पटना

बिहार में चालीस लोकसभा सीटों पर मची एनडीए और यूपीए में जंग, जनता खामोश पता नहीं चल रहा है किसके संग

Special Coverage News
20 Jan 2019 11:59 AM IST
बिहार में चालीस लोकसभा सीटों पर मची एनडीए और यूपीए में जंग, जनता खामोश पता नहीं चल रहा है किसके संग
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बिहार प्रदेश में चालीस लोकसभा सीटें आती है. मौजूदा कार्यकाल में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की तीस सीटें जीती थी. लेकिन अब एनडीए के रथ पर सवार कई लोग कूद गये तो कई पुराने साथी फिर से सवार हो गये है. उधर यही हाल यूपीए का भी है. उसके भी मुख्य साथी जदयू उनके रथ से कूद गया तो उनके भी रथ पर बीजेपी के कई पुराने सहयोगी सवार हो चुके है तो कुछ अभी वेट एंड वाच कर रहे है.


बिहार में इस बार पिछली बार की तरह चुनाव नहीं होगा. यह कहना अभी ज्ल्द्वाजी होगी क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान राजद और जदयू मिलकर चुनाव लड़े और उन्होंने बीजेपी का सफाया कर दिया जबकि चंद महीनों पहले हुए लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टी अलग अलग लड़ी थी और दोनों का बीजेपी ने बंटाधार कर दिया था. अब परिस्तिथि फिर बदली है अब जदयू और बीजेपी साथ साथ है तो यह कहना कि यूपीए के लिए राह आसान है मुश्किल होगा लेकिन जिस तरह से राजद के साथ युवा और पिछड़े वर्ग का वोटर लामबंद होता नजर आ रहा है उस से भी मुकरा नहीं जा सकता है.


लेकिन लालूप्रसाद यादव बिहार में एक बड़े जनाधार के नेता माने जाते है. उन पर भ्रष्टाचार का आरोप साबित हुआ और उनको जेल भेज दिया गया. जबकि बीजेपी के कई नेताओं पर भी आरोप लगे लेकिन उनके खिलाफ बड़ी कार्यवाही नहीं हुई. इससे भी जनता में नारजगी है. पहले राजद और जदयू सरकार में बीजेपी ने बिहार को जंगलराज की उपाधि दी तो अब बीजेपी और जदयू सरकार में अपराध की इंतिहा हो गई सरेआम लूटपाट हत्या , मर्डर शहरों में हुए जिसने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किये.


अब ताजा हालतों के मुताबिक एससी एसटी एक्ट से नाराज सवर्ण को साथ लेने के लिए बीजेपी ने एक लोलीपॉप दिया और उनको आरक्षण देने का विधेयक पास कर दिया. लेकिन इसका असर सभी जातियों पर पड़ेगा नकी केवल सवर्णों पर यह बात सब समझ चुके है. अब पिछड़े और दलित वोट जरुर लामबंद होते नजर आ रहे है. अगर यह तबका लामबंद होने में कामयाब हो गया तो सन 1989 के लोकसभा चुनाव के परिणाम जैसा ही होगा.


यह बात अब बीजेपी के भेजे में नहीं आ रही है पहले एससी एसटी एक्ट लाकर सवर्ण नाराज किया अब सवर्णों के नाम पर आरक्षण का शिगूफा छोड़कर दलित पिछड़ा नाराज किया है. तो वोट किधर से निकल कर आएगा यह सवाल का जबाब किसके पास है. बीजेपी बिहार में विधानसभा चुनाव भी आरक्षण का मुद्दा छेदकर हार चुकी है तो बिहार में लोकसभा जीतने की उम्मीद कैसे की जाय यह सबसे बाद सवाल है.

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