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क्यों कि बिहार में सत्ता से जैसे ही बीजेपी बाहर हुई है अचानक उसका फोकस सीमांचल के जिलों में बढ़ गया है खुद अमित शाह इस अभियान की शुरुआत करने वाले हैं जेपी नड्डा भी आ रहे हैं और जो जानकारी मिल रही है इस माह के अंत में किशनगंज में बीजेपी नेताओं का बड़ा जमावड़ा लगने वाला है, तो फिर यह माना जाए कि किशनगंज के सहारे बीजेपी बिहार साधने की तैयारी शुरु कर रही है।
वैसे बात किशनगंज कि करे तो देश और दुनिया का यह पहला इलाका है जहां समतल भूमि पर हजारों एकड़ में चाय की खेती हो रही है वो भी बढ़िया क्वालिटी की ,इतना ही नहीं बड़े स्तर पर अनानास की खेती होती है कई किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती करके इन इलाकों में एक अलग तरह की अर्थतंत्र स्थापित किया है ।
इसी तरह हल्दी सहित कई मशाले और सब्जी की खेती बड़े स्तर हो रहा है जिसके पीछे मुस्लिम मजदूरों की बड़ी भूमिका है ।मेरा जो अनुभव रहा है बिहार में खेती की बात करे तो किशनगंज के टक्कर में बिहार का कोई जिला दूर दूर तक नहीं है नालंदा और समस्तीपुर सब्जी के मामले में बेहतर उत्पादक जिला जरुर है लेकिन इन दोनों जिला के पास बाजार नहीं है ।लेकिन किशनगंज के साथ बड़ा लाभ यह है कि उसके खेत की सब्जी कोलकाता ,दार्जिलिंग और सिलीगुड़ी सुबह सुबह पहुंच जाता है ,और इस वजह से बढ़िया दाम भी मिल जाता है । इतना खुशहाल किसान बिहार के दूसरे जिले में नहीं है अनानास की खेती करने वाले किसानों का पैदावार खेत में ही लगा रहता है कि पंजाब के बड़े से बड़े कारोबारी पहले ही खरीद लेते हैं और यहां पहली बार मैंने देखा कि व्यापारी नहीं किसान अपने उपज का कीमत खुद तय करता है क्यों कि खरीददार की कोई कमी नहीं है इस वजह से दूर से भले ही हिन्दू मुसलमान और किशनगंज जिले के डेमोग्राफी बदलने की नैरेटिव बनाया जा रहा है लेकिन एक बड़ी सच्चाई यह भी है कि बांग्लादेशी मुसलमानों की वजह से इन इलाकों में हुनरमंद और शारीरिक रूप से मजबूत मजदूर की कोई कमी नहीं है।
बात लॉ इन ऑर्डर की करे तो उससे बुरी स्थिति सिवान और दूसरे मुस्लिम इलाके का है बॉर्डर होने के कारण काम का अवसर काफी ज्यादा है फिर यहां आपको अफगान,ईरान सहित कई मुस्लिम देश के लोग आपको मिल जायेंगे जो घोड़ा का कारोबार करने किशनगंज आता था। वही मुसलमान भी कई भागों में बंटा हुआ और वो भी बांग्लादेशी मुसलमानों से दूरी रखते हैं और कभी तनाव बढ़ता है तो बांग्लादेशी मुसलमानों के खिलाफ हिन्दू के साथ यहां के स्थायी मुसलमान भी खड़े हो जाते हैं यहां उस तरह की स्थिति नहीं है जैसा कटिहार के कुछ इलाको में है हालांकि संघ का इस इलाके में अच्छी पकड़ रही है और हिन्दू एकता को लेकर एक फोर्स जरुर तैयार कर दिया है लेकिन जब से तस्लीमुद्दीन के परिवार का वर्चस्व कमा है चीजे काफी बदल गयी है ।
वही पैसा हिन्दू के पास संपत्ति हिन्दू के पास है इसलिए इन इलाके हिन्दू उस तरह से अपने आपको असुरक्षित महसूस नहीं करते हैं पटना के बाद होटल इंडस्ट्रीज भी किशनगंज में काफी बड़ा है। इसलिए बीजेपी के लिए किशनगंज के सहारे हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव को साधना बहुत बड़ा टास्क होगा क्यों कि संघ भी अब पहले जैसे मजबूत स्थिति में इन इलाकों में नहीं रहा व्यापार और वाणिज्य के फैलाव के कारण पहले से स्थिति काफी बदल गयी है और लॉ इन ऑर्डर की स्थिति भी पहले से काफी बेहतर है हां ये बात हो सकती है कि किशनगंज मॉडल के सहारे बिहार के अन्य जिलों में मुसलमानों के खिलाफ एक माहौल बनाया जा सकता देखिए आगे आगे होता है क्या यह बिहार है बहुत मुश्किल है इस तरह से सियासी दाव को साधना।