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नीतीश कुमार का ताजा बयान उनकी हताशा को दर्शाता है। पहले दो कार्यकाल में वह सुशासन बाबू का उपनाम कमा गए थे। सड़कें और दीगर इंफ्रास्ट्रक्चर भी बेहतर हुआ। मगर बिहार में निवेश नही आया। क्या इसके लिए बिहार के नेता दोषी हैं?
बिहार, और अब उत्तर प्रदेश.. भारत की छाती का नासूर हैं। नेताओ को इसका दोष मढ़ने ने नही चलेगा। दबंगई, लडंकापन, कुतर्क, बकवास, बेवकूफी ज्यादातर बिहारियों का स्थायी भाव है। कानून व्यवस्था को ठेंगे से लेने वाले लोग, अब चाहे सवर्ण हों या दलित, अगड़े हो या पिछड़े, अमीर हो या गरीब.. धुर उजड्ड, जहां जाएं, समस्या पैदा करते हैं।
यहां जाति, धर्म और किसी भी अन्य विषय पर गोलबंदी बड़ी फटाफट हो जाती है। चार बिहारी मिलकर किसी की भी वाट लगा सकते हैं। कहीं भी आग लगा सकते हैं। कुछ भी नष्ट कर सकते हैं।
अफसोस है कि घनी आबादी के कारण इन दो राज्यो में, देश की सरकार बनाने के बहुमत का आधा हासिल हो सकता है। ऐसे में इन्हें वजन से ज्यादा पोलिटिकल इम्पोर्टेंस भी मिलती रही है। इसका ताकत का इस्तेमाल उत्तर भारतीयों ने उसी तरह किया है, जैसे बन्दर उस्तरे का करता है। अपने साथ साथ बाकी देश के भी नाक कान काटने पर उतारू लोगो के राज्य में इनवेस्टमेंट?
मेरी जड़ें उत्तर भारत से है, रिश्तेदारियां इन्ही प्रदेशो में हैं। दूसरे राज्यों में एक पीढ़ी पहले निकलकर अन्यत्र सेटल हो चुके लोग यहां से बहू तो लाना चाहते हैं, पर बेटी नही देना चाहते। कभी किसी शादी ब्याह में इनका जमावड़ा हो जाये, तो जलसे में पानी फिरना तय समझिये।
जहां लोग बेटियां नही देना चाहते .. वहां कोई आदमी इन्वेस्ट करने पहुंचेगा?? कहाँ कौन गोली चला दे, कहाँ आग लग जाये, कहाँ किसकी भावना आहत हो जाये, किसके साथ दिखने से किसकी दुश्मनी मिल जाये, कोई ठीक ठिकाना नही।
जाने क्या तासीर है इस इलाके के पानी की, हर कुनबे से एक आईएएस, एक नेता, चार गुंडे और एक दर्जन लफाड़ू निकलते हैं। जाहिर है गुंडे और लफाड़ू, नेता भाई के साथ प्रदेश की वाट लगाते हैं। और आईएएस दूसरे स्टेट में सेटल होकर इनसे कन्नी काटते रहता है।
तो बिहार समुद्र के किनारे नही, समुद्र के बीच भी होगा, तो भी सोमालिया ही होगा। नेहरू का कथन याद रखिये- देश, नदी, पहाड़, जंगल, नाले और नक्शा नही, देश उस देश के लोग होते हैं।
और अराजक, अर्धविक्षिप्त, मूढमतियों का देश कभी समृद्ध नही होता।