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सीबीआई की कार्रवाई पर उठा सवाल, तीन सवालों से संदेह के घेरे में रेड
संतोष कुमार सिंह
नौकरी के बदले जमीन लेने के मामले में दर्ज एफआईआर के सिलसिले में दो माह के दौरान सीबीआई की यह दूसरी बड़ी रेड है इस बार राजद के दो राज्यसभा सांसद एक विधायक ,एक पूर्व विधान पार्षद और एक बालू कारोबारी के घर सीबीआई ने छापेमारी किया है ।छापेमारी देर रात को खत्म हुई है लेकिन सीबीआई को नौकरी के बदले जमीन से जुड़े मुकदमा में ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिसके सहारे लालू परिवार पर शिकंजा कसा जा सके। हां यह जरुर है कि इस छापेमारी से राजद का जो अर्थतंत्र है वो जरुर प्रभावित हो सकता है ।
1–नौकरी के बदले जमीन लेने का मामला
सीबीआई ने इसी वर्ष मई में लालू प्रसाद यादव पर 2004 से 2009 तक रेल मंत्री रहते हुए रेलवे में ग्रुप डी की नौकरियों के बदले में जमीन लेने का आरोप लगाते हुए एक मुकदमा दर्ज किया है जिसमें सीबीआई ने पूर्व रेल मंत्री और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनकी बड़ी बेटी मीसा भारती और हेमा के अलावे 13 अन्य लोगों को आरोपी बनाया है ,इस तरह इस मामले में कुल 16 लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है।
सीबीआई ने अभी तक इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है जिसमें एक भोला यादव है जो लालू प्रसाद के निजी सहायक रह चुके हैं और दूसरी गिरफ्तारी नौकरी के बदले जमीन देने के एक आरोपि हृदयानंद चौधरी हैं।
सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर में हृदयानंद चौधरी पर आरोप यह है कि ब्रजनंदन राय ने महुआबाग की अपनी 3375 वर्गफीट जमीन 29 मार्च 2008 को गोपालगंज निवासी हृदयानंद चौधरी को 4.21 लाख लेकर ट्रांसफर की. बाद में यह जमीन हृदयानंद चौधरी ने लालू प्रसाद की बेटी हेमा यादव के नाम कर दी. जमीन जब तोहफे में दी गई उस वक्त सर्किल रेट 62.10 लाख रुपये था. हृदयानंद चौधरी को पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर में साल 2005 में ही नौकरी मिल गई थी।
रेलवे में नौकरी देने के बदले जमीन लेने के मामले में सीबीआई ने जो प्राथमिकी दर्ज की है उसमें इसी तरह के सात ऐसे परिवार का नाम दर्ज है जिससे लालू प्रसाद पैसा लेकर रेलवे के डी ग्रुप में नौकरी दिये हैं ।
प्राथमिकी दर्ज करने के बाद सीबीआई ने इस वर्ष मई माह में दिल्ली, पटना और गोपालगंज में 17 ठिकाने पर छापा मारा था और लालू प्रसाद और मीसा भारती से घंटो पुछताछ किया था।
2— सीबीआई की छापेमारी सवालों के घेरे मेंं
सांसद अशफाक करीम ,फैयाज अहमद,और विधान पार्षद सुनील सिंह के यहां छापेमारी से सीबीआई की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गया है क्यों कि जिस प्राथमिकी के आधार पर सीबीआई ने छापेमारी किया है (नौकरी के बदले जमीन देने के मामले में ) उस प्राथमिकी में दर्ज घटना के वर्ष की बात करे तो यह खेल लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहते हुए 2004 से 2009 के बीच हुआ है। मतलब घटना की तिथि 2004 से 2009 के बीच है लेकिन कल जिनके यहां भी छापेमारी हुई है उन सभी पर गौर करेंंगे तो सांसद अशफाक 2018 में राजद कोटे से राज्यसभा गये हैं और जिस दौर में लालू यादव रेलमंत्री थे उस दौर में अशफाक करीब लोजपा के बड़े नेता थे उनका राजद और लालू प्रसाद के परिवार से दूर दूर का रिश्ता नहीं था।
इसी तरह सांसद फैयाज अहमद की बात करे तो 2010 में ये पहली बार राजद के टिकट पर बिस्पी मधुवनी से विधायक बने थे और राजद में इसकी कोई हैसियत 2004 के 2009 के बीच कुछ भी नहीं था ।
वही बात विधान पार्षद सुनील सिंह की करे 2004 से 2009 के बीच राजद में इनकी हैसियत क्या थी किसी से छुपा हुआ नहीं है इनकी राजद मेंं सक्रियता 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान पहली बार देखने को मिली इसी तरह पूर्व विधान पार्षद सुबोध राय उस दौर मे ठीक से हाफ पैंट भी नहीं पहन पा रहा होगा जिस दौर में नौकरी के बदले जमीन का खेल हुआ था ।
इसी तरह से सीबीआई ने कृष्णापूरी में रेलवे के एक पूर्व इंजीनियर सुनील कुमार के घर भी छापा मारा था इसकी नौकरी उस समय रेलवे में हुई थी जिस समय रामविलास पासवान रेलमंत्री थे।
वैसे जो खबर आ रही है कि छापेमारी समाप्त होने के बाद इन लोगों को सीबीआई ने जो सीजर लिस्ट दिया है उसमें लिखा है कि नौकरी के बदले जमीन लेने के मामले में दर्ज प्राथमिकी से जुड़ी हुई कोई भी दस्तावेज या अन्य साक्ष्य बरामद नहीं हुआ है।
फिर भी इसमें कोई शंक नहीं है कि ये सभी लोग राजद के फंड रेजर हैं लेकिन इसमें भी कोई शंक नहीं है कि ये तीनों लालू परिवार के सम्पर्क में आने से पहले से ही बड़े कारोबारी रहे हैं।
3–आरजेडी विधायक सैयद अबू दोजाना और बालू माफिया सुभाष यादव
इन दोनों की हैसियत 2004 से 2009 के बीच क्या रही है कहने कि जरुरत नहीं है इन दोनों का राजद परिवार से रिश्ता 2015 में सत्ता वापसी के बाद हुई है इसलिए इनके यहां नौकरी ये बदले जमीन मामले में छापेमारी का कोई मतलब नहीं बनता है वैसे इन दोनों पर 2017 में आईआरसीटी घोटाला मामले में जब लालू प्रसाद पर मुकदमा दर्ज हुआ था उसके बाद इन दोनों के यहां भी छापेमारी हुई थी और करोड़ो के आयकर चोरी का मामले पकड़ाया था ।
ऐसी स्थिति में कहां जा सकता है कि कल की छापेमारी नौकरी के बदले जमीन मामले के बजाय राजद के आर्थिक स्रोत निशाने पर था ताकि राजद भाजपा को लेकर मुखर ना हो सके।