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इस कड़ाके के ठंड में कल पटना और आरा में छात्रों ने रेलवे ट्रैक को दस घंटों तक रखा था जाम
आज सुबह से ही नालंदा सहित बिहार के कई जिलों से छात्रों द्वारा आज दूसरे दिन भी रेलवे ट्रैक को जाम करने कि खबर आ रही है, वजह लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रेल मंत्रालय द्वारा 2019 में जो बहाली निकाली गई थी उस वेकेंसी में हेराफेरा का है ।
1–हंगामा की वजह क्या है
2019 में रेल मंत्रालय ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रेलवे के 21 बोर्ड के लिए ग्रेजुएट (स्नातक) स्तर पर बड़ी वेकेंसी जारी किया गया था जिसमें स्टेशन मास्टर ,गार्ड,टीसी,सहित सात पदों के लिए 35,277 लोगों को बहाल करना था ,वेकेंसी के एक वर्ष बाद 28-12–2020 को पहला परीक्षा हुआ और उसके बाद कोरोना की वजह से यह परीक्षा टल गया और 31 -07 -2012 तक चला , रेलवे बोर्ड 14 जनवरी 2022 को पीटी का रिजल्ट दिया है।
परीक्षा का जो मानक पहले से निर्धारित रहा है उसमें पीटी में कुल पद का 20 गुना रिजल्ट जारी किया जाता था लेकिन इस बार बोर्ड ने वेकेंसी के अनुसार पीटी में 7 लाख की जगह मात्र 2 लाख 76 हजार के करीब रिजल्ट जारी किया है और इस रिजल्ट में ही छात्रों का कैडर निर्धारित कर दिया है ऐसा कभी किसी परीक्षा में नहीं हुआ है मतलब पीटी में ही आपको कैडर गार्ड निर्धारित है तो आप को गार्ड की ही नौकरी मिलेगी चाहे फाइनल परीक्षा का आप टाँपर ही क्यों ना हो अगर रेलवे स्टेशन मास्टर का कैडर मिला तो आपको रेलवे स्टेशन के लिए जो वेकेंसी है उसी आधार पर आपको नौकरी मिलेगी ।
रेलवे का तर्क है कि जो वैकेंसी निकाली गयी है उसके अनुसार हम लोग पीटी में 20 गुना रिजल्ट जारी किये हैं रेलवे बोर्ड सही कह रहा है लेकिन इसके पीछे का खेल क्या है जरा आप भी समझ लीजिए।रेलवे बोर्ड जिन सात पदों पर बहाली कर रहा है हर पद के अनुसार 20 गुना रिजल्ट जारी कर दिया है उसमें चार लाख से अधिक ऐसे छात्र है जिसका रिजल्ट किसी का दो पद पर तो किसी का सातों पदों पर है इस वजह से मात्र 2 लाख 76 हजार छात्र पीटी पास किये हैं जबकि पीटी का रिजल्ट कम से कम सात लाख होना चाहिए खेला यही है क्यों कि बोर्ड कही ना कही जितनी वेकेंसी निकाला था उतना बहाल नहीं करना है इस खेल को छात्र समझ गये हैं और इसलिए आक्रोशित है ।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस तरह का खेल देश के युवा के साथ सरकार क्यों खेल रही है रेलवे को निजी हाथों में सौपना है तो एक बार सरकार निर्णय सुना दे गुप्त एजेंडा की जरुरत क्या है वैसे भी मोदी के सात वर्षो के कार्यकाल को देखे तो सरकारी नौकरी आधे से भी कम हो गया है जिसका हुआ भी है तो उसकी नियुक्ति प्रक्रिया वर्षो से बाधित है यूपीएससी तक में सीट की संख्या आधी कर दी गयी है और बाहर से भरा जा रहा है।