सहारनपुर में पत्रकार आशीष की हत्या में शामिल माँ बेटी गिरफ्तार
पत्रकार आशीष की हत्या में शामिल दो लोंगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.
सहारनपुर में रविवार को सवेरे ही एक घटना को अंजाम दिया गया जिसमें एक पत्रकार आशीष शर्मा व् उनके छोटे भाई की निर्मम तरीके से घर में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस घटना से पुरे प्रदेश में हडकम्प मच गया क्योंकि मृतक पत्रकार पेशे से आते थे।
घटना के संज्ञान स्वंय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लिया और मृतकों को पांच पांच लाख का मुआवजा देते हुए डीएम और एसएसपी को जल्द से जल्द हत्यारे गिरफ्तार करने का निर्देश देते हुए डीजीपी को केस की मोनीटरिंग पर लगाया। घटना की जानकारी डीजीपी पल पल पर ले रहे है। घटना का कार्य डीआईजी उपेन्द्र अग्रवाल और एसएसपी दिनेश कुमार पी खुद संभाले हुए है।
अभी मिली जानकारी के मुताबिक घटना में शामिल आरोपी माँ बेटी सहारनपुर पुलिस ने गिरफ्तार कर ली है। यह जानकारी पुलिस ने दी. बताया गया है घटना के बाद आरोपी सपरिवार घर छोड़कर भागे हुए है। इसमें आज आरोपी की पत्नी और बेटी जो घटना में नामजद अभियुक्त है उनको पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया जो कहीं बाहर भाग जाने के उद्देश्य से बस अड्डे पर खड़ी थी. पुलिस को जैसे इसकी जानकरी मिली पुलिस ने मौके से गिरफ्तार कर लिया. यह इस केस में पहली गिरफ्तारी है।
वहीँ इस घटना पर मृतक पत्रकार की पीडिता माँ ने बताया
घटनाक्रम सिर्फ इतना जरूर है लेकिन इसके पीछे की कहानी काफी सुनियोजित है। घायल उर्मिला बताती हैं कि एक दिन पहले ही आरोपियों ने अपने घर का सामान गाड़ियों में लादकर अन्यत्र भेज दिया था। उन्हें अंदाजा नहीं था कि ये सब हत्या की प्लानिंग है। आशीष अपने घर में अकेला कमाने वाला नौजवान था और एक हफ्ते पहले ही उसे दैनिक जागरण में सहारनपुर कार्यालय में नौकरी मिली थी। इससे पहले वह दैनिक जनवाणी और हिंदुस्तान में अपनी सेवाएं दे चुका था। आशीष के पिता प्रवीण की दो साल पूर्व ही कैंसर की बीमारी से मृत्यु हुई थी और डेढ़ साल पहले आशीष का विवाह हुआ था। पत्नी रूची आठ माह की गर्भवती है। इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस की ऐसी लापरवाही सामने आ रही है, जो खासतौर पर खबरों और पत्रकारों को नजरअंदाज करने से पैदा होती है।
दो साल पहले छपी खबर का यदि पुलिस ने संज्ञान लेकर सख्त कार्रवाई की होती तो शायद आरोपियों के हौसले बुलंद होकर हत्या जैसे जघन्य अपराध की योजना तक न पहुंच पाते। एक पाश इलाके में परचून की दुकान पर लगातार शराब बेचे जाने की जानकारी क्या शहर कोतवाली पुलिस को नहीं थी? अभी पिछले दिनों सहारनपुर में जहरीली शराब से 100 से अधिक मौतों के बाद चले अभियान में भी इन शराब बेचने वालों पर पुलिस की नजर क्यों नहीं गई? यह आसानी से समझा जा सकता है। मौके पर इलाके के लोग पुलिस अफसरों के सामने ही बता रहे थे कि महिपाल और उसके लड़के नाई की दुकान पर भी अवैध पिस्टल सामने रखकर शेविंग कराते थे। सवाल यह भी है कि पुलिस का मुखबिर तंत्र क्या कर रहा था? यह तंत्र सक्रिय था तो पुलिस किन कारणों से इन पर हाथ डालने में निष्क्रिय थी? क्या आरोपियों को कोई राजनीतिक संरक्षण हासिल था या पुलिस व्यवस्था को इन्होंने खरीद लिया था? शासन ने मृतकों के परिवार को 5-5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की घोषणा की है, लेकिन क्या इससे परिवार के दो सपूतों की भरपाई हो पाएगी? एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु ने पूछे जाने पर कहा, "सुनियोजित हत्या के बिंदु पर जांच हो रही है। पुलिस की तीन टीमें गंभीरता से आरोपियों की गिरफ्तारी के प्रयास कर रही हैं।"
लेकिन पुलिस कितनी गंभीर है, इस बात का अंदाज घटना के बाद पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज से लगाया जा सकता है।आक्रोशित महिलाएं आरोपियों के घर में घुसने का प्रयास कर रही थीं तो पुलिस ने इन पर लाठीचार्ज कर दिया। मीडिया के पास इसके वीडियो फुटेज मौजूद हैं। लेकिन एसएसपी ने सीओ से मिले फीडबैक के बाद लाठीचार्ज की घटना से ही इन्कार कर दिया। लखनऊ में बैठे बड़े नौकरशाह जिले के अफसरों से लगातार फीडबैक ले रहे हैं, मरने और मारने वालों की जातियां पूछ रहे हैं। वजह साफ है कि सहारनपुर की गंगोह विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है और यहां आरोपियों के सजातीय वोट निर्णायक हैं। लेकिन पत्रकार लाचार, बेबस और असंगठित हैं। इसे भी नियती पर छोड़ दिया जाएगा और इंसाफ की उम्मीद उस सिस्टम से की जा रही है, जिसने शराब माफिया को दो साल में युवा पत्रकार और उसके भाई को कत्ल करने का पूरा मौका दिया। आरोपियों के घर में अवैध हथियार, हत्या से एक दिन पहले घर का सामान अन्यत्र भेजने और मामूली बात पर दोहरा हत्याकांड अंजाम देने की घटना क्या सुनियोजित नहीं कही जाएगी?