कानपुर कांड पर बड़ा खुलासा, जानिए आठ पुलिसकर्मियों के शहीद होने की एक और बड़ी वजह, क्यों की थी पुलिस ने इतनी बड़ी चूक?
हर बात के दो पहलू होते है जिसकी हम और आप को सोचने और समझने की जरूरत है
कानपुर में हिस्ट्रीशीटर और कुख्यात विकास दुबे को पकड़ने में आठ पुलिसकर्मियों के शहीद होने के पीछे एक और बड़ी वजह सामने आई है। विकास दुबे किस स्तर का अपराधी है यह समझने की चूक दबिश में गए पुलिस कर्मियों के अलावा अधिकारियों से भी हो गई। पुलिस औऱ अधिकारी दोनों ही भांप नहीं सके कि विकास दुबे उनके ऊपर हमला भी कर सकता है। हमला ही नहीं बकायदा योजना बनाकर पुलिस की हत्या करने की हिम्मत भी रखता है। उसके पीछे कारण भी है। कुछ अधिकारी नए हैं और जो पहले से हैं वह पहले कभी कानपुर में तैनात नहीं रहे हैं जिसके चलते विकास के बारे में पूरी जानकारी उनके पास भी नहीं थी।
गुरुवार रात को रोहित तिवारी की तहरीर पर चौबेपुर पुलिस ने विकास दुबे और उसके साथियों के खिलाफ धारा 307 में एफआईआर दर्ज की। जिसके बाद गुरुवार देर रात में ही पुलिस ने दबिश देकर विकास दुबे को दबोचने की योजना बनाई। शहीद हुए सीओ बिल्हौर देवेन्द्र मिश्रा के नेतृत्व में तीन थानों की फोर्स बिकरू गांव में दबिश देने पहुंची।
सीओ उस क्षेत्र के लिए नए थे। वह विकास दुबे जैसे शातिर अपराधी के बारे में नहीं जानते थे। इसके अलावा बिठूर, शिवराजपुर और बिल्हौर के थानेदार भी उस क्षेत्र और कुख्यात विकास दुबे के बारे में जानकारी नहीं रखते थे। पुलिस उसे एक मामूली बदमाश समझकर दबिश देने चली गई। एसओ चौबेपुर विनय तिवारी को उसके बारे में जानकारी थी भी तो उसने अधिकारियों को उसके बारे में बताने की जरूरत महसूस नहीं की जिससे और ज्यादा तैयारी के साथ पुलिस पहुंचती।
अधिकारी भी नहीं भांप सके
एडीजी जोन इससे पहले कभी कानपुर में तैनात नहीं रहे। जिसके कारण वह भी इस अपराधी के हौसलों के बारे में उतना नहीं जानते थे। यही हाल आईजी रेंज का रहा। इसके अलावा एसएसपी इससे पहले यहां एसपी पश्चिमी रह चुके हैं। मगर उनके कार्यक्षेत्र से बिल्हौर सर्किल और चौबेपुर थाना नहीं था। वर्जितमान में एसपी ग्रामीण भी नए आए हैं। इस कारण उन्हें भी बहुत अधिक जानकारी नहीं थी। अधिकारी भी आकलन नहीं कर सके कि आखिरकार वहां क्या हो सकता था।
विकास के बारे में पूर्व डीआईजी अनंत देव तिवारी और एसपी ग्रामीण प्रद्युम्न तिवारी अच्छे से जानते थे मगर उनका तबादला हो चुका था।एक भी पुलिस कर्मी दबिश के दौरान नहीं पहने था हेलमेट और बॉडी प्रोटेक्टर
दबिश को हल्के में लेने की आदत ने पुलिस को भारी नुकसान पहुंचाया।
अगर सीओ और तीन थानों की पुलिस फोर्स बॉडी प्रोटेक्टर और पूरी तैयारी के साथ दबिश देते तो शायद इतना बड़ा नुकसान नहीं होता। जांच के दौरान यह सामने आया है कि पुलिस ने विकास को अन्य अपराधियों की तरह हल्के में लेकर दबिश डाली थी।दबिश को हल्के में लेना और बगैर सुरक्षा उपकरण विकास के घर दबिश देना एक बड़ी चूक पुलिस की सामने आई है।
जांच के दौरान हेलमेट और बॉडी प्रोटेक्टर बगैर पहनने के साथ ही कोई अलर्ट पोजीशन में भी नहीं था।रास्ते में जेसीबी खड़ी होने के बाद भी कोई अलर्ट नहीं हुआ। स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर एसओपी के तहत पुलिस बल को कई हिस्सों में चारों तरफ बांटा नहीं गया।
ताबड़तोड़ गोलियां चलीं तो पुलिस को मोर्चा संभालने की तो दूर अपनी जान बचाना भी आफत पड़ गई। पुलिस खुद चारों तरफ से घिर गई और बदमाशों की गोली से सीओ, एसओ समेत आठ पुलिस कर्मियों की जान चली गई। हमले के दौरान बचकर आए पुलिस कर्मियों से पूछताछ के दौरान यह बात सामने आई है। शहर के सभी थानेदारों को अब दबिश के दौरान पूरी तैयारी और नियमों का पालन करने का आदेश दिया गया है।
शातिर के पास मुखबिरों की फौज :
शातिर विकास दुबे के पास मुखबिरों की पूरी फौज है। युवाओं की इतनी बड़ी संख्या है कि उससे जुड़ी कोई भी सूचना उस तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता। पुलिस, प्रशासन, पीडब्ल्यूडी, नगर निगम, केडीए हो या अन्य कोई भी सरकारी विभाग, सभी जगह पर उसके लोग मौजूद हैं। वहीं, पुलिस पूरी तरह से सर्विलांस और आधुनिक संसाधनों पर आश्रित है।
उसका मुखबिर तंत्र खत्म हो चुका है। विकास दुबे अपने मिलने वालों से ठेकेदारी कराता और उसमें उसका कमीशन फिक्स है। अपराध की दुनिया का नेटवर्क कुख्यात ने अलग से तैयार किया है। इस टीम के युवा उसे शहर से लेकर गांव देहात तक की जानकारियां देते हैं। विकास के जानने वालों ने बताया कि सूचनाएं पहुंचाने की जिम्मेदारी 600 से ज्यादा युवाओं के पास है।
नेटवर्क से होता काम :
उसने मुखबिर तंत्र को इलाकों में बांट रखा है। 10 से 12 इलाकों को जोड़कर एक इंचार्ज है जो संबंधित इलाकों की सूचनाएं लेते और विकास तक पहुंचाते है। हालांकि, सूचना देने वाले युवकों को यह छूट भी है कि वे इमरजेंसी में सीधे उससे सम्पर्क करके सूचना पहुंचा सकते हैं।
पानी की तरह बहाया पैसा
अपराधी की नजर शुरुआत से पारखी रही है। वह अपने काम के लोगों को पहचानकर उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें काम देता। जो युवक उसके मुखबिर नेटवर्क में काम करते हैं, उन पर पानी की तरह पैसा बहाता। किसी के घर पर शादी हो तो खर्चा विकास दुबे के जिम्मे होता। बीमारी में भी वह अच्छे से अच्छे डॉक्टरों से इलाज कराता है, जिससे युवा उससे जुड़े रहते हैं।
अब कोई भी सारा दोष पुलिस और अधिकारियों पर डाल रहे है। किसी ने यह भी सोचा कि विकास दुबे की सोच कितनी गंदी थी एक आतंकवादी से भी खतरनाक सोच वाला व्यक्ति था, आतंकवादी विकास जैसे लोगो को सरेआम मार देना चाहिए। जिससे एक बार ऐसी क्रूर घटना को अंजाम देने से पहले एक बार सोच ले की अभी कानून जिंदा है और अपराध करने की ऐसी भी सजा मिलती है
वैभव शुक्ला(पत्रकार)