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पटना। प्रख्यात कवि अरुण कमल, बड़ी कथाकार उषा किरण खान और जाने - माने कवि आलोक धन्वा ने आज वाणी प्रकाशन से आई निवेदिता की किताब " पटना डायरी" का लोकार्पण किया। किताब पर चर्चा करते हुए अरुण कमल ने कहा की निवेदिता के लेखों का यह संग्रह बीसवीं शताब्दी के अस्सी के दशक के पटना शहर और विस्तार में पूरे देश के जीवन का जीवंत और मार्मिक दस्तावेज है।यह रोज़नामचा भी है और दास्तान भी और अपने स्वभाव में मार्मिक कविता। किसी शहर या कालखंड को कितने कितने कोणों और संदर्भों से देखा जाए कि टुकड़ों टुकड़ों में भी शहर की मुक्कमिल तस्वीर निकल आए—इसकी नायाब मिसाल निवेदिता की यह किताब है।
अस्सी का वो दशक जन संघर्षों,नये बदलावों और गहरे रोमान से भरा हुआ था। आशा है कि निवेदिता जी की यह पुस्तक अपने अनूठे कलेवर और विन्यास के कारण सह्रदय पाठकों का ध्यान एवं आदर अर्जित करेगी। जाने माने कवि आलोक धन्वा ने कहा की निवेदिता ने अपने आदर्श नायकों और उनके लेखन,कर्म,संघर्षों को केन्द्र में रखकर 80 के दशक का एक बहुरंगी मानचित्र प्रस्तुत किया है।उनकी भाषा उस समय के सत्त और सत्य को बहुत तीक्ष्णता से आयत्त करती है।
ऐसी पुस्तकों की ज़रूरत हमेशा रहेगी जो विधिवत इतिहास-लेखन या पत्रकारिता न होते हुए भी इतिहास के एक दौर को साहित्य,कला,वैचारिकी और जन-संघर्षों की मार्फत समझने की कोशिश करती हैं और अँधेरों में भी भासमान द्वीपों का अन्वेषण करती हैं। बड़ी कथाकार उषाकिरण खान ने कहा कि निवेदिता की यादों के सफे खुले हैं हमारे सामने। ये यादें हैं पटना की एक स्वप्नदर्शी लडकी के विकास की जिसके सपनों ने इसे यथार्थ की ठोस रपटीली भूमि पर चलना सिखाया। निवेदिता के जीवन का मूल प्रेम है ; वह प्रेम से संचालित होती है और पटना प्रेम भाव का आग्रही। अत: ये यादें इजहार हैं प्रेम , भाईचारे और सौहार्द की।
"पटना डायरी" की लेखक निवेदिता ने कहा की उसके लिए ये किताब बहुत मायने रखती है। इसमें वे तमाम यादें हैं जो उसके दिल के करीब है। ये किताब पटना और पटना में रहने वालों का दस्तावेज है। इसमें पटना का दिल धड़कता है। उन्होंने कहा की वाणी प्रकाशन का शुक्रिया जिन्होंने सुंदर किताब छापी और मीनाक्षी की पेंटिंग ने इस किताब को और सुंदर बनाया।
इस अवसर पर शहर के कई बुद्धिजीवी, लेखक, कलाकार विनोद कुमार सतेंद्र जी, अरुण जी, सुनीता, शाइस्ता,दीपक, प्रगीत, सीटू समेत कई लोग शामिल हुए। समारोह का संचालन जानी मानी आलोचक सुनीता गुप्ता ने किया।