पटना

दिव्यांगों के लिए प्रेरणा और युवाओं के लिए आईना हैैं, तिरंगा मैन नाम से मशहूर खिलाड़ी अनुराग चन्द्र

Shiv Kumar Mishra
2 Dec 2020 10:59 AM GMT
दिव्यांगों के लिए प्रेरणा और युवाओं के लिए आईना हैैं, तिरंगा मैन नाम से मशहूर खिलाड़ी अनुराग चन्द्र
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कभी हार नहीं मानना विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराते रहना हौसले को पस्त नहीं होने देना। कि विकलांगता को मात देकर लगातार आगे बढ़ते रहने और युवाओं को युवा होने का मतलब समझाना ही जिसका उद्देश हैं ऐसे दिव्यांग खिलाड़ी का नाम अनुराग चंद्रा हैं। उस के इरादों और कार्यो को देख कर लगता हैं की वह अलग ही मिट्टी का बना हुआ हैं । अनुराग दोनों पैरों से दिव्यांग हैं , लेकिन जोश ऐसा कि सियाचीन ग्लैशियर को भी नापने से नहीं चूका संवेदना ऐसी कि खुद अभावों में रहते हुए भी दूसरों की जिंदगी को भी रौशनी करने के लिए सदा तत्पर ।

जीवटता का मिसाल :-

अनुराग महज दो साल की उम्र में पोलियो का शिकार हो गए । दोनों पैर बेकाम हो गये । लेकिन अनुराग के पिता ने बेटे के लिए खुद मेहनत करनी शुरू कर दी । बेटे को कंधे पर लेकर स्कूल पहुंचाते रहे । जब अनुराग थोड़े बड़े हुए तो खुद से घिसट - घिसट कर स्कूल जाने लगे , अनुराग कहते हैं , यहीं वो समय था जिसने मेरे अंदर हौसला भरा, दिल ने हार मानने से इंकार कर दिया । इसलिए पढ़ाई के साथ - साथ मैंने खेल की ओर ध्यान लगाना शुरू कर दिया। फिर तो कभी रूका ही नहीं । उस की मेहनत रंग लाने लगी। खेल में निखर आने लगा, अनुराग को बिहार सरकार ने अब तक तीन बार ' खेल सम्मान ' से सम्मानित कर चुकी हैं।

दिव्यांग खेल के कई स्पर्द्धाओं ( एथेलेटिक्स , बैडमिंटन , वॉलीबॉल , तैराकी , सिटिंग फुटबॉल , शतरंज , रग्वी , क्रिकेट और कराटे ) सहित कई खेलों के सफल खिलाड़ी नौ से अधिक खेलों आज भी खेल रहा हैं । 2013 में अंतरराष्ट्रीय योग चैंपियनशिप में में ताइवान में भाग लिया और वहां भारत को पांचवा स्थान मिला । 2008 से खेलते हुए अब तक उसने 49 पदक जीता हैं । आठ राष्ट्रीय चैंपियनशिप में शामिल हो कर 2 स्वर्ण , दो रजत और 4 कांस्य जीता हैं । इसके अलावा 19 जिला स्तरीय और 14 स्तरीय पदक भी अनुराग के नाम हैं ।

इंडिया गेट से लद्दाख तक

28 साल के अनुराग दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद 2015 में ट्राई साइकिल से इंडिया गेट से लेह लद्दाख तक पहुंच गए । 1267 किलोमीटर की यात्रा 21 दिन में पूरा कर लिया । फिर जून 2017 में दानापुर कैंट से सियाचीन ग्लैशियर तक 3000 किलोमीटर की यात्रा मोटरबाइक से पूरा किया । खून जमा देनेवाली ठंड में भी अपने साथी संतोष कुमार मिश्रा के साथ सियाचीन ग्लेशियर पर हिन्दुस्तान का झंडा गाड़ने में सफल रहा। उस क कहना हैं कि जब आपके पास हिम्मत हो तो रास्ता खुद ब खुद बनता चला जाता है । ऐसी यात्राओं में मदद के लिए लोग खुद आगे आ जाते हैं ।

अनुराग के पिता छोटे किसान हैं । ऐसे में अनुराग की आर्थिक स्थिति हमेशा खराब रहती है । लेकिन अनुराग ट्यूशन पढ़ाकर और प्राइवेट जॉब करके अपना खर्च निकाल रहा हैं । वह पटना में किराए के मकान में रह कर खुद to खेल क अभ्यास करता हैं और दुसरो को भी प्रेरित करता हैं संवेदशील इतना कि हर दिन समय निकाल कर स्लम के बच्चों को पढ़ाने से नही चुकता। अनुराग का कहना हैं कि बचपन से लेकर आज तक उसने वह लगातार संघर्ष कर रहा हैं । और संघर्षरत लोगों को मदद करता हैं । इसीलिए बेऊर , साकेत नगर जैसे मोहल्ले के गरीब बच्चों को प्रतिदिन कम से कम दो घंटा जरूर पढ़ाता हैं । अपने दोस्तों ने मिलाकर एक ग्रुप बना कर शिक्षा क दान करता हैं साथ ही समाजिक चेतना जगाने का काम भी करता हैं ।

पुरुस्कार

2010 बिहार सरकार द्वारा खेल सम्मान / 2011 बिहार सरकार द्वारा खेल सम्मान / 2012 बिहार सरकार द्वारा खेल सम्मान /

2016 बिहार राज्य खेल प्राधिकरण द्वारा साहसिक खेल के लिए विशिष्ट सम्मान / 2018 बिहार राज्य खेल पदाधिकरण द्वारा साहसिक यात्रा ( सियाचीन ग्लेशियर पर तिरंगा फहराने के लिए )

सम्मान / इसके अलावे कई सम्मानित स्वयंसेवी सम्मानित संस्था के द्वारा नेशनल स्तर पर सम्मानित कई अभीनेता के द्वारा...

अनुराग दिव्यांग ऑफ रोड एडवेंचर बाइक से कन्याकुमारी से डोक्लाम की तिसरी साहसिक यात्रा कर सरहद पर तिरंगा लहरा कर परोशियो देशों को भारत की एकता और अखंडता के साथ साहस का परिचय देना चाहता हैं साथ ही विकलांग जन को हिम्मत।

सरकार से शिकायत :-

अनुराग चंद्रा कहते हैं कि मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ । ऊपर से दिव्यांगता ने मेरी जिंदगी को और कठिन बना दिया । लेकिन मैंने हार नहीं मानी । मेहनत करके आगे बढ़ता रहा। पढ़ाई के साथ - साथ खेल से प्रेम हुआ और एथेलेटिक्स , बैडमिंटन , बॉलीबाल , तैराकी सिटिंग फुटबाल , योगा , बॉडी डांस , शतरंज , रग्वी , क्रिकेट और कराटे सहित नौ से अधिक खेलो में अपनी प्रतिभा का जलवा दिखाने लगा । 2013 में अंतरास्ट्रीय योग चैंपियनशिप में भाग लेने ताइवान भी गया । 2008 में 9 खेलों में भाग लेकर अब तक 49 पदक अपने नाम किया। तमाम उपलब्धियों के बावजूद आज खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा हूं । सूबे की सरकार राज्य के विकलांग खिलाड़ियों के साथ लगातार उपेक्षापूर्ण व्यवहार कर रही है । खिलाड़ियों को न नौकरी दी जा रही हैं न उचित साधन । ऐसे में खिलाड़ी अपने भरोसे आगे बढ़ रहे हैं । इससे खेल और खिलाड़ी का कितना भला होनेवाला है । सरकार से उसकी अपील हैं की वह विकलांग खिलाड़ीयों के प्रति अपनी शोर्द्ता का परिचय दे ताकि उनमें विश्वास जगे।

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