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बिहार के बाहुबली नेता कौन है पप्पू यादव, जानिए राजनीतिक सफर, और फिल्मी प्रेम-कहानी के बारे में....
पप्पू यादव की गिनती बिहार के बाहुबली नेताओं में की जाती है। राजेश रंजन (पप्पू यादव) ने जेल में एक अपनी आत्मकथा 'द्रोहकाल का पथिक' भी लिख चुके हैं। जिसमें उनकी ज़िंदगी के कई अनसुने किस्सों का भी ज़िक्र है। पप्पू यादव का सियासी सफर और उनकी शादी के चर्चे बिल्कुल फिल्मों की स्क्रिप्ट की तरह है। हम आपको उनके सियासी सफर औऱ विवाह दोनों की कहानी बताएंगे। उससे पहले उनके सियासी सफर के बारे में बात कर लेते हैं। पप्पू यादव का असली नाम राजेश रंजन है, लेकिन उन्हें लोग पप्पू यादव ही बुलाते हैं। उनके सियासी सफर की बात की जाए तो वह 1 बार विधायक और 5 बार सांसद रह चुके हैं।
वह राजद की टिकट पर चुनाव लड़ते थे। पप्पू यादव ने बनाई अपनी राजनीतिक पार्टी पप्पू यादव ने 2015 में राजद से किनारा कर जन अधिकार नाम से अपनी पार्टी बना ली। उन्होंने 2019 में मधेपुरा से लोकसभा चुनाव के मैदान में दांव भी आज़माया लेकिन हार गए। पप्पू यादव के 2019 लोकसभा चुनाव के एफिडेविट के मुताबिक उनपर 31 आपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं 9 मामले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। वहीं हत्या मामले में सज़याफ्ता होने के बाद सबूतों को अभाव में कोर्ट हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। बिहार के पूर्णिया जिले में पप्पू यादव 24 दिसंबर 1976 को पैदा हुए। यह उनकी जन्मस्थली थी, यहीं से वह बाहुबली भी बने। 1980 में पूर्णिया विधानसभा पहली बार अजीत सरकार ने माकपा की टिकट पर जीत दर्ज की थी। सबूतों के अभाव में पप्पू यादव बरी 1980 में जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने लगातार 1985, 1990 और 1995 के विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाई। अजीत सरकार काफी साफ सुथरी छवि के नेताओं में शुमार किए जाते थे।
14 जून 1988 को दिनदहाड़े उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। जिसके बाद उनके भाई कल्याण ने हत्या का मामला दर्ज कराया । मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई, जिसमें राजेश रंजन (पप्पू यादव), अनिल यादव और राजन तिवारी का नाम सामने आया। हत्या के 10 साल बाद तीनों को सीबीआई कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि इस फ़ैसले के को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाइकोर्ट ने मई 2013 में सबूतों के अभाव में पप्पू यादव को बरी कर दिया। 1990 में पहली विधायक बने पप्पू यादव 1990 विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव पहली बार विधानसभा चुनाव जीते थे। उसके बाद वह 1991 से लगातार 2004 तक लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सांसद बने रहे। पप्पू यादव को 2008 में सज़ा सुनाई गई जिस वजह से उन्हें 5 साल (2008 से 2013) तक जेल में बिताना पड़ा। उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई थी। 2013 में वह जेल से छूटे और 2014 लोकसभा चुनाव में राजद के टिकट पर मधेपुरा से चुनावी बाज़ी जीती।
रंजीत से पहली नज़र में हुआ था पप्पू यादव को प्यार पप्पू यादव के सियासी सफर की बात, अब हम आपको उनकी लव स्टोरी का दिलचस्प किस्सा बताने जा रहे हैं। 1991 में पप्पू बांकीपुर जेल में बंद थे। इस दौरान वह जेल अधीक्षक के मकान के पास मैदान में लड़कों को खेलते हुए देखते थे। न लड़कों में विक्की नाम का एक युवक था जिससे पप्पू यादव की दोस्ती हुई। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती काफी गहरी हुई। पप्पू यादव को एक दिन विक्की ने परिवार का फोटो एल्बम दिखाया। जिसमें रंजीत की टेनिस खेलती हुई तस्वीर दिखी। पप्पू यादव को पहली झलक में ही रंजीत से प्यार हो गया। 1994 में हुई पप्पू यादव की शादी रंजीत के दीदार के लिए पप्पू यादव टेनिस क्लब का चक्कर लगाने लगे। रंजीत को पप्पू यादव की यह बात अच्छी नहीं लगती थी तो उन्होंने पप्पू यादव को मना किया लेकिन वह नहीं माने। रंजीत को टेनिस क्लब में देखने के लिए अक्सर पहुंच जाया करते थे।
रंजीत ने जैसे-तैसे पप्पू यादव के प्रपोज़ल को कबूल कर लिया। वहीं रंजीत के परिवार वाले राज़ी नहीं हुए। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह थी कि पप्पू यादव हिंदू थे और रंजीत सिक्ख थीं। लेकिन पप्पू यादव को तो रंजीत को जीवन साथी बनाना था। वह मशक्कत करते रहे बात नहीं बन पा रही थी। एक दिन किसी ने सलाह दिया कि कांग्रेस के नेता रहे एसएस अहलूवालिया से मुलाकात करें, वह उनकी परेशानी हल कर सकते हैं। इसके बाद पप्पू यादव दिल्ली पहुंचकर उनसे मदद के लिए कहा। इसके बाद रंजीत के परिवार वाले राज़ी हुए और फरवरी 1994 में दोनों की शादी हुई। इस वाक्या का ज़िक्र पप्पू यादव की आत्मकथा में भी किया गया है।
1995 में रंजीत रंजन पहली बार लड़ी चुनाव पप्पू यादव से विवाह के बाद पहली बार रंजीत रंजन ने 1995 के विधानसभा चुनावी दंगल में उतरीं लेकर कामयाब नहीं हो पाई। इसके बाद उन्होंने सहरसा से 2004 के लोकसभा चुनाव दांव आजयमाया औऱ कामयाब भी हुईं। 2009 के चुनाव में वह सुपौल से कांग्रेस के टिकट मैदान में उतरी लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। 2014 में चुनाव में दोबारा से वह कांग्रेस की टिकट पर बाज़ी जीत गई। वहीं 2019 में भी कांग्रेस के टिकट पर ही सुपौल से चुनावी दंगल में उतरीं लेकिन कामयाब नहीं हो पाईं। इस साल जून 2022 में रंजीत रंजन छत्तीसगढ़ की नई राज्यसभा सदस्य के तौर पर बिना किसी विरोध के चुनी गईं।