सहारनपुर के फतेहपुर पैलियो आज भी अपनी बदहाली पर बहा रहा है आंसू, कब बदलेगी तस्वीर

यहां के लोग जैसे कि 14 सदी में जी रहे हैं ना ही कोई हां पर बच्चों के पढ़ने के लिए कोई स्कूल है बरसात में इन रास्तों से होकर गुजरना यानी की मौत को दावत देना है। बरसात के मौसम में नदियों में पानी आने की वजह से इलाज ना मिलने के कारण बीमार व्यक्ति की मौत रास्ते में ही हो जाती है।

Update: 2020-03-13 15:59 GMT

उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर की नंबर वन बेहट विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत फतेहपुर पैलियो की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। देश को आजाद हुए 73 साल हो गए हैं। इस दौरान देश ने काफी तरक्की की है। लेकिन क्षेत्र ग्राम पंचायत फतेहपुर पलियों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया पाया है। भले ही देश आजाद हुए हजारों साल पुरानी समस्याओं से आजादी नहीं मिल पाई है ग्रामवासी अपने जनप्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों से अपनी समस्याओं के निराकरण हेतु गुहार लगाते थक गए है। मगर ना तो कभी किसी अधिकारी के सिर पर कोई जु रेगी है और नहीं किसी जनप्रतिनिधि ने कभी इसकी सुध ली है।

शिवालिक पर्वत की खूबसूरती तलहटी में बसा गांव फतेहपुर पेलियो के लिए तीन मजरों पर आधारित है। लगभग 2000 की आबादी वाले फतेहपुर पलियों में मुस्लिम दलित व ओवैसी हिंदू बंजारों की संख्या लगभग बराबर है। यहां की आबादी अधिकतर गरीब है दुनिया को तमाम समस्याओं में यहां की जनता बिक्री हुई है और इन सब समस्याओं की जड़ इस गांव का 3 और से नदिया से घिरा है जिन पर कोई पुल नहीं है पुल ना होने के कारण यहां पर यातायात के कोई भी साधन नहीं है। इस गांव के अंदर ना ही कोई सरकारी अस्पताल है। जिससे कि यहां को लोगों को बेहतर इलाज बीमार व्यक्तियों को इलाज मिल सके।



यहां के लोग जैसे कि 14 सदी में जी रहे हैं ना ही कोई हां पर बच्चों के पढ़ने के लिए कोई स्कूल है बरसात में इन रास्तों से होकर गुजरना यानी की मौत को दावत देना है। बरसात के मौसम में नदियों में पानी आने की वजह से इलाज ना मिलने के कारण बीमार व्यक्ति की मौत रास्ते में ही हो जाती है। एंबुलेंस गांव तक पहुंचती नहीं है। बस नदी के किनारे ही खड़ी रह जाती है बस यहां के कई लोग इस गांव को प्लेन भी कर चुके हैं। लेकिन हालात जो भी तो बने हुए हैं में जिस कारण यहां के गरीब लोग वह रोजी कमाने कहीं बाहर जा नही पाते हैं।

ग्राम वासियों को सबसे ज्यादा मुसीबत बरसात के मौसम मैं झेलनी पड़ती है ।नदी में पानी आ जाने पर यहां के गंभीर रोगियों को बेहतर इलाज के अभाव में तड़प कर मर जाने को मजबूर हो जाना पड़ता है और अन्य मूलभूत सुविधाओं ना होने के कारण यहां के लोगों को अपने बच्चों की शादियां करना बहुत मुश्किल हो जाता है। बाहर के लोग इस गांव मैं अपनी रिश्तेदार या नहीं जोड़ना चाहते यही इलाका दूसरा परिणाम है कि दलितों की बस्ती की जनसंख्या बढ़ने के बजाय लगातार घटती जा रही है।

क्षेत्रीय विधायक या सांसद भी इनकी नहीं सुनने वह चुनाव के समय आश्वासन देकर इनके वोट ठग लेते हैं। बाद में इनकी कोई सुध नहीं लेते आखिर यहां के गरीब लोगों का कसूर क्या है? यहां के लोग गरीब है शायद यही इनका कसूर है ।कब बदलेगी तस्वीर सरकार चाहे विकास के जितने भी दावे कर ले लेकिन धरातल पर तस्वीर ही कुछ और होती है।

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