गिरीश मालवीय
जैसा कि आपको कहा ही था कोरोना की देश मे दुसरी लहर आने को हैं तो जैसे जैसे बिहार चुनाव का प्रचार समाप्ति की ओर जा रहा है वैसे वैसे कोरोना की दुसरी तथाकथित लहर नजदीक आती जा रही है . 7 नवंबर को बिहार चुनाव का आखिरी चरण है इसके पहले 5 नवम्बर को चुनाव प्रचार खत्म हो जाएगा तब तक दूसरी लहर की आमद की घोषणा हो जाएगी, ऐसा लग रहा है
कल एम्स दिल्ली के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने चेतावनी दी है कि कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो गई है. दिल्ली के लिए उनका कहना है कि यह कोरोना की तीसरी नहीं बल्कि दूसरी ही लहर है जो एक बार फिर से बढ़ गई है. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि जिस तरह से दिल्ली में केस बढ़े हैं ऐसे में देश के बाकी हिस्सों में एक और लहर आ सकती है.
यूरोप में कोरोना की दूसरी लहर दिख भी रही हैं वहाँ भी एक बार फिर लॉक डाउन की चर्चा है लेकिन वहाँ होने वाले लॉक डाउन में ओर भारत मे पिछली बार किये गए ड्रेकोनियन लॉक डाउन में बहुत अंतर है, यूरोप में लॉकडाउन के दौरान नागरिक अधिकृत आउट-ऑफ-होम यात्राएं काम पर जाने के लिए, चिकित्सा नियुक्ति के लिए, सहायता प्रदान करने, खरीदारी करने या यहाँ तक कि हवा लेने के लिए भी कर सकता है लेकिन हमारे हिंदुस्तान में पिछली बार सरकार ने क्या हाल किये थे हमे अच्छी तरह से पता है.
कोरोना के प्रसार को लेकर एक ओर महत्वपूर्ण खोज भी सामने आई है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने को लेकर अभी तक यही कहा जा रहा था कि यह खांसने या छींकने से निकलने वाली बूंदों की कारण तेजी से फैलता है लेकिन अब यह दावा गलत साबित होता दिख रहा है.
एक नए अध्ययन में पता चला है कि खांसने अथवा छींकने के बाद हवा के संपर्क में आने वाली एयरोसोल माइक्रोड्रॉपलेट्स (हवा में निलंबित अतिसूक्ष्म बूंदें) कोरोना वायरस संक्रमण फैलाने के लिए खास जिम्मेदार नहीं होतीं.
बंद स्थान में बूंदों का खास प्रभावी नहीं है. जर्नल 'फिजिक्स ऑफ फ्ल्यूड' में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक बंद स्थान में सार्स-सीओवी-2 का एयरोसोल प्रसार खास प्रभावी नहीं होता है.
अनुसंधानकर्ताओं ने एक बयान में कहा, 'यदि कोई व्यक्ति ऐसे स्थान पर आता है जहां कुछ ही देर पहले कोई ऐसा व्यक्ति मौजूद था जिसे कोरोना वायरस संक्रमण के हल्के लक्षण थे तो उस व्यक्ति के संक्रमण की जद में आने की आशंका कम होती है.
इंदौर के अरविंदो हस्पताल के डॉक्टरों ने भी कुछ ऐसी ही रिसर्च की है उन्होंने एक प्रयोग किया अस्पताल में भर्ती कोरोना के मरीजों से उन्होंने बिना मास्क के फलों और सब्ज़ियों पर खांसने के लिए कहा. तकरीबन आधे घंटे तक सब्ज़ियों को मरीजों के सामने रखा गया. कुछ मरीजों ने तो सब्ज़ियों और फलों को अपने मुंह में भी रखा. इसके बाद सब्ज़ियों और फलों को सूर्य की रोशनी के बिना सिर्फ प्राकृतिक हवा में रखा गया. एक घंटे बाद इन सब्जियों और फलों की सतह का सैंपल लिया गया.
लेकिन आरटी पीसीआर जांच के बाद एक भी फल या सब्जी में कोरोना का संक्रमण नहीं मिला। लिहाज़ा डॉक्टर इस निष्कर्ष पर पहुंच सके कि सब्ज़ियों और फलों में कोरोना का संक्रमण नहीं फैलता। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों अपने शोध के दौरान अलग-अलग उम्र के दस पॉज़िटिव मरीजों के साथ यह एक्सपेरिमेंट किया।
अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के जो डॉक्टर इस प्रयोग में शामिल रहे हैं, उनमें न्यूरोलॉजिस्ट अजय सोडाणी, राहुल जैन और डॉ कपिल तैलंग शामिल हैं। उनकी यह रिसर्च इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन में भी प्रकाशित हुई है.
इस रिसर्च से इस वायरस के एयरबोर्न होने पर भी गम्भीर सवाल खड़े होते हैं.
भारत मे बीमारी की शुरुआत में ICMR के डॉक्टर गंगाखेड़कर ने वायरस के एयर बोर्न होने पर आशंका प्रकट करते हुए कहा था कि यदि ऐसा होता तो एक मरीज से परिवार के सभी सदस्यों में यह फैल जाता। यही नहीं, अस्पतालों में आस-पास भर्ती लोगों में भी यह वायरस पहुंच जाता, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं देखा गया है?
जुलाई में WHO ने फिर एक बार इसके ये यह वायरस एयरबोर्न है अगर ये एयरबोर्न है तो आज करोड़ों नही अरबो की संख्या में पेशेंट होने चाहिए थे. भारत में तो टेस्टिंग ही कम हो रही है लेकिन टेस्टिंग का मौतों से क्या ताल्लुक अगर यह डिसीज इतनी तेजी से फैल रही है तो लाखो मौत हो जानी चाहिए लेकिन ऐसा भी नही हो रहा है.
अगर यह एयर बोर्न है तो विश्व मे इतनी में भी मौत बहुत ज्यादा होनी चाहिए थी.
कोरोना की विश्व मे आमद को अब 10 महीने गुजर चुके हैं लेकिन अभी तक इसे लेकर बहुत सी बातें साफ नही हो पाई है कि उसके बावजूद बात बात में लॉक डाउन की बात कर हमे डराया जाता है और देश को आर्थिक तबाही के रास्ते पर ढकेला जा रहा है.