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तो क्या बीच 'युद्ध' में 'जनरल' बदलकर CM नीतीश ने आत्मघाती फैसला लिया है?
पटना. 20 मई, 2020... इस तारीख तक बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1579 तक पहुंच गई थी. तब भी ये संख्या बहुत बड़ी लग रही थी. यह वही वक्त था बिहार स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव संजय कुमार (Sanjay Kumar ) के तबादले के साथ ही उन्हें पर्यटन विभाग का प्रधान सचिव बनाए जाने की खबर आई थी. उनके स्थान पर IAS अधिकारी उदय सिंह कुमावत (Uday Singh Kumawat) स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव नियुक्त किए गए थे. जाहिर है कोरोना संकट (Corona Crisis) के बीच यह बहुत बड़ा फैसला था, क्योंकि संजय कुमार काबिल अफसर माने जाते हैं और वे सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के करीबी भी हैं. फिर सवाल उठता है कि आखिर क्यों उन्हें स्वास्थ्य विभाग से हटाया गया. कहा जा रहा है कि बीजेपी के एक मंत्री से उनकी नहीं बनती थी इसलिए सीएम नीतीश को ये फैसला मजबूरन लेना पड़ा था.
बता दें कि जब संजय कुमार का तबादला किया गया था तो 1579 संक्रमितों में से 548 लोग स्वस्थ होकर घर वापस लौट चुके थे. गौरतलब है कि ये रिकवरी का आंकड़ा शुरुआती दौर का था, जब बिहार सरकार भी कोरोना संकट से निकलने के लिए विकल्पों की तलाश ही कर रही थी. यानी उस समय तक कोरोना के बारे में काफी कुछ स्पष्ट नहीं था. अब यह बीते दो महीने में ये आंकड़ा 1579 से बढ़कर 27455 हो चुका है. (21 जुलाई की दोपहर एक बजे तक) यानी करीब करीब 17 गुना यह संख्या बढ़ चुकी है.
क्या नीतीश कुमार ने लिया आत्मघाती फैसला?
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि सीएम नीतीश कुमार का यह फैसला आत्मघाती रहा क्योंकि उनकी जितनी विभाग के ऊपर पकड़ थी, उसका विकल्प नीतीश कुमार के पास नहीं था. जब तक संजय कुमार रहे बिहार के आंकड़ों की पूरे देश में चर्चा होती थी और आज बिहार का डेटा सबसे अविश्वसनीय माना जाता है. बता दें कि बिहार में कोरोना का पहला मामला 22 मार्च को सामने आया था, जब मुंगेर का मोहम्मद सैफ की मौत पटना एम्स में हो गई थी. इसके बाद दो महीने में, (जबतक संजय कुमार का तबादला किया गया) यानी 20 मई तक ये आंकड़ा 1579 तक पहुंचा था. यानी औसतन 27 मामले प्रतिदिन आते थे. वहीं, अब बिहार में मिल रहे कोरोना संक्रमितों की संख्या पर नजर डालें तो
13 दिन में करीब दोगुने हो गए कोरोना के मामले
बता दें कि 8 जुलाई को जहां कोरोना के 13 हजार 274 मरीज थे, वहीं 13 दिन में ही ये दोगुने से अधिक हो गए और आंकड़ा 27455 तक जा पहुंचा. हर दिन सामने आ रहे कोरोना मरीजों के आंकड़ों पर नजर डालें तो हर औसतन 1148 नये मामले सामने आ रहे हैं. आठ जुलाई को 749 मामले सामने आए और आंकड़ा 13274 तक पहुंच गया. 9 जुलाई को 704 नये मामलों के साथ 13978, 10 जुलाई को 352 मामलों के साथ 14330, 11 जुलाई 709 नये मामलों के साथ 15039, 12 जुलाई को 1266 नये मामलों के साथ ही 16305, 13 जुलाई को 1116 नये मामलों के साथ 17421, 14 जुलाई को 1432 संख्या 18853, 15 जुलाई को 1320 नये केस के साथ 20173, 16 जुलाई के दोपहर दो बजे तक 1385 के साथ 21558, 17 जुलाई को 1742 नये मरीजों के साथ 23300, 18 जुलाई को 1667 संक्रमित मिलने के साथ ही 24967, 19 जुलाई को 1412 नये मरीजों के साथ 26379 एवं 20 जुलाई को 1076 नये मामलों के साथ ही कुल संक्रमितों की संख्या 27455 पहुंच गई.
रिकवरी रेट में आई भारी गिरावट
20 जुलाई को 938 मरीज ठीक हुए और रिकवरी रेट 63.87 प्रतिशत पहुंच गया. 19 जुलाई को 826 मरीज ठीक हुए और रिकवरी रेट 62.91 रहा. 18 जुलाई को 774 मरीज ठीक हुए और रिकवरी रेट 63.17 प्रतिशत रहा. बिहार के रिकवरी रेट में जबरदस्त गिरावट हुई है. 17 जुलाई को ये 64.36 तक पहुंच गया था. जबकि बीते दस जुलाई से रिकवरी रेट देखें तो घटता ही चला जा रहा है. 16 जुलाई को रिकवरी रेट 65.41%, 15 जुलाई को रिकवरी रेट 67.08%, 14 जुलाई को रिकवरी रेट 69.06%,, 13 जुलाई को रिकवरी रेट 70.97%, 12 जुलाई को रिकवरी रेट 73.31%, 11 जुलाई को रिकवरी रेट 73.08%, 10 जुलाई को रिकवरी रेट 71.54% था.
'बिहार में चौथे लेवल तक जा पहुंचा कोरोना का मामला'
बकौल रवि उपाध्याय बिहार में जो स्थिति सामने आ रही है इससे तो यही लगता है कि मामला चौथे लेवल तक जा पहुंचा है. हालांकि सरकारी आंकड़ों में मौत का आंकड़ा महज 187 ही है, लेकिन अस्पतालों की हालत बहुत ही बुरी है. हाल में पटना एम्स में सही समय पर दाखिला नहीं मिलने की वजह से अंडर सेक्रेटरी उमेश रजक की मौत इस बात का प्रमाण है कि बिहार में स्वास्थ्य सेवा की हालत कैसी है. इससे आगे की हकीकत ये है कि दो महीने पहले सीएम नीतीश ने हर दिन दस हजार सैंपल टेस्ट करने के निर्देश दिए थे, लेकिन अब जाकर यह शुरू हो सका है.
सिर्फ सरकार ही नहीं, आम लोग भी हैं दोषी!
हालांकि डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो सारा दोष सरकार पर ही देना ठीक नहीं है क्योंकि कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम के बावजूद लोग दिए गए निर्देशों को नहीं मान रहे. वहीं रवि उपाध्याय कहते हैं कि कुछ भी हो, लेकिन पहले मजदूरों को ट्रेन से मंगवाने के कारण कोरोना का बिहार में तेजी से प्रसार हुआ और रही-सही कसर कोरोना संकट के बीच स्वास्थ्य सचिव के तबादले ने पूरी कर दी. अब आलम ये है कि केंद्रीय टीम बिहार दौरे से लौट चुकी है और खबर यह निकलकर आ रही है कि स्वास्थ्य व्यवस्था से वह बेहद नाराज भी थी. ऐसे में सवाल ये है कि क्या क्या बीच युद्ध में 'जनरल' बदलकर सीएम नीतीश ने अपने पांव पर ही कुल्हाड़ी मार ली?