निर्मला लड़की से लड़का बनी पर पिता बनना मुमकिन नहीं, जानिए यूपी के मेरठ की ये अजब गजब कहानी
20 साल की निर्मला (बदला हुआ नाम), 5 बहनों में सबसे बड़ी है। उसके माता-पिता की ख्वाहिश थी कि उनके घर एक बेटा हो, जो उनका वंश आगे बढ़ा सके। बेटा न होने के गम में कई बार उनकी आंखें भी भर आती थीं। आखिरकार निर्मला ने उनका दर्द दूर करने का फैसला लिया और 10 दिन पहले अपनी पहचान ही बदलवा दी। मेरठ के सरदार वल्लभभाई पटेल मेडिकल हॉस्पिटल में निर्मला ने जेंडर चेंज कराकर खुद को लड़का बना लिया है।
'मैं नहीं चाहती थी परिवार टूटे, इसलिए लड़का बनी'
वह कहती है, 'बहनों में सबसे बड़ा होने के नाते मेरा कर्तव्य रहा है कि मैं घर की हर जिम्मेदारी निभाऊं। इसलिए मुझे अपनी पहचान बदलनी पड़ी है। मैं नहीं चाहती थी कि हमारा हंसता-खेलता परिवार बिखरे या टूटे। तब मुझे लड़की का जिस्म छोड़कर लड़का बनना पड़ा। बेशक मैं एक लड़की पैदा हुई थी, लेकिन अब मुझे तन और मन की लड़की को मारकर एक लड़के की तरह जीना है। मैं इसमें खुश हूं क्योंकि आज मेरे मां-बाप को बेटा और बहनों को भाई मिल चुका है'।
सहेलियों से कहा- 'अपना भाई मुझे दे दो'
निर्मला कहती है, हर बार मेरे घर बहन पैदा होती रही, भाई नहीं आया। लोग दहेज की बात कहकर हमें बोझ बताते। कोई कहता वंश नहीं चलेगा तो मम्मी-पापा बहुत दुखी होते, क्योंकि उन्हें समाज के ताने सुनने पड़ते थे। रिश्तेदार भी घर आकर मम्मी को ताने मारते। तानों तक ठीक था, लेकिन जब पापा की दूसरी शादी की बात घर में होने लगी तो मेरा डर बढ़ने लगा। इन बातों से मम्मी और हम सभी बहनें सहम जाते।
मैं सोचती पापा ने हमें छोड़ दिया तो हम कहां जाएंगे। कैसे जिएंगे, लेकिन पापा हमसे बहुत प्यार करते हैं। इसलिए कभी उन्होंने किसी की बात नहीं सुनी। हम बहनें भी दिनरात भगवान से प्रार्थना करती कि हमारे घर कोई भाई आ जाए। मैंने अपनी सहेलियों से भी पूछा कि वो अपना भाई मुझे दे दें। कई संस्थाओं में तलाशा कहीं एक बेटा मम्मी-पापा को मिल जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मम्मी को ताने न मिलें इसलिए लड़कों जैसे रहती थी
निर्मला बताती हैं- अपनी मां को बार-बार लड़के के लिए रोते देखकर मैंने सोच लिया कि मैं ही घर का बेटा बनूंगी। अपने घर में बेटे की कमी को पूरा करूंगी। इसलिए बचपन से मैं लड़कों की तरह रहने लगी। मेरा बदन बेशक लड़की का था, लेकिन मैंने खुद को लड़कों की तरह ढाल लिया। कभी लड़कियों के कपड़े नहीं पहने, बाल लंबे नहीं किए। छोटी बहनें मुझे राखी बांधकर भाई कहने लगीं।
पहनावे से आधा बेटा ही बन पाई थी, अब पूरा बन गई
अपना पहनावा, चाल बदलकर, घर में लड़कों केकाम करके, बहनों से राखी बंधवाकर मैं लड़के जैसी बन गई। लेकिन उसमे भी कुछ कमी रह गई थी। तो लगभग डेढ़ साल पहले मुझे जेंडर चेंज सर्जरी का पता चला। एक दिन मैंने मम्मी-पापा ने तय किया कि अब मैं पूरा बेटा बनूंगी।
मैंने खुद मम्मी-पापा को इसके बारे में बताया, पहले उन्होंने इंकार किया। बोला कि, ये गलत है, हम तुझे नहीं खो सकते। तब मैंने कहा मैं तो अभी भी लड़कों जैसे रहती हूं, पूरा लड़का बनने में हर्ज क्या है। काफी दिनों की बातचीत के बाद मम्मी-पापा ने समझा, हम तीनों ने मेरे जेंडर चेंज का फैसला लिया और प्रशासन की परमिशन लेकर ये सर्जरी कराई। अब मैं पूरा लड़का हूं, और अपने घर का अकेला बेटा हूं।जब कुछ नहीं सूझा तो जेंडर चेंज कराया- पिता