पटना

माफ करें, डीजीपी का मतलब गुप्तेश्वर पांडे नही होता

Shiv Kumar Mishra
23 Sep 2020 6:02 AM GMT
माफ करें, डीजीपी का मतलब गुप्तेश्वर पांडे नही होता
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मुझे नहीं मालुम कि यह व्यक्ति घर की महिलाओं , दलितों , पिछड़ों मुस्लिमों से कैसे बात करता होगा. मुझे अभी भी रिया के औकात वाला उनका बयान याद आ रहा .आज मुझे कई परिचित डीजीपी याद आ रहे हैं -

आवेश तिवारी

किसी भी राज्य में डीजीपी का एक इकबाल होता है एक रूतबा होता है. अलग अलग प्रदेशों के कई डीजीपी मेरे परिचित रहे लेकिन उन्होंने कभी अपने रुतबे से समझौता नहीं किया यह रुतबा ईमानदार और सूझ बुझ भरी पुलिसिंग से आता है सत्ता के स्वर में स्वर मिलाने से नहीं आता. गुप्वेश्तर पांडे जैसे लोग कुर्सी छोड़ते ही भुला दिए जाते हैं. गुप्तेश्वर पांडे मुझे कभी भी डीजीपी नहीं लगे. बीजेपी ,जनता दल यू और बिहार के सवर्णों के प्रतिनिधि जरुर लगे. मुझे नहीं मालुम कि यह व्यक्ति घर की महिलाओं , दलितों , पिछड़ों मुस्लिमों से कैसे बात करता होगा. मुझे अभी भी रिया के औकात वाला उनका बयान याद आ रहा .आज मुझे कई परिचित डीजीपी याद आ रहे हैं -

आप लोगों ने प्रकाश सिंह का नाम सुना होगा कभी उत्तर प्रदेश के डीजीपी हुआ करते थे बाद में बीएसफ के प्रमुख बन गए बतौर आईपीएस प्रकाश सिंह सेवा में होने के दौरान और सेवा के बाद भी कभी पालिटिकल साइड लेते नहीं देखे वो आतंकवाद और नक्सल मामलों के विशेषज्ञ के तौर पर ज्यादा जाने जाते हैं. अब तक उन्होंने विभिन्न विषयों पर सात किताबें लिख रखी है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र रहे प्रकाश सिंह की आलोचना करने वाले लोग आपको बेहद कम मिलेंगे. बतौर आईपीएस वह जहां भी रहे उन्होंने विभाग को चमकाया.

यूपी में एक डीजीपी हुआ करते थे जाविद अहमद. मैं उन्हें तब से जानता था जब डीआइजी थे ग़जब के अधिकारी थे नेताओं ,मंत्रियों , विधायको से हमेशा दस कदम पीछे लेकिन आपरेशन चल रहा हो तो दो बजे मौके पर पहुँच जाए एक बार की घटना मुझे याद है एक नक्सली मुठभेड़ के बाद रात दो बजे पहाड़ों से घनघोर जंगल में जावेद अहमद 120 जवानों को लेकर घुस गए. जब जाविद डीजीपी बने तो एक टेजर गन की टेस्टिंग अपने ऊपर कराई। हुआ यूं कि डीजीपी ऑफिस में गन के इस्तेमाल को लेकर मीटिंग हो रही थी। यूपी पुलिस इसे खरीदने की तैयारी में है। अहमद जानना चाहते थे कि टेजर गन की गोली लगने से आखिर होता क्या है। उन्होंने वहां मौजूद अफसरों से पूछा- "किस पर ट्रायल करके देखें? आप में से कौन तैयार है?" उस वक्त एडीजी, आईजी और एसपी रैंक के कई अफसर मौजूद थे। किसी ने जवाब नहीं दिया। तभी डीजीपी ने कहा- "ओके। मैं ही शॉट लूंगा, आप मुझ पर ट्रायल करें" और कुर्सी से खड़े होकर कहा- "शूट मी।" जाविद गोली लगते गिर पड़े और फिर उठ खड़े हो बोले , सही है.


विश्वरंजन को कौन नहीं जानता होगा. उन पर मानवाधिकार उल्लंघन के कई आरोप लगे लेकिन छत्तीसगढ़ के यह पूर्व डीजीपी आज भी अपने अधीनस्थों के बीच अपनी पुलिसिंग के लिए प्रसिद्द हैं. विश्वरंजन की एक खासियत और थी फिराक गोरखपुरी के नवासे ने जीवन भर खुद को कविता, साहित्यय से जोड़े रखा . आजकल विश्वरंजन विश्वरंजन माओवाद और संवैधानिक गणतंत्र की विचारधारा के तुल्नात्मक अध्ययन पर एक पुस्तक लिख रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में मौजूदा डीजीपी डीएम अवस्थी हैं. जानकारी सब दे देंगे लेकिन इन्हें अपना नाम लिखा जाना बोला जाना बिलकुल पसंद नहीं है. कभी बात होती है तो साफ़ कहते हैं 'असली काम ग्राउंड काप्स कर रहे हैं उनकी तारीफ़ की जानी चाहिए हम तो अपना काम करते हैं'. छत्तीसगढ़ में नक्सल आपरेशन के हेड रह चुके अवस्थी की कोशिशों का ही नतीजा है कि राज्य के माओवादी वारदातें अब कम हो रही हैं. जब छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार थी तो रामनिवास डीजीपी हुआ करते थे . हमने एक बार पूछा राजनीति में जाएंगे क्या रिटायर होने के बाद? बोले नहीं . कुछ दिनो पहले पता लगा दिल्ली में एक ला फर्म खोल ली है.

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