उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन के कारण 41 मजदूर तेरह दिन बाद भी वे बाहर नहीं निकाले जा सके!
मजदूर की चिंता सरकारें करती ठीक ढंग से करती क्यों नहीं है। अगर सरकार 13 दिन में भी सुरंग से मलबा हटाकर मजदूर निकालने में नाकाम है तो फिर देश में कोई बड़ी घटना पर क्या हश्र होगा सोचना पड़ेगा।
सिलक्यारा त्रासदी के दो हफ्ते यानी 13 दिन बीत चुके है। अब तक मजदूरों के परिवार परेशान है।
बीते 12 नवंबर 2023 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन के कारण 41 मजदूर फंस गए थे। तेरह दिन बाद भी वे बाहर नहीं निकाले जा सके हैं। यमुनोत्री की दूरी 26 किलोमीटर और समय एक घंटा कम करने के लिए बनाई जा रही सड़क का हिस्सा यह सुरंग पांच किलोमीटर लंबी है। इस सुरंग के निर्माण में की गई लापरवाही बेहद चौंकाने वाली है। यह सुरंग चारधाम परियोजना के तहत बनाई जा रही है। इस परियोजना के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश में एक हाई पावर कमेटी का गठन किया गया है जिसके सुझाव तथा दिशानिर्देश के अनुसार ही इस परियोजना का निर्माण कार्य होना है। कमेटी ने सिलक्यारा सुरंग के सर्वेक्षण के बाद सुझाव दिया था कि सुरंग की चौड़ाई 12 मीटर की जगह 7 से 8 मीटर होनी चाहिए क्योंकि सुरंग के ऊपर घना जंगल है और यहां पानी के स्रोत तथा सीपेज हैं। चौड़ाई 12 मीटर होने से बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार कपिल त्यागी ने वीडियो शेयर करते हुए लिखा उत्तरकाशी सुरंग बचाव अभियान में अब तक की सबसे बड़ी बाधा, बुरी तरह फंसी ऑगर मशीन, अब होगी वर्टिकल ड्रिलिंग, SJVN और ONGC की टीमें सिल्कयारा सुरंग के ऊपर पहाड़ी पहुंची, ड्रिलिंग मशीन आते ही वर्टिकल ड्रिलिंग का काम होगा शुरू
कमेटी के सदस्य हेमंत ध्यानी के मुताबिक इसी तरह की लापरवाही और मानकों की अनदेखी 2009 में एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना में की गई थी। इस परियोजना में सुरंग जोशीमठ के नीचे से बनाई जा रही थी। लापरवाही के कारण उस सुरंग में भूस्खलन होने से 200 करोड़ रुपये की मशीन आज भी मलबे में धंसी पड़ी हैं। इस मशीन ने जोशीमठ के जलस्रोत को पंचर कर दिया और आज जोशीमठ में जो पहाड़ धंस रहे हैं वह सुरंग के ही कारण ही है।
सिलक्यारा के सुरंग निर्माण में भी सुरक्षा उपायों की उसी तरह की अनदेखी की गई है। किसी संभावित दुर्घटना से मजदूरों को बचाने के लिए सुरक्षा उपायों की कोई व्यवस्था ही नहीं थी। सुरंग बनाते समय एडिट टनल का निर्माण किया जाता है या ह्यूम पाइप (बचाव रास्ता) बिछाई जाती है। इसका उपयोग दुर्घटना के समय मजदूरों को सुरक्षित निकालने के लिए होता है। एडिट टनल का निर्माण तो किया ही नहीं गया। ह्यूम पाइप भी दुर्घटना से एक महीने पहले निकाल ली गई थी जबकि कोई भी लंबी सुरंग बिना एडिट टनल के बनाई ही नहीं जा सकती।
सिलक्यारा की वह सुरंग जिसमें मजदूर पिछले दो हफ्ते से फंसे वहाँ मंदिर भी स्थापित किया गया
इस सुरंग को बनाने वाली कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड है। इस कंपनी को 2022 में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना भी हासिल हो गई है जो 2072 करोड़ रुपये की है, जिसमें 90 से 95 किलोमीटर की 20 सुरंगें बननी हैं। सबसे लंबी सुरंग 17 किलोमीटर लंबी होनी है। इस कंपनी की लापरवाही के चलते पहले भी 20 लोगों की मौत हो चुकी है। कंपनी ने महाराष्ट्र के ठाणे में समृद्ध एक्सप्रेसवे का निर्माण किया है। 31 अगस्त 2023 को एक्सप्रेस वे निर्माण के तीसरे चरण में एक गार्डर गिरने से 20 लोगों की जान चली गई थी जिसमें 10 मजदूर थे। उस वक्त कंपनी के दो स्थानीय ठेकेदारों के ऊपर मुकदमा दर्ज हुआ था, कंपनी कार्रवाई से बच गई थी। अभी तक जांच का कोई नतीजा नहीं निकला है।
अभी तो पांच किलोमीटर लंबी सुरंग का यह हाल है, तो जब कंपनी 17 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाएगी तब क्या होगा? उम्मीद है शायद इस सिलक्यारा सुरंग दुर्घटना की जांच का भी कोई नतीजा न निकले क्योंकि चारधाम मार्ग प्रधानमंत्री जी का खास प्रोजेक्ट है जिसका यह सुरंग हिस्सा है।
सीएम पुष्कर धामी मौके पर पहुँचे
मजदूर सुरक्षा की उपेक्षा
बहरहाल, सिलक्यारा की सुरंग में फंसे 41 मजदूर हर क्षण मौत के साये में जी रहे हैं। वे किस मानसिक त्रासदी से जूझ रहे हैं उसकी सहज कल्पना की जा सकती है। संकट में फंसे मजदूरों के परिवार, सगे-संबंधियों के रूदन और उनकी पीड़ा को महसूस किया जा सकता है, लेकिन देश के संवैधानिक प्रमुख क्रिकेट मैच में डूबे हुए हैं; सत्ता हासिल करने के लिए चुनावी भाषणों और रोड शो में व्यस्त हैं; हारे हुए क्रिकेट खिलाड़ियों को गले लगा रहे हैं।
सुरक्षा उपायों के अभाव में मजदूरों की होने वाली मौतों और उनके अपाहिज होने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। मजदूरों के सुरक्षा उपायों के साथ पूरी दुनिया में खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्हें बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करने पर मजबूर किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट कहती है कि दुर्घटनाओं के कारण 313 मिलियन लोगों को गंभीर चोटें आई हैं। पूरी दुनिया में हर साल लगभग 3.5 लाख लोग काम के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। दुनिया भर में 340 मिलियन व्यावसायिक दुर्घटनाएं और 160 मिलियन श्रमिक संबंधित दुर्घटनाएं होती हैं।
मसलन, भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग में काम करने वाले मजदूरों की उंगलियां, हथेलियां, कभी-कभी तो पूरा हाथ ही कट जाता है। इनकी संख्या हर वर्ष हजारों में होती है। सेफ इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में राष्ट्रीय स्तर पर ऑटोमोबाइल उद्योग में करीब 10855 मजदूरों को दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ा। 2022 में तो तीन तिमाही में ही हादसों ने यह आंकड़ा छू लिया। रिपोर्ट के अनुसार इन मजदूरों से बिना सुरक्षा सेंसर वाली मशीनों पर 12 घंटे से अधिक काम करवाया जाता है। ज्यादा घंटे काम करने से थकावट और नींद के कारण भी ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं।
उत्तराखंड के पत्रकार अजीत सिंह राठी ने दी जानकारी
सुरक्षा उपकरणों के अभाव के कारण सीवर की सफाई करने वाले हजारों मजदूर हर साल सीवर में मर जाते हैं। बाद में विभिन्न बीमारियों कारण कितने मजदूर मरते हैं इसका कोई आंकड़ा नहीं है। सीवर मजदूरों को दिए जाने वाले सुरक्षा उपकरण ज्यादा महंगे भी नहीं होते। मास्क, हेलमेट, जैकेट, जूता, सेफ्टी बेल्ट, चश्मा, टॉर्च, ब्लोअर और ऑक्सीजन सिलेंडर सीवर की सफाई के समय मजदूरों को अनिवार्य रूप से दिए जाने चाहिए। सीवर में घुसने से पहले जहरीली गैसों की जांच की जानी चाहिए। ये मामूली सुरक्षा उपकरण भी मजदूरों को उपलब्ध नहीं कराए जाते। सत्ता के केंद्र दिल्ली में भी बदइंतजामी का यही हाल है।
इसका कारण यह है कि मजदूरों के सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराने में सरकार और निजी कंपनियों को घाटा होता है। कंपनी का मुनाफा मजदूर की जिंदगी पर भारी है। श्रम और रोजगार मंत्रालय के महानिदेशालय फैक्ट्री सलाह सेवा और श्रम संस्थान (डीजीएफएसलआइ) के आंकड़ों के अनुसार 2017 से 2022 के बीच पांच साल में भारत के पंजीकृत कारखानों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन लोगों की मौत हुई और 11 लोग घायल हुए। कम से कम निवेश करके अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की यह होड़ भारत सहित पूरी दुनिया में मजदूरों की मौत और गंभीर रूप से घायल होने का कारण बन रही है।
मजदूरों की जान की कीमत पर दुनिया की सत्ताएं किसकी मदद करती हैं, इसे समझने के लिए दो घटनाओं का जिक्र खास तौर से जरूरी है, जो जून 2023 में घटी थीं।
पहली घटना 18 जून 2023 की है। समुद्र के नीचे टाइटेनिक जहाज का मलबा देखने गए पांच अरबपतियों को लेकर गई पनडुब्बी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और पांचों लोग मारे गए। यह पांचों अरबपति समुद्र के नीचे तफरीह करने गए थे। अमेरिका की ओशनगेट कंपनी इस तफरीह की व्यवस्था करती है। वह लोगों को मनोविनोद के लिए टाइटैनिक के मलबे को दिखाती है और प्रति व्यक्ति ढाई लाख डॉलर की मोटी रकम वसूलती हैं। जाहिर है इसका आनंद पाने का मजदूर तो कभी सपने में भी नहीं सोच सकता है। तफरीह करने वाले इन अरबपतियों को ढूंढने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा सहित कई देशों की सरकारों ने जी जान लगा दिया। दुनिया के अखबारों ने भी इस दुर्घटना की खूब कवरेज की। असमय मौत किसी की भी हो दुखदायी होती है, लेकिन यह दुख और युद्धस्तर पर बचाने का प्रयास केवल अमीरों के लिए ही क्यों? मजदूरों के लिए क्यों नहीं?
उपरोक्त घटना से तीन दिन पहले 15 जून 2023 को लीबिया से इटली जा रही एक नाव में गरीबी और लाचारी से मुक्ति पाने और एक अच्छे जीवन के तलाश में पाकिस्तान, सीरिया और मिस्र के मजदूर अपनी बीवी और बच्चों के साथ सवार हो गए। इस नाव में कुल 750 लोग सवार थे जिसमें 100 बच्चे भी शामिल थे। यात्रा के दौरान नाव ग्रीस के समुद्र तट पर पलट गई जिसमें 600 लोग डूब कर मर गए। मरने वाले अरबपति नहीं थे। वे इटली घूमने या तफरीह करने या फुर्सत के समय का आनंद लेने नहीं जा रहे थे, किसी तरह जिंदा रहने के लिए नौकरी की तलाश में जा रहे थे। इनको बचाने के लिए दुनिया के खोजी दस्तों की बात तो छोड़िए, ग्रीस की सरकार ने भी कोई कोशिश नहीं की।
जो लोग बचाए जा सके और जिनके शवों को ढूंढा जा सका इसको करने वाले सभी कार्यकर्ता आपात कार्यवाही केंद्र से जुड़े हुए हैं। समुद्री मार्ग से यात्रा करने वाले लोगों को संकट के समय बचाने वाला यह सहायताकर्मियों का समूह 2016 से 2018 के बीच 1000 से ज्यादा लोगों को बचा चुका है और पीड़ितों की हरसंभव मदद करता है। ग्रीस सरकार ने समुद्र में फंसे यात्रियों को मदद पहुंचाने के अपराध में इन सहायताकर्मियों पर मुकदमे दर्ज किए हैं। हंगरी, इटली, माल्टा, ग्रीस सहित कई यूरोपीय देशों में इस तरह के मुकदमे स्वयंसेवी सामाजिक कार्यकर्ताओं पर चल रहे हैं जो समुद्री दुर्घटनाओं में मजदूरों को बचाने और उनकी मदद करने का प्रयास करते हैं। अमेरिका में तो भूखे, बेघर लोगों की मदद करना अपराध मान लिया गया है।
पिछले दिनों एक बूढ़ी भूखी महिला को भोजन देने के अपराध में एक व्यक्ति को अमेरिका में गिरफ्तार कर लिया गया था। अमेरिका और यूरोपीय देश ही नहीं, भारत में भी यही हो रहा है। अभी बहुत दिन नहीं बीते हैं, जब 2021 में इंदौर शहर में स्वच्छता के नाम पर गरीबों, असहायों, अपाहिजों और वृद्धों को कूड़ा ढोने वाली गाड़ी में लाद कर शहर से बाहर जंगल में छोड़ दिया गया था। इसमें से तो कुछ लोग बीमार थे जो चल भी नहीं पा रहे थे।
अब भूखे, गरीब, असहाय, मजदूर समाज की गंदगी समझे जाते हैं। अमीरों की दुनिया में उनके लिए कोई जगह नही है। पूरी दुनिया में भूखे, बेघर, असहाय लोगों की मदद करना लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी थी। अब राज्य इससे न सिर्फ मुकर चुका है बल्कि मददगारों को अपराधी करार कर देना चाहता है। इन सरकारों का तर्क है कि भूखे और बेघर लोग अपराधों में लिप्त रहते हैं और उनकी मदद करना अपराधों को बढ़ावा देना है।
उपरोक्त घटनाओं से यह समझ आता है कि मजदूर वर्ग के खिलाफ दुनिया की सारी सत्ताएं एक जैसा सोचती और व्यवहार करती हैं। मजदूरों के दमन और उनके अधिकारों में कटौती करने के साथ वे उन्हें अमानवीय स्थिति में जीने पर मजबूर करती हैं। ऐसा करके सरकारें पूंजीपतियों के मुनाफे को बरकरार रखने का प्रयास करती हैं। इसके साथ ही सरकारें संकट में फंसे पूंजीपतियों की आर्थिक और राजनीतिक मदद कर के उनके जीवन को बचाने का हरसंभव प्रयास करती हैं- वह एंडरसन, अदाणी, क्रिकेट में निवेश करने वाला पूंजीपति हो या समुद्र में डूबने वाला अरबपति।
सत्ताधारी वर्ग मजदूरों को न तो गले लगाता है, न ही आर्थिक संकट में उनकी मदद करता है। उत्तराखंड में जो कुछ हो रहा है वह इसी की तसदीक करता है। इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है।