभार राजेश साहू दैनिक भास्कर