मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने इतिहासकार लालबहादुर जी को याद करते हुए कहा कि ज़हन में इलाहाबाद युनिवर्सिटी के दिनों की तमाम यादें ताज़ा हो गईं, निराला सभागार में पहली बार एक सेमिनार में लालबहादुर जी ने फ़िलिस्तीन पर जो व्याख्यान दिया था उसने हमें समझाया था कि वैश्विक दुनिया में फिलिस्तीन हमारे देश का कितना मज़बूत साथी है ।
यश मालवीय भाई ने कई बार लालबहादुर जी को सुनने समझने की महफ़िलें मुहैय्या करवाईं। आज सुबह सुबह ख़बर मिली कि कोरोना ने हमसे बहुत बड़ा आदमी छीन लिया। अलविदा लालबहादुर वर्मा जी.......एक बड़ा तबका आपके हवाले से इलाहाबाद को पहचानता था, आप अपने अंदर इलाहाबादीपन लेकर हम सबसे विदा हो गये।
मैं अकादमिक और साहित्यिक होते हुए भी एक्टिविस्ट रहा हूं। जब गोरखपुर में था, तब भी; जब इलाहाबाद में था, तब भी और अब जबकि देहरादून में रहता हूं तब भी। हालांकि अब मैं बूढ़ा और रिटायर हो गया हूं - मैं एक काम हमेशा करता रहा हूं : दोस्ती करना। आज की दुनिया में जबकि दुश्मनियां बढ़ाई जा रही हैं, दोस्त बनाना एक तरह का एक्टिविज्म है, एक तरह का विद्रोह है, एक तरह के विपक्ष का निर्माण है।
दोस्ती का मतलब कोई पार्टी या संगठन बनाना नहीं है। दोस्ती का मतलब है एक-दूसरे को भला इंसान मानना, एक-दूसरे पर विश्वास और भरोसा करना, एक-दूसरे के दुख-सुख में शामिल होना और धर्म, जाति, पेशे, स्टेटस, विचारधारा, राजनीति, खान-पान, रहन-सहन आदि के तमाम भेद होते हुए भी दोस्ती करना और उसे निभाना। मैं फेसबुक वाली दोस्ती की नहीं, आभासी दुनिया वाली दोस्ती की नहीं, वास्तविक दोस्ती की बात कर रहा हूं। मैं दोस्तों से बाहर ही नहीं मिलता, उनके घर जाकर भी मिलता हूं, उन्हें अपने घर बुलाकर भी मिलता हूं, मतभेद होते हुए भी मैं उनसे बातें और बहसें करता हूं। इस तरह मैं और मेरे दोस्त कोई लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि अगर कभी सच और झूठ, न्याय और अन्याय, मानुषिकता और अमानुषिकता के सवाल पर कोई लड़ाई हुई, तो मैं और मेरे दोस्त तमाम मतभेदों के बावजूद सत्य, न्याय और मनुष्यता के पक्ष में खड़े होकर लड़ेंगे। लड़ेंगे और जीतेंगे भी।
- लाल बहादुर वर्मा
अलविदा सर!
("कथन" के जुलाई-दिसंबर 2019 के अंक में संज्ञा उपाध्याय को दिए साक्षात्कार में)