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होम बोलेगा साबs... होम बोलेगा... होम कइसे सुप रोह सोकता हय...होम भी देश का सौकीदार होय

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8 Oct 2019 2:02 PM GMT
होम बोलेगा साबs... होम बोलेगा... होम कइसे सुप रोह सोकता हय...होम भी देश का सौकीदार होय
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होम लोकतंत्र का सौकीदार होय साबs हाम्रा जिम्मेदारी बोनता होय की, होम आप सोभी को खोबरदार कोरता रहे।

अगर होम, सो गिया न साबs जी तो सोब गोरबर हो जाएगा।

इसलिए होम जागते रोहो...जागते रोहो, कोरता रोहता होय।

साबs जी होम बीजेपी सोमर्थोक होय सोकता होय, मोगर ओन्ध भोक्त नई। होम मोदी जी को मानता होय, उनका इज्जस् कोरता होय, मोगर गोलत बात पे कोइसे सुप बइठेगा।

अगर गोलत बात या नीति पोर सुप रहेगा तो आप होमको बोलेगा की बिनय तुम कोइसा सौकीदार होय जो बताया नहीं ।

तो सुनो साबs जी...रेलवे का संसाधन देश का है,इसे कोइसे निजी हाथों में दिया जा सोकता होय।

साबs जी हाम्रा भाषा नोई सोमझ में आ रहा होय तो, आपका यह बिनय बहादुर हिंदी में सोमझा सोकता होय।

सुनिये, रेलवे के निजीकरण के लिए मोदी सरकार लगभग योजनाबद्ध हो चुकी है,इसके तहत देश की सरकारी पटरी पर लग्ज़री प्राइवेट ट्रेन तेजस आ चुकी है। और सरकार इस तेजस ट्रेन की खासियत के गुण गा रही है। इस ट्रेन के किराए पर नजर डालें तो

तेजस एक्सप्रेस में लखनऊ से नई दिल्ली की टिकट की कीमत एसी चेयर कार के लिए 1,125 रुपये और एक्जीक्यूटिव चेयर कार के लिए 2,310 रुपये होगी. लखनऊ से कानपुर के लिए एसी चेयर कार का टिकट 320 रुपये के लगभग है।

मजे की बात यह है कि देश की लगभग 75 प्रतिशत जनता जो जनरल डिब्बे में घास भुसे की तरह ठूंस कर जाती है,बहुत दम हुआ तो स्लीपर का टिकट ले वेटिंग वालों के साथ सफर करती है। वह भी हुऑ हुऑ कर तेजस की तारीफ में कसीदे पढ़ रही है। जबकि उसके नसीब में इस ट्रेन की सीटें शौक की बजाय कभी मजबूरन ही नसीब हों।

यह ठीक है की रेलवे में सुधार की बेहद जरूरत है,मगर यह क्या इतना जरूरी है कि इसे निजी हाथों में सौंप दिया जाए। और अगर सुधार का मतलब रेलवे को कारपोरेट जगत को सौंपना है तो निश्चित ही यह मोदी सरकार की अक्षमता कहा जाना चाहिए।

और इसी निजीकरण पर विश्वास के चलते आज सरकारी स्कूलों अस्पतालों की जगह प्राइवेट स्कूल अस्पताल, सुविधा के नाम पर जनता का दोहन कर रहे हैं।

और जनता है कि आंखे मुद सरकार की वाह वाह कर रही है।

बिना यह जाने की निजीकरण का नफा नुकसान क्या है।

जिसे पूछो वह अपने बच्चों के लिए सरकारी नौकरी का तलबगार है,मगर वह यह नहीं जानता कि जब सरकारी उपक्रमों संस्थानों का निजीकरण हो जाएगा तो सरकारी नौकरी क्या अलादीन का चिराग देगा।

यह सभी जानते हैं कि प्राईवेट सेक्टर में न्यूतम पगार में अधिकतम काम लिया जाता है, यानी कि अपने एंप्लाई को निजी क्षेत्र में निचोड़ दिया जाता है।और तो और नौकरी कब तक सलामत रहेगी इसका पता नहीं है,क्योंकि आप एक सप्ताह किसी कारणवश छुट्टी पर रहें मने बीमार रहें या किसी शोक के कारण न आ पाएँ या परिवारिक कारण रहा हो । तो इस बात की गारंटी नहीं कि आपकी जगह किसी और को न नियुक्त किया गया हो।

खैर गौर फरमाइएगा, मोदी सरकार के पक्ष में बिना किसी समीक्षा के दलीलें पेश करने वालों में अधिकांश लोग सरकारी पेशे से जुड़े लोग जैसे फोर्स से जुड़े लोग,सरकारी टीचर,क्लर्क या बड़े ओहदेदार,पूंजीपति बड़े व्यवसाई, पार्टी समर्थक या,मध्यमवर्ग के वो लोग होते हैं,जिनका ब्रेनवाश हो चुका है।

और सरकारी कर्मियों की क्या बात करें,यह तब तलक किसी सरकार के नीतियों के खिलाफ टिप्पणी नहीं करते जब तक कि उनके ऊपर न आफत आ जाये। यही सरकार उनके वेतन भत्ते में कटौती कर दे,पेंशन खत्म कर दे या उन्हें जबरन सेवानिवृत्त कर दे। तब देखिए उनका आक्रोश।

खैर,होम बोलेगा साबs...होम सुप नोई बैठेगा, क्योंकि मोदी जी की नीति राम्रो नोई चोल रई है।

विनय मौर्या

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